प्रभात खबर में प्रकाशित हजारीबाग के कोरेन्टिन सेन्टर से संबंधित समाचार का DC ने किया खंडन, ब्राह्मणों में अखबार के प्रति फैला आक्रोश
आज रांची से प्रकाशित प्रभात खबर के प्रथम पृष्ठ पर छपी खबर – दलित के हाथों बना खाना खाने से किया इनकार। हजारीबाग के विष्णुगढ़ के बनासो में बने कोरेंटिन सेन्टर की घटना, पूरे राज्य में आग की तरह फैल गई, फिर क्या था? खबर को लेकर नाना प्रकार की प्रतिक्रियाएं सोशल साइट पर आ गई। चूंकि प्रभात खबर रांची का पुराना अखबार और सर्वाधिक प्रसारित अखबार माना जाता है, ऐसे में उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्च चिह्न कौन लगाए? ऐसा मानकर कई सामाजिक व प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी, और सभी ने इस घटना की एक स्वर से घोर निन्दा की।
विद्रोही24 डॉट कॉम ने भी प्रभात खबर के इस घटना को सच मानकर, इस घटना के प्रति गहरा आक्रोश जताया, लेकिन जो अब बातें छनकर आ रही है, वो बता रहा है कि ऐसी घटना कोई वहां घटी ही नहीं। इधर हजारीबाग के उपायुक्त ने भी इस घटना की जांच कराई और इस पूरे घटना को ही आधारहीन बता दिया। इस घटना पर उपायुक्त हजारीबाग ने अपने ट्विट में लिखा है कि संबंधित मामले को अविलम्ब संज्ञान में लेते हुए अपर समाहर्ता, हजारीबाग द्वारा इसकी जांच कराई गई, जांच के उपरांत मामला निराधार पाया गया।
जबकि प्रभात खबर में आज छपे इससे संबंधित समाचार में उपायुक्त हजारीबाग का यह बयान कि “विष्णुगढ़ बीडीओ से बातचीत हुई है, उनलोगों के लिए अलग से सुखा राशन की व्यवस्था कर दी गई है।” संदेह उत्पन्न कर रहा है। आखिर हम प्रभात खबर में छपे इस समाचार से संबंधित खबरों के डीसी के बयान को सही माने या अभी-अभी ट्विट किये गये डीसी के बयान को सत्य माने। अगर आज अखबार की बातों को माने तो प्रभात खबर की खबर सत्य हो जा रही है, और इधर हम आज के डीसी के ट्विट को सत्य माने तो अखबार कटघरे में पहुंच जाता है। हमने जब इस संबंध में प्रभात खबर के संपादक से बातचीत की, तब उनका कहना था कि उपायुक्त ने स्वयं बयान दिया है, ऐसे में वे अपनी खबर को गलत कैसे कह सकते हैं, अगर लोग उनकी खबर को गलत कह रहे हैं तो फिर से एक बार पता लगा लेते हैं, इसमें दिक्कत कहां है?
इधर एक अखबार से जुड़े स्थानीय पत्रकार प्रकाश पांडेय ने विद्रोही24 को जो बताया, वो कान खड़े कर दे रहा है। प्रकाश पांडेय का कहना है कि पहली बात की बनासो में चार ब्राह्मण कोरोन्टाइन में है ही नहीं। सेन्टर में खाना नहीं बन रहा बल्कि दाल भात योजना पंचायत कार्यालय में चल रहा था, जो लगभग एक सप्ताह से बंद है। दाल भात योजना की रसोइया में सभी जाति और धर्म के लोग साथ खाना बनाते है, खाते और खिलाते भी हैं।
रसोइया में एक ब्राह्मण परिवार की महिला भी है। कोरोन्टाइन में रह रहे बनासो के सारे लोगों का खाना घर से ही आता है। इसके अलावे ढेर सारे तथ्य है। पड़ताल की जरुरत है। प्रकाश पांडेय आगे कहते है कि हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ प्रखंड के यह गांव बनासो खासी आबादीवाला गांव है। इतनी बड़ी बात हो और पूरे गांव को एक अखबार की कतरन से पता चलता है। किसी को कुछ पता नहीं।
यह सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का षडयंत्र का एक हिस्सा हो सकता है। आज उप-मुखिया, मुखिया पति, और रसोइयों ने भी इस समाचार का खंडन किया है। साथ ही अपर समाहर्ता और बीडीओ ने स्थलीय जांच की है। सच तो सामने आ जायेगा। अगर रिपोर्ट में अखबार में छपे तथ्य गलत प्रमाणित होते हैं, तो मुझे एक लीडिंग अखबार की इस करतूत पर अफसोस होगा। मैं भी एक छोटा पत्रकार हूं और उसी गांव से ताल्लूक रखता हूं।
भावावेश में सोशल मीडिया में उटपुटांग बातें लिखी जा रही है, जिसका सच से दूर-दूर तक नाता नहीं। आदित्य पाठक लिखते है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषी पर कठोर कार्रवाई हो। किसी प्रकार का भेदभाव देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। सामाजिक सौहार्द्र नहीं बिगाड़ा जाए। खबर असत्य हो तो मकसद और एजेंडा पता कर रासुका के तहत कारर्वाई हो।