विदेशी अखबारों में भारतीय सैनिकों के पराक्रम के चर्चे, और इधर मोदी विरोध के चलते भारत की अंग्रेजी मीडिया ने किया परहेज
भारत और चीन के सैनिकों के बीच दो दिन पहले गलवान घाटी में हिंसक संघर्ष हुए, जिसमें बीस भारतीय सैनिक शहीद हो गये और 43 चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों के हाथों मारे गये। बताया जाता है कि ये घटना तब हुई, जब भारतीय सैनिक ये देखने को जा रहे थे कि जो वायदा चीन के सैन्य अधिकारियों ने भारत के सैन्य अधिकारियों से किया था, उसे पूरा किया या नहीं, लेकिन चीनी सैनिकों ने अपने आदत के मुताबिक धोखे से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया।
चूंकि चीनी सैनिकों की संख्या अत्यधिक थी, और भारतीय सैनिकों की संख्या कम, फिर भी भारतीय सैनिकों ने पांच-पांच सैनिकों को हाथों-हाथ लिया और मरते-मरते चीनी सैनिकों को बड़ी संख्या में मारकर बता दिया कि अगर तुम सीधी-सीधी लड़ाई लड़ लिये तो तुम्हारी सारी गलतफहमी दुर हो जायेगी। इधर जैसे ही गलवान घाटी में संघर्ष एवं 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर आई, वामपंथी एवं वामपंथी सोच वाले चीनी समर्थक अखबारों व बुद्धिजीवियों को जैसे लगा कि मन की मुराद पूरी हो गई।
रही बात भारत के विपक्षी दल को तो उन्हें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक गलती मिलनी चाहिए, चाहे वो गलती हो या न हो, वे पील पड़ेंगे और ऐसा ही उनके होनहार नेताओं ने करना शुरु किया, किसी ने भारतीय सैनिकों के जाबांजी की बातों को प्रमुखता नहीं दी, सभी ने एक स्वर से भारतीय प्रधानमंत्री और भारत सरकार की खिंचाई में ही समय बिता दी। भारत के टूकड़ों पर पलनेवाले भारतीय पत्रकारों और अखबारों ने भारतीय जवानों के लाशों पर राजनीति शुरु कर दी।
जबकि इनसे अच्छे विदेशी अखबार निकले, जो भारत ही नहीं, बल्कि विश्व पटल पर चीन की गद्दारी को विश्व की जनता के समक्ष रख दिया, अगर इस बात की जानकारी आपको प्राप्त करनी है, तो आप ब्रिटिश अखबार द गार्डियन, अमेरिकी अखबार वांशिगटन पोस्ट, न्यूयार्क पोस्ट, वांशिगटन एग्जामिनर, अल जजीरा, ताइवान टाइम्स आदि आप देख सकते हैं, और भारत के अंग्रेजी अखबारों जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया, द टेलीग्राफ, हिन्दुस्तान टाइम्स आदि अखबारों को भी देख लीजिये। दुध का दुध पानी का पानी हो जायेगा।
एक बात और हमारे देश में एक ऐसा तबका भी है, जिसकी तादाद बहुत ज्यादा है, वो पाकिस्तान से तो टकराने में देर नहीं करता, पर चीन से जैसे ही टकराने की बात आती है, तो वह शोक में डूब जाता है, शायद उसे लगता है कि भारत की चीन से टकराने की ताकत नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि भारत ने सिर्फ 1962 में ही चीन से मूकी खाई, वह भी उस वक्त की परिस्थितियां कुछ ऐसी थी, नेहरु के हिन्दी-चीनी भाई-भाई ने हमें कही का नहीं छोड़ा, लेकिन उसके बाद जब भी चीन से मुठभेड़ हुई, हमारे सैनिकों ने चीनी सैनिकों के परखचे उड़ा दिये।
हमारे देश में कुछ ऐसे लोगों की एक बड़ी तादाद है, जो पीएम मोदी को देखना तक पसंद नहीं करते, ये इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं, वे चीन से भी इसके लिए हाथ मिला सकते हैं, जैसा कि आज देखने को मिला, जैसे ही 20 सैनिकों के शहीद होने की खबर आई, ये लोग बड़े ही सुनियोजित ढंग से पीएम मोदी पर प्रहार करने लगे, जैसे लगता हो कि उन्हें मन की मुराद मिल गई, जबकि दूसरे देशों में जब भी देश पर आपदा आती हैं, तो सभी मिलकर अपने प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का समर्थन करते हैं, अपने सैनिकों का हौसला बुलंद करते हैं, यहां तो लोग डायलॉगबाजी करने लगे।
जरा देखिये एक बिहार का नमूना पॉलिटिशियन कहता है कि जब से मोदी आये हैं, भारत का चीन, पाकिस्तान, नेपाल, मॉरिशस जैसे देशों से बेहतर संबंध नहीं रहा, तो भाई इस नमूने के जैसा काम कर दिया जाय, चीन की सीमा पर भारत सड़कें नहीं बनाये, अपने भारतीय सैनिकों को उसकी जरुरतों को पूरा न करें, मजाक बना दिया हैं, ऐसे-ऐसे पॉलिटिशयनों ने।
जो जानकार है, वे चीन की इस रणनीति को जानते हैं, वे जानते है कि भारत में पहला कोई प्रधानमंत्री हुआ, जिसने अपनी सरहदों की हिफाजत के लिए आधारभूत संरचना को ठीक करने का प्रयास किया। सड़कें बनवाई, पूल बनवाएं, सैनिकों को जरुरत के सामान समय पर प्राप्त हो, इसके लिए व्यवस्था कराये, चूंकि चीन पहले ही अपने इलाके में ये सारा काम करा चुका है, और जब भारत ने कराना शुरु किया तो वह अड़ंगे लगाना शुरु किया, ताकि भारत और भारत के सैनिक चीन से आगे नहीं निकल सकें, अब क्या भारत को ऐसा नहीं करना चाहिए।
