विधानसभाध्यक्ष द्वारा सदन की कार्यवाही से आपत्तिजनक शब्द को स्पंज कर देने के बावजूद उस आपत्तिजनक शब्द को बड़े ही गर्व से सोशल साइट पर लिखकर सदन की अवमानना करने से पीछे नहीं हट रहे रांची के पत्रकार
भारतीय संसद राज्यसभा, संसदीय विशेषाधिकार का वोल्यूम पांच, राज्यसभा सचिवालय, नई दिल्ली 2022 के पेज नंबर 14, बिंदु नं. पन्द्रह में साफ लिखा है कि ‘सामान्यतः सभा की कार्यवाही की रिपोर्टिंग पर कोई रोक नहीं लगाई जाती है। तथापि, सभा की कार्यवाही के वृतांत में से निकाले गये कार्यवाही के अंशों को प्रकाशित करना सभा के विशेषाधिकार का उल्लंघन और उसकी अवमानना है।’ इसे आप डिजिटल संसद के पृष्ठ पर भी देख सकते हैं।
लेकिन रांची में हो क्या रहा हैं? यहां के पत्रकार संसदीय परम्पराओं और उसके मूल्यों का खुलकर धज्जियां उड़ा रहे हैं। ये सभा की कार्यवाही के वृतांत में से निकाले गये कार्यवाही के अंशों को प्रकाशित करते हैं। ये अपने ही विधानसभाध्यक्ष की बात नहीं मानते। ये स्वयं को सदन से भी उपर मानते हैं और सदन में जो बाते विधानसभाध्यक्ष द्वारा स्पंज कर दी गई हैं। उसे खुलेआम सोशल साइट पर लिखते हैं। दिखाते भी हैं।
आश्चर्य है कि ये वे लोग हैं, जो पिछले कई वर्षों से झारखण्ड विधानसभा की रिपोर्टिंग करते आ रहे हैं। झारखण्ड विधानसभा प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य भी रह चुके हैं और आनेवाले समय में भी झारखण्ड विधानसभा प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य के प्रबल दावेदार हैं, यहीं नहीं आज भी ये अपने सोशल साइट प्रोफाइल पेज पर बड़े ही गर्व से खुद को सदस्य, झारखण्ड विधानसभा प्रेस दीर्घा समिति कहकर दिखाने में गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। यानी जिन पर दारोमदार हैं कि वे झारखण्ड विधानसभा की मर्यादा को बरकरार बनाकर रखेंगे। वे ही विधानसभा पर कीचड़ उछाल रहे हैं। आश्चर्य है कि इस पर किसी माननीय ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है और न ही सवाल उठाया है।
हम बात कर रहे हैं। आज झामुमो विधायक हेमलाल मुर्मू द्वारा झारखण्ड विधानसभा में दिये गये एक आपत्तिजनक बयान की, जिस पर भाजपा विधायक नीरा यादव ने आपत्ति जताई और उस आपत्ति को देखकर झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो ने उस आपत्तिजनक शब्द को रिकार्ड से निष्कासित कर दिया। आम तौर पर संसदीय प्रणाली में जिनकी आस्था है। वे यही जानते हैं कि जब विधानसभाध्यक्ष किसी शब्द को रिकार्ड से हटा देते हैं तो उसकी बाहर रिपोर्टिंग या उसका प्रकाशन/प्रसारण वर्जित/निषिद्ध है।
लेकिन ये बातें कौन मानेगा? यहां तो कई पत्रकार ऐसे हैं कि अपने सोशल साइट पर उस वीडियो को अपलोड कर दिखा भी रहे हैं। लिखकर लोगों को बता भी रहे हैं। एक पत्रकार तो ऐसे हैं, जो दूसरे को उकसा रहे हैं कि इस मुद्दे पर झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य, इस पर प्रेस कांफ्रेस क्यों नहीं कर रहे हैं और ये सब वे लोग हैं, जो झारखण्ड विधानसभा की प्रेस दीर्घा में रहकर इसका खुब आनन्द उठा चुके हैं।
मतलब कई बार दूसरे राज्यों की विधानसभा का दौरा भी कर चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी इनको संसदीय परम्पराओं, मर्यादाओं व विधानसभा के प्रति मर्यादित टिप्पणी करनी नहीं आई। जिन्होंने ऐसा कर सदन की अवमानना की है, क्या ऐसे लोगों पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलेगा? ये तो झारखण्ड विधानसभा के माननीय या अध्यक्ष ही बतायेंगे।
इधर संसदीय मामलों के जानकार अयोध्यानाथ मिश्र साफ कहते हैं कि सदन से हटाई गई सामग्रियों को फिर से बाहर जिन्होंने लाने की कोशिश की है। एक तरह से देखा जाये तो उन पर सदन की अवमानना और विशेषाधिकार का मामला तो बनता ही हैं। पूर्व विधानसभाध्यक्ष सीपी सिंह भी कहते हैं कि हटाई गई सामग्री का प्रकाशन और प्रसारण दोनों वर्जित हैं और ये मामला सदन की अवमानना को रेखांकित करता है तथा विशेषाधिकार का मामला तो बनता ही है।
हम बता दें कि जिन्होंने ऐसा कर सदन की अवमानना की है। उनके सारे कृत्यों की छायाप्रति विद्रोही24 ने अपने पास सुरक्षित रख ली हैं, ताकि ये लोग ज्यादा उछल-कूद न मचा सकें और जरुरत पड़ने पर विधानसभाध्यक्ष को सौंप दी जा सकें। आश्चर्य हैं, जिस सदन को लोग लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं, उस मंदिर के जो नियम हैं, उस नियम को तोड़ने में सर्वाधिक दिमाग वे पत्रकार लगा रहे हैं, जिन पर इस मंदिर के सम्मान की रक्षा पर ध्यान रखने की जिम्मेदारी है।