दिनेश उरांव झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष की तरह नहीं बल्कि भाजपा प्रवक्ता की तरह कर रहे काम
झारखण्ड विकास मोर्चा के छः विधायकों की सुनवाई पूरी हो चुकी, फैसला सुरक्षित रखा गया है, ये फैसला कब आयेगा? ये भी भविष्य के गर्भ में हैं, आखिर झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष को फैसले देने में अब क्या दिक्कत आ रही हैं? वह भी तब जबकि सुनवाई पूरी हो चुकी। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार के अनुसार, दरअसल जब व्यक्ति विधानसभाध्यक्ष न होकर, पार्टी के प्रति समर्पण दिखाना प्रारम्भ कर देता है तो वह फिर स्पीकर नहीं रहता, पार्टी प्रवक्ता हो जाता हैं, झारखण्ड विधानसभा के अध्यक्ष दिनेश उरांव उसी का निर्वहण कर रहे हैं।
कमाल की बात है छः विधायकों के दलबदल मामले में केवल सुनवाई में चार साल बीत गये तो क्या फैसले आने में भी एक साल बीत जायेंगे? जनता जानना चाहती है, क्योंकि सुनवाई पूरी हो जाने के बाद फैसले को लटकाने से भी संशय उत्पन्न हो जाता है। झारखण्ड विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है, स्पीकर चाहते तो शीतकालीन सत्र के पूर्व भी फैसले सुना सकते थे, पर वे इस मुद्दे पर अभी भी वे मौन साधे हुए है।
सूत्र बताते है कि स्पीकर इस मामले को बजट सत्र तक खीचेंगे, ताकि सरकार अपना बजट पास करवा कर, आगे का काम कर लें, ऐसे भी स्पीकर, सरकार, साथ ही दलबदल में लिप्त छः विधायकों को भी मालूम है कि मार्च-अप्रैल में जब लोकसभा चुनाव चरम पर होगा, तो उसका असर झारखण्ड पर भी पड़ना तय है, और ऐसे में जब स्पीकर इस मामले पर अपना फैसला इस दरम्यान सुनायेंगे, तब तक रघुवर सरकार का बहुत सारा काम संपन्न हो चुका होगा, तथा उन्हें सहयोग करनेवाली पार्टी आजसू ब्लैकमेल करने की स्थिति में नहीं होगी।
इधर बुद्धिजीवियों का मानना है कि स्पीकर का इस मामले में फैसले को लटकाना, किसी भी प्रकार से सही नहीं ठहराया जा सकता। बुद्धिजीवी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार के उस बयान का समर्थन भी करते हैं, जिसमें उन्होंने स्पीकर को भाजपा का प्रवक्ता कहा। बुद्धिजीवियों का कहना है कि जब स्पीकर, अपनी जिम्मेदारी संवैधानिक तरीके से नहीं निर्वहण करेंगे तो विपक्ष उन्हें निशाने पर अवश्य लेगा, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। ऐसे भी स्पीकर, स्पीकर होता है, उसे इन सब से उपर उठकर, अपने निर्णयों पर ध्यानकेन्द्रित करना चाहिए, पर झारखण्ड में ऐसा होना असंभव है।