क्या भारत को नेहरु की तरह चीन को भारत का भू-भाग सौंप देना चाहिए? क्या भारत को मनमोहन सिंह के शासनकाल के समय में जैसा चीन ने कहा कि आप अपना बंकर तोड़ दीजिये, वैसा बंकर तोड़कर अलग हो जाना चाहिए, अरे पहली बार तो कोई प्रधानमंत्री आया, जिसने भारत को सम्मान दिलाया, आज भारत आंख में आंख डालकर चीन को बता रहा है कि वो झूकनेवाला नहीं, आज पूरा विश्व भारत के साथ खड़ा है, जबकि टूटपूंजिये देश जिनकी कोई औकात नहीं, वे अपने पेट भरने के लिए चीन के साथ हैं, क्योंकि वे चीन से इतना कर्ज ले चुके हैं कि उन्हें चीन में ही अपना खुदा नजर आता है, जैसा कि पाकिस्तान और नेपाल।
कमाल है, जिस चीन ने अपने देश में मुसलमानों का जीना हराम कर दिया, उन्हें रोजा तक रखने नहीं दिया, नमाज तक पढ़ने नहीं दी, उस चीन के साथ पाकिस्तान खड़ा हैं, और भारत के वे लोग खड़े हैं, जो पाकिस्तान से प्रेम तथा पीएम मोदी के घोर विरोधी है, ऐसे में देश की क्या स्थिति होगी, समझने की जरुरत है, लेकिन इसके बावजूद भी अगर प्रधानमंत्री मोदी डटे हैं, भारतीय सेना डटी हैं तो इसकी प्रशंसा तो करनी ही होगी।
जहां तक भारत की जनता की बात हैं, तो वो कितनी देशभक्त हैं, वो मैं देख चुका हूं, ये वहीं जनता है, जो हर पन्द्रह अगस्त और 26 जनवरी को एक गाना गाती है, गाने के बोल है – “अपनी आजादी को हम हर्गिज मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं, लेकिन सर झूका सकते नहीं” लेकिन जैसे ही सर कटाने की बात आती है, तो वह सर झूकाने में पहला स्थान रखती है, याद करिये अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में कंधार विमान अपहरण हुआ था, जब देशवासियों से बलिदान की अपेक्षा की गई तो उस वक्त कंधार विमान में रहे लोगों के पारिवारिक सदस्यों ने कोहराम मचा दिया, अंततः तीन पाकिस्तानी आतंकी को भारत को छोड़ना पड़ा, जो आज भी भारत के लिए नासूर बने है, जिसको लेकर पाकिस्तान और चीन दोनों मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत को नीचा दिखाता रहता है। तो भाई मेरे, भारत पर मरने का ठेका, केवल भारतीय सैनिकों ने ले रखा है, आपकी कोई जिम्मेवार नहीं बनती।
अरे मैं तो आज से कह रहा हूं, अरे सरकार मजबूर है, आप तो मजबूर नहीं, आप आज संकल्प करो कि हम चीन निर्मित सामान नहीं लेंगे। आज चीन की बोलती बंद हो जायेगी, लेकिन चीन तो जानता है कि भारत के लोग, केवल बोलेंगे करेंगे नहीं। चीन तो जानता है कि भारत के पत्रकारों, वामपंथियों व बुद्धिजीवियों के आगे पैसे फेंक दो और फिर जो मन करें, वो लिखवाओं, वो बुलवाओ, चीन बुलाओ, खुब घुमाओ और फिर भारत के सैनिकों को ही मारकर, भारत की सीमा को छोटा कर दो।
ये कितने शर्म की बात है कि भारतीयों को आज तक पता नहीं चला कि जिस चीन के द्वारा निर्मित सामानों का वे उपयोग करते हैं, वही भारतीय पैसा चीन जाकर, चीन को आर्थिक व सैन्य रुप से मजबूत करता हैं, और फिर उसी पैसे की गोली, भारतीय सैनिकों की छातियों को छलनी कर देती है, ये कितने शर्म की बात है कि बार-बार चीन ने भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में नीचा दिखाता रहा और हम बड़े शान से चीन के आगे नतमस्तक होते रहे, झारखण्ड का मुख्यमंत्री रघुवर दास तो चीन से इतना प्रभावित हुआ कि वो रांची में शंघाई टावर बनाने की सोचने लगा था, अब बताइये जहां ऐसे-ऐसे लोग हो, वहां भारत की क्या इज्जत?
चलो, कहा जाता है कि सुबह का भूला, जब शाम को घर वापस आ जाये, तो उसे भूला नहीं कहते, एक बार फिर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की गूंज पूरे देश में फैली हैं, हालांकि इसका विरोध भी भारत में रहनेवाले चीनी समर्थक खुलकर कर रहे हैं, अगर सचमुच भारत के लोगों में देशप्रेम जग गया और अपने देश में बने वस्तुओं का उपयोग करने लगे तो निश्चय मानिये, इस देश को आर्थिक रुप से समृद्ध और सैन्य बल में प्रथम स्थान आने से कोई रोक नहीं सकता, फिर भी आज जो भारत की स्थिति है, दुनिया की कोई ताकत भारत को आंख उठाकर नहीं देख सकता, क्योंकि हमारी सेना किसी भी परिस्थितियों में अपने शत्रुओं को परास्त करने में निपुण है, जिसकी झलक चीन को दो दिन पहले हमारे भारतीय सैनिकों ने दिखला दी।
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