हेमन्त की सरकार क्या झारखण्ड में आई, अखबारों व भाजपा नेताओं/कार्यकर्ताओं के तेवर भी बदल गये
जरा सोचिए, अगर झारखण्ड में फिर से भाजपा की यानी रघुवर सरकार आ जाती तो क्या होता? फिर वहीं होता अमित शाह के आने के पहले से लेकर जाने तक अखबार अमित शाह से संबंधित समाचारों से पटे होते, पूरा अखबार अमित शाह व भाजपा नेताओं की जय-जयकार कर रहा होता, भाजपा भक्त पत्रकार अमित शाह के साथ सेल्फी लेने के लिए मारे-मारे फिर रहे होते, चैनलों का समूह भाजपा नेताओं के आगे गिड़गिड़ा रहा होता, कि एक विजुयल अमित शाह का लेने दीजिये, क्योंकि उसकी रोजी-रोटी का सवाल है, पर इस बार ऐसा देखने को नहीं मिला।
देखने को तो यह भी नहीं मिला, भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं का वह तेवर, जो बड़े ही जोश के साथ जयश्रीराम का नारा लगाते थे, भारी संख्या में अपने नेता का स्वागत करने के लिए रांची एयरपोर्ट से लेकर उन सड़कों तक बिखरे रहते थे, जहां से भाजपा के इन बड़े नेताओं की शाही सवारी गुजरती थी, इस बार कुछ दिखे भी तो उनका वो जोश गायब था, केवल खाना-पूर्ति हो रही थी।
ये होता है सरकार बदलने पर किसी राजनीतिक दल की स्थिति, वह दीन-हीन ही नहीं श्रीहीन भी हो जाता है, पर जिनके पास चरित्र होता है, उनको इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उन्हें सत्ता होने या सत्ता के न होने पर इन सभी भीड़ की उपस्थिति का कोई फर्क नहीं पड़ता। कल हमने देखा कि बाबू लाल मरांडी ने अपनी पार्टी झारखण्ड विकास मोर्चा का अस्तित्व सदा के लिए समाप्त करने का जो प्रण लिया था, उसकी कल पूर्णाहुति थी, जिसके लिए अमित शाह आये हुए थे, पर उनकी वो आवभगत नहीं हुई, और न अखबारों ने वो स्थान दिया, जिसका नजारा रांचीवासी पिछले पांच सालों से देखते आ रहे थे।
कल तक रांची के वो अखबार जो अमित शाह के लिए पांच-पांच, छः-छः पेज विशेष रुप से निकाला करते थे, आज उन्होंने सामान्य समाचारों की तरह अमित शाह के कल के कार्यक्रम को अपने अखबारों में स्थान दिया है, शायद अब उन्हें भय सताने लगा है कि कही हेमन्त की नजरों से ये समाचार गुजरी तो लेने के देने पड़ सकते हैं, क्योंकि फिलहाल तो इनके खेवनहार हेमन्त ही हैं और इन सबकी नैया हेमन्त सोरेन के खूंटे से ही बंधी है। कल रघुवर के खूंटे के साथ बंधी थी, जो वहां से जो इशारा होता था, वही होता था, सारे अखबार दंडवत् होकर साष्टांग सीएमओ के समक्ष (बिस्तर की तरह) बिछ जाते थे, इस बार ऐसा करने से स्वयं को बचाने की कोशिश की है।
इस बार अमित शाह भी लगता है कि बातों को समझ गये, अखबारों व चैनलों से दूरियां बनाई और सेल्फी लेनेवाले पत्रकारों से स्वयं को दूर रखा, हालांकि कई पत्रकारों ने ऐसा करने का प्रयास किया पर सफलता नहीं मिली। ले-देकर आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास के तर्ज पर अमित शाह ने बाबू लाल मरांडी की पार्टी विलय पर बात कम और हेमन्त सोरेन की सरकार को कोसने में ज्यादा बिताई पर इसका परिणाम क्या निकलेगा? भले ही कोई जाने या न जाने, विद्रोही24.कॉम तो खूब जानता है।