अपराधिक मामलों में जेल में कैद जनप्रतिनिधियों को सदन की बैठक में भाग लेने पर रोक लगाने हेतु कानून बनाने की मांग
धनबाद के वरिष्ठ समाजसेवी विजय कुमार झा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की है कि, वे सजायाफ्ता/अपराधिक मामले में जेल में बंद जनप्रतिनिधियों को किसी भी सदन की बैठक में भाग लेने पर रोक लगाने के लिए एक कानून बनायें, जिससे वैसे राजनीतिज्ञों पर अंकुश लगें, जो अपराध की दुनिया में कदम रखकर राजनीति में प्रवेश करने का स्वप्न देखते हैं।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि हिन्दुस्तान के विभिन्न जेलों में कई ऐसे जनप्रतिनिधि भी बंद हैं, जिन्हें अपराधिक मामले में सक्षम न्यायालय द्वारा सजा दी जा चुकी है, इसके अतिरिक्त भी कई अन्य अपराधिक मामले में जेल अभिरक्षा में हैं, किन्तु अक्सर ऐसा देखा जाता है कि किसी सदन के सत्र चालू होने पर वो न्यायालय से अनुमति लेकर चल रहे सत्र में भाग लेते हैं।
विजय झा का कहना है कि चूंकि राजनीति एक सभ्य, संस्कारित लोगों के द्वारा अपनी सेवा को समाज के लिए विस्तार करने का एक माध्यम है, परन्तु कुछ लोगों ने इसे अपने लिए धन कमाने, असीमित शक्ति अर्जित करने, अपने आर्थिक अपराध को ढकने का माध्यम बना लिया है, कभी-कभी ऐसे लोग कानून की पकड़ में आ भी जाते हैं और न्यायालय द्वारा उन्हें सजा भी दी जाती है।
उनका कहना है कि अक्सर देखा जाता है कि जब कोई भी जनप्रतिनिधि जब किसी अपराध के कारण जेल में रहते हुए न्यायालय के आदेश से सदन की कार्रवाई में भाग लेते हैं, तब ऐसे लोगों के सदन में उपस्थिति के कारण ना सिर्फ सदन की गरिमा गिरती है, बल्कि राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति आम आदमी के मन में घृणा का भाव भर जाता है और राजनीति को बहुत ही घृणा के नजर से आम आदमी देखने लगते है।
उसके मन में यह धारणा बैठ जाती है कि कितना भी अपराध करो, फिर राजनीति में प्रवेश करो, येन-केन-प्रकारेण जनप्रतिनिधि बन जाओ और फिर सदन के माध्यम से समाज को संदेश देने लगो। उन्होंने कहा है कि एडीआर की हालिया रिपोर्ट शर्मसार करनेवाली है, जिसमें जानकारी दी गई है कि 51 प्रतिशत दागी अपराधी सदन के सदस्य बने बैठे हैं। राजनीति को अपराधमुक्त करने का संकल्प पूरा करने के लिए अविलंब एक केन्द्रीय कानून की आवश्कता है।
विजय कुमार झा के अनुसार किसी भी सदन की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए सदन में बैठनेवाले सभी सदस्यों का आचरण भी अनुकरणीय, वंदनीय, प्रशंसनीय, बेदाग चरित्र वाला होना चाहिए और यह तभी संभव है जब कोई सजायाफ्ता व्यक्ति या चार्जशीटेड व्यक्ति किसी भी सदन में जनप्रतिनिधि होने मात्र के कारण प्रवेश न कर सकें।
इसलिये अविलम्ब एक केन्द्रीय कानून लाया जाना चाहिए कि “कोई भी सजायाफ्ता या अपराधिक कार्यों में जिनके खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र समर्पित किया जा चुका है, ऐसे व्यक्ति को जब तक वह न्यायालय से आरोपमुक्त नहीं हो जाता है, तब तक वे सदन के किसी भी कार्रवाई में भाग नहीं ले सकता है।” जेल से सदन की कार्रवाई में भाग लेने से कानूनन रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति की पवित्रता और राजनीतिज्ञों के प्रति सम्मान बना रहे, इसके लिए ऐसे केन्द्रीय कानून की अति आवश्यकता है, जिससे कि आम आदमी का राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति सम्मान बढ़ें और राजनीति का क्षेत्र आम आदमी के मन में पवित्रता का भाव भर सकें।