अपनी बात

धिक्कार है, उन राजनीतिक दलों, चैनलों-अखबारों को जो लाशों में भी जाति व धर्म देख, अपना उल्लू सीधा करते हैं

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि कुछ दिनों पहले जैसे कांग्रेस समर्थित शासित महाराष्ट्र में साधुओं की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, और अब शत प्रतिशत कांग्रेस शासित राजस्थान में एक ब्राह्मण को जिन्दा जला दिया गया, इन दोनों जगहों पर अगर भाजपा का शासन होता और मरनेवालों में कोई दलित या अल्पसंख्यक होता तो क्या देश के अखबारों, चैनलों, पोर्टलों, कांग्रेसियों, वामदलों, जनसंगठनों, तथाकथित स्वयं को सेक्यूलर बतानेवाले लोग इसी तरह चुप्पी साधे रहते?  

देश को इसका उत्तर चाहिए और इन्हें देना होगा, अगर ये नहीं देते हैं तो यकीन मानिये, भाजपा को आप केन्द्र से कभी भी नहीं उखाड़ पायेंगे, क्योंकि आपके इन्हीं हरकतों से भाजपा को च्यवनप्राश मिलता है, जिसके कारण उक्त दल में आप जैसे लोगों के खिलाफ इतना प्रतिरोधक शक्ति हो गया है कि जनता हमेशा भाजपा के साथ रहेगी, क्योंकि जनता न तो दलित होती है और न ही अल्पसंख्यक।

वो तो जनता है, वो जानती है कि कद्दू हसुएं पर गिरे या हसुंआ कद्दु पर गिरे, नुकसान कद्दु का ही होना है, इसलिए कोई भी दल कितना भी उधम मचा लें, अंततः सामान्य जनता को ही नुकसान होना है, किसी भी चक्कर में नहीं पड़ना है, वोट के दिन आयेंगे तो उसे ही देंगे, जिसे देना होगा, वोट के दिन का माहौल एक दिन में नहीं बनता, जनता देखते रहती है और समय पर सूद समेत चुका देती है।

कमाल है, लाश जलाई जाती है तो सबकी छाती पिटती हुई जनता देखी, लेकिन एक ब्राह्मण को जिंदा जला दिया गया, उसके लिए किसी की छाती नहीं पीटी, जो हर बात में कैंडल लेकर निकल जाते हैं, वे भी नहीं दिखाई पड़े, जो हर बात में दलित-दलित चिल्लाते हैं, वे चैनल वाले भी अपना मुंह सी लिये, क्योंकि ब्राह्मण को जिंदा जला देनेवाली खबरों से टीआरपी नहीं मिलती, आखिर ये कैसा देश बना दिया हैं लोगों ने, इन 75 सालों में? कौन सा मुंह दिखाओगे आनेवाले पीढ़ियों को?

लाशों में भी ब्राह्मण-दलित, दुष्कर्म में भी दलित-ब्राह्मण की रट लगानेवालों अरे तुमसे अच्छे तो गिद्ध हैं, जो लाशों को सिर्फ लाश ही समझते हैं, तुम सभी को एक मानव की तरह कब देखना प्रारम्भ करोगे? अरे जिसने दुष्कर्म किया, वो दुष्कर्मी उसमें भी तुम ठाकुर-ब्राह्मण कहा से ला देते हो और जब लाते हो तो तुम हाथरस तक ही क्यों सिमट गये, बुलंदशहर क्यों नहीं दिखाये, क्यों नहीं दिल्ली की हाल में घटी घटनाओं को तव्ज्जों दी, जब एक समुदाय के लोगों ने दुसरे समुदाय के एक युवक की नृशंस हत्या कर दी, नाम बताएं या ये भी भूल गये।

राहुल जी और प्रियंका जी, आप  हाथरस  गई और राजस्थान के उस गांव में कब जायेंगी, जहां एक गरीब ब्राह्मण को जिंदा जला दिया गया? आपसे सवाल इसलिए? क्योंकि आप गांधी-गांधी, महात्मा गांधी, खूब चिल्लाते हैं, अरे थोड़ा समय मिले तो जाकर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म “गांधी” देख लीजिये। अरे हिन्दी न समझ आये तो अंग्रेजी वाली देख लिजियेगा, दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। आपकी ही दादी “श्रीमती इंदिरा गांधी” के शासनकाल में यह फिल्म पूरे देश में रिलीज हुई थी, कर-मुक्त भी थी।

