जनता व समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं की मांग, धनबाद से एक बार फिर राज सिन्हा हो BJP प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव नजदीक है और विधायक बनने के लिए भाजपा में कई लोगों के बीच मारा–मारी चल रही हैं। कई लोग अभी से ही अपने–अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं। अभी से ही नाना प्रकार की तिकड़म लगाई जा रही हैं। जो भी भाजपा का बड़ा नेता या प्रभारी धनबाद पहुंच रहा है, भाजपा का टिकट पाने के के चक्कर में ये लोग गणेश परिक्रमा से नहीं चूक रहे।
धनबाद एक ऐसा विधानसभा सीट हैं, कि यहां भाजपा के जीत की संभावना शत् प्रतिशत रहती हैं, इसलिए हर कोई चाहता है कि इस सीट पर वो चुनाव लड़े, ताकि बिना किसी मेहनत के विधायक बन जाये और अपने सात पुश्तों के लिए वो हर चीज का प्रबंध कर लें, जिसका वो सपना देखा हैं, और अगर कोई यह कहता है कि वो देश सेवा या समाज सेवा के लिए राजनीति में आया हैं, या विधायक बनना चाहता हैं, तो समझ लीजिये वह सफेद झूठ बोल रहा हैं।
इधर धनबाद के सांसद पशुपति नाथ सिंह को भी पुत्र मोह जग गया हैं, वे अपने राजनीति के अंतिम पल में, अपने बेटे को विधायक बनता हुआ देखना चाहते हैं, पशुपति नाथ सिंह के मन में जैसे ही यह भाव जगा, पशुपति नाथ सिंह के लिए काम करनेवाले लोग सक्रिय हो उठे और देखते ही देखते धनबाद में पशुपति नाथ सिंह के बेटे प्रशांत सिंह के लिए माहौल बनाया जाने लगा।
प्रशांत सिंह के लिए सोशल साइट पर कशीदे पढ़े जाने लगे। लोगों को बताया जाने लगा कि प्रशांत सिंह की अपनी पहचान है, वे विशुद्ध भाजपाई है, अधिवक्ता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य है, लेकिन ये लोग भूल गये कि परिवारवाद को लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी की इन दिनों भौंहे तनी हुई हैं, फिर भी राजपूत लॉबी का कहना है कि जब राजनाथ सिंह के बेटे चुनाव लड़ सकते हैं, जब लाल जी टंडन के बेटे चुनाव लड़ सकते हैं, मंत्री बन सकते हैं, तो पीएन सिंह के बेटे प्रशांत क्यों नहीं बन सकते?
बात में दम भी हैं, क्योंकि भाजपा का सिद्धांत समय के अनुसार बदलता रहता हैं, और जब कभी सिद्धांत की प्रबल आवश्यकता होती है तो भाजपा का सिद्धांत उसी वक्त तेल लेने चला जाता है। इधर सीएम रघुवर के खासमखास तथा रघुवर दास के सजातीय व धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल को भी विधायक बनने का दिल मचल रहा हैं, हालांकि मेयर बनने के बाद धनबाद का इन्होंने कैसा कबाड़ा बनाया, सभी जानते हैं, पर उन्हें लगता है कि सब कुछ ठीक रहा, तो रघुवर दास की कृपा से वे विधायक बन ही जायेंगे, जैसे संजय सेठ रांची से सांसद बन गये।
दूसरी ओर भाजपा जिलाध्यक्ष चंद्रशेखर सिंह, सत्येन्द्र कुमार, प्रियंका पाल, अमरेश सिंह का नाम भी आ रहा हैं, पर इनमें वो ताकत नहीं कि वे धनबाद से भाजपा का टिकट प्राप्त कर सकें। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो फिलहाल इन सब में राज सिन्हा का पलड़ा भारी हैं, क्योंकि वे सरल–सहज और आम जनता के बीच में आज भी लोकप्रिय हैं, इसलिए ऐसे जन–प्रतिनिधि का टिकट काटकर राजपूत या वैश्य समुदाय को टिकट थमा देने पर भाजपा का सामाजिक समीकरण भी बिगड़ेगा।
जिसका लाभ अन्य राजनीतिक दल आराम से उठा ले जायेंगे, क्योंकि सीएम रघुवर दास की जातिवादी राजनीति और धनबाद में वर्षों से चल रही राजपूत लॉबी द्वारा राजनीति की कमान अपने हाथ में रखने की इच्छा अगर कायम रहती हैं तो नुकसान भाजपा को ही होगा और ऐसे में अन्य जातियां गोलबंद होकर किसी दूसरे दल को चुनाव जीता दें तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, लेकिन अगर राज सिन्हा को टिकट मिलता हैं तो भाजपा की साख और जनता का राज सिन्हा से बेहतर संबंध पार्टी को धनबाद मे जीत दिला सकती है।
नहीं तो गइल भइसियां पानी में, वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी, क्योंकि धनबाद के मेयर के रुप में चंद्रशेखर अग्रवाल के काम–काज से जनता इतनी नाराज है कि आनेवाले समय में चंद्रशेखर अग्रवाल नगर निगम का चुनाव भी नहीं जीत पायेंगे, ये ब्रह्म वाक्य हैं, इसे भाजपावालों को गांठ बांध लेना चाहिए और रही बात पुत्र मोह में चले गये पीएन सिंह को तो वे जितना जल्दी पुत्र मोह से निकल जाये, उतना अच्छा हैं, नहीं तो जाते–जाते अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने जो भी कमाया हैं, उसका छीछालेदर होने में देर नहीं लगेगा, और रही बात भाजपा के बड़े नेताओं को वे जिसको टिकट दें, उससे हमें क्या? जो सत्य था, ताल ठोककर लिख दिया।