अपराध

दवाई दोस्त प्रकरणः यह नीतिगत मामला नहीं, यह पूर्णतः भ्रष्टाचारयुक्त मामला है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता

रिम्स में कौन दवा सस्ती बेचेगा? कौन बेचेगा? कौन नहीं बेचेगा? यह विशेषाधिकार सही मायनों में रिम्स प्रबंधन के पास है। कल जो रिम्स प्रबंधन के निदेशक कामेश्वर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेस कर यह कहा कि “रिम्स परिसर स्थित दवाई दोस्त को हाल ही में परिसर खाली करना होगा तथा दवाई दोस्त को एक्सटेंशन देने पर रोक लगा दी और यह भी कह दिया कि यह नीतिगत मामला है।”

तो रिम्स निदेशक कामेश्वर प्रसाद को यह भी मालूम होना चाहिए कि जनता इतनी मूर्ख नहीं, जितना वे समझते हैं, आखिर दवाई दोस्त को अचानक रिम्स से उठाकर बाहर फेंकने का उनके मन में ख्याल कैसे आ गया? हम आपको बताते हैं। दरअसल राज्य की औषधि निदेशक ने रिम्स प्रबंधन/निदेशक को 21 मई को एक पत्र लिखा था, जिसमें साफ लिखा था कि रुद्रालय हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा रिम्स रांची में औषधि प्रतिष्ठान खोलने के लिए पत्र प्राप्त हुआ है।

उस पत्र में अरुप चटर्जी का नाम भी हैं, जो उस कंपनी का मालिक है और यही व्यक्ति न्यूज 11 भारत का भी मालिक है। बस इतनी सी बात थी और इसी बात को पूरा करने के लिए पूरा खेल रच दिया गया। औषधि विभाग ने भी खूब जोर लगाया, जैसे छापामारी करवा दी, और जो भी करना था पीछे से करता रहा। जनता को समझना चाहिए कि पैरवी आम तौर पर मौखिक होती हैं, कोई जाने या न जाने, यहां तो लिखित पैरवी हो रही हैं, वो भी डंके की चोट पर।

आगे समझिये, जन औषधि केन्द्र तो हर हाल में रिम्स प्रबंधन को चलाना था, आखिर इतने सालों तक उसने क्यों नहीं चलाया? आखिर उस जन औषधि केन्द्र में दवाओं का हमेशा अकाल क्यों रहता था, दरअसल हमारे देश में जहां भी सरकारीकरण का ठप्पा लगता है, सारा मामला ही अंधेर नगरी की ओर चला जाता है, यहां वहीं हुआ।

रिम्स प्रबंधन ने न तो जन औषधि केन्द्र पर ध्यान दिया और न ही जिसे आज नीतिगत मामला बता रहा हैं, उस पर किसी प्रकार ध्यान दिया, इसी चक्कर में कई निदेशक आये और कई चले गये, मामला लटका रहा, ये भी जो कामेश्वर प्रसाद, निदेशक आये हैं, कोई आजकल में नहीं आये, इनका भी काफी समय निकल चुका है, चूंकि सरकार में शामिल लोग तय कर चुके हैं कि दवाई दोस्त को हटाना हैं, तो ये दवाई दोस्त हटाया जा रहा है।

अब सवाल उठता है कि अरुप की कंपनी को दवाई बेचने का काम देना है या उसकी जगह पर दूसरे कंपनी को देना है, इसकी भी इन्होंने पहले से तैयारी कर ली है, उल्लू तो जनता को बनना है। बात तो ये ऐसे करते है कि जैसे लगता है कि कल ही इन्हें सिद्धार्थ की तरह ,गया के बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ और जैसे सिद्धार्थ से गौतम, गौतम बुद्ध हो गये।

ठीक उसी प्रकार कामेश्वर प्रसाद महान युगद्रष्टा हो गये। सच्चाई यही है कि दवाई दोस्त बंद हो गया, अब जनता को परेशानी होगी, और उस परेशानी से इन लोगों को कोई लेना-देना नहीं। अब तो देख रहा हूं कि सोशल साइट पर भी कुछ चपड़गंजूओं ने अनाप-शनाप इस प्रकरण पर लिखना शुरु कर दिया हैं, जिसमें साफ षडयंत्र की बू आती हैं, पर किया क्या जाये, इसी को कलयुग कहा गया है।