उस फिल्म में चौरी-चौरा कांड का बड़ी खुबसुरती से जिक्र है। गांधी असहयोग आंदोलन चलाते है। उसी समय एक पुलिस चौकी पर हमला होता है, और बहुत सारे अंग्रेज पुलिसकर्मी मारे जाते हैं। गांधी अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लेते हैं। अबुल कलाम आजाद जाकर गांधी से कहते है कि बापू आपने अपना यह आंदोलन वापस क्यों ले लिया, ये आंदोलन को तो जनता  हाथो-हाथ ले रही है, गांधी ने जवाब दिया – आजाद जाकर उन पुलिसकर्मियों के घर जाकर घुम आओ, जिसने इस आंदोलन की आड़ में अपने खोये है। ये थी गांधी की अहिंसा, जो अपने शत्रुओं के लिए भी प्यार खोजती थी, पर अब तो देश स्वतंत्र है, फिर इसे बांटने की आवश्यकता क्यों?

हो सकता है कि किसी समुदाय में एक व्यक्ति गलत निकला हो, तो क्या आप उस गलती के लिए उस समुदाय में रहनेवाले सारे लोगों को लटका दोगे, उन्हें कसूरवार ठहराओगे। अगर यही करना हैं तो करो, लेकिन जान लो, आप और नीचे चलते जाओगे, क्योंकि आज भी भारत की जनता में आपसे ज्यादा गांधी की आत्मा बसती है। आप यकीन मानिये, ये देश आज भी वामपंथ को नहीं स्वीकार करता, क्योंकि यह धर्मप्राण देश है।

आपके लिए धर्म का मतलब हिन्दू हो जायेगा, पर जो हिन्दू होता है, उसे समझने के लिए राहुल-प्रियंका जैसे लोगों की जरुरत नहीं, बल्कि फादर कामिल बुल्के जैसे लोगों की आवश्यकता होती है, जो श्रीरामचरितमानस जैसे ग्रन्थ में यह चौपाई ढूंढ निकालते है और अपने जीवन को सार्थक करने में लगा देते हैं। वह चौपाई है – परहित सरिस धरम नहीं भाई। आगे की लाइन अपने सलाहकारों से पूछ लीजियेगा, पर आपके सलाहकार ये बतायेंगे कैसे? उन्हें तो श्रीरामचरितमानस में ही बुराइया नजर आती है, वे तो इसमें से भी गड़बड़ियां निकाल लेंगे और आपको समझा देंगे, आप समझ भी लीजियेगा।

गजब हो गया है। एक इन्सान की मौत होती है। एक बेटी का बलात्कार होता है और ये लोग सबसे पहले उसकी जात देखते हैं, उसका धर्म देखते हैं और उसके हिसाब से राजनीति रोटी सेकते है और चैनल-अखबार वाले टीआरपी मजबूत करने के लिए अपना ईमान व चरित्र बेच देते हैं। ऐसे में यह देश क्या तरक्की करेगा? चीन जैसे दुश्मनों से लोहा लेगा। अरे आपस में ही इतना बांटने के लिए बुद्धि कहां से लाते हो आपलोग। थोड़ा शर्म करो।

अरे अब भी वक्त है, थोड़ा इन्सान बनो, कही भी किसी के साथ गलत होता है, तो उसके लिए हर पल खड़ा रहो, उसमें जाति-धर्म मत ढूंढो. सभी से प्यार करो। ये क्या हर पल जाति-धर्म के नाम पर गुंडागर्दी और नौटंकी की शुरुआत। याद रखो, ऐसा कर रहे हो न। करो। पर ये मत भूलो। ये भारत है। यहां कर्म प्रधान माना गया है। जैसा करोगे, वैसा पाओगे। आप ये सोच रहे हो कि ऐसा करके फिर से आप सत्ता में आ जाओगे तो याद रखो, यह आपका दिवास्वप्न है, आपऔर नीचे जाओगे और आपके सीने पर कदम रखकर शिवसेना जैसी पार्टियां, लालू और नीतीश जैसी पार्टियां शासन करेगी, आप इसी तरह की मूर्खता करते हुए स्वयं को मिट्टी में मिला दोगे, ये ध्रुव सत्य है, गांठ बांध लो।