सावधान! CM रघुवर के खिलाफ कुछ भी अल-बल लिखल, त गइल बबुआ…
सावधान, आप अगर कांग्रेस, राजद, जनता दल यूनाइडेट, बसपा, सपा, भाकपा, माकपा, टीएमसी, टीडीपी, अकाली दल, झाविमो, झामुमो, आजसू आदि विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ कुछ भी लिख दीजियेगा तो बच जाइयेगा, पर जहां भाजपा के सीएम रघुवर दास के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किये, आपको कानून का डंडा ऐसा दिखाया जायेगा, कि आपकी सारी जिंदगी जेल की सलाखों के बीच बीतती नजर आयेगी, इसलिए जब तक सीएम रघुवर दास झारखण्ड के मुख्यमंत्री पद पर हैं, उनके खिलाफ कुछ मत बोलिये, क्योंकि आप पर कार्रवाई इतनी त्वरित होगी कि आप जिंदगी जीना ही भूल जायेंगे, वो ट्रक के पीछे आपने लिखा हुआ, देखा है न – लटकल त गइल बेटा। ठीक इसी प्रकार है कि सीएम रघुवर दास के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग कइल, तो गइल।
दरअसल इस राज्य में आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करने का अधिकार, सिर्फ इस राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को हैं, वे किसी वर्ग विशेष के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग कर सकते हैं, जैसे गढ़वा में ब्राह्मणों के खिलाफ किया, बेटी-रोटी कहकर। विधानसभा में अपने विरोधी दल के नेताओं को सदन में ही साला तक कह डाला। जिसके खिलाफ संपूर्ण विपक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया। आज भी भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर दूसरे दलों के नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग तथा पोस्ट विभिन्न सोशल साइट पर धड़ल्ले से हो रहा हैं, पर आज तक किसी भी भाजपा कार्यकर्ता के खिलाफ कार्रवाई तो दूर, प्राथमिकी दर्ज तक नहीं की गई, लेकिन जैसे ही सीएम रघुवर दास के खिलाफ कोई सिरफिरा आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करता है, या उन्हें काला झंडा दिखाता हैं, उसके खिलाफ प्राथमिकी बाद में, कार्रवाई पहले हो जा रही है।
ताजा उदाहरण झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के बेनागड़िया पंचायत अध्यक्ष गिरधारी मंडल का हैं, जिसे निरसा पुलिस ने गुरुवार को उसके गांव से गिरफ्तार कर लिया और इसे मुख्यमंत्री कार्यालय ने रांची से प्रकाशित प्रभात खबर को कहकर इस समाचार को पृष्ठ संख्या तीन पर दहशत फैलाने के उद्देश्य से प्रकाशित कराया, जबकि पृष्ठ तीन पर दूसरे स्थानों की खबरों को स्थान ही नहीं दिया जाता। जो अखबारों में काम करते हैं, वे इस तकनीकी पक्ष को जानते हैं, जबकि रांची से इस खबर का कोई लेना-देना ही नहीं, ये ज्यादा से ज्यादा धनबाद से प्रकाशित अखबार के लोकल पेज पर दिखाई देता, चूंकि मामला सीएम से संबंधित हैं, और सीएम के खिलाफ लिखनेवालों की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं, इसलिए ये एक धमकी हैं, उनलोगों के लिए, देखों तुम्हारी भी खैर नहीं।
मैं पिछले 30 सालों से पत्रकारिता कर रहा हूं, और इन पत्रकारीय कार्यों के दौरान हमने देखा कि सामान्य जन गुस्से में होकर या किसी भी पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता अपने विरोधियों के लिए सामान्य बोलचाल की भाषा के क्रम में आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करता है। मेरा मानना है कि सभ्य समाज में किसी भी व्यक्ति या कोई भी दल हो, उसके कार्यकर्ता को किसी के लिए भी, चाहे वह उसका कितना भी कट्टर विरोधी क्यों न हो? आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए, यह असभ्यता का प्रतीक है, साथ ही मेरा यह भी मानना है कि बड़े लोग, जो स्वयं को नेता कहते है, या किसी राज्य के मुखिया है या मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करते हैं, उनका दिल बहुत बड़ा होना चाहिए, और उन्हें ऐसे लोगों पर दया दिखाना चाहिए क्योंकि छोटे लोगों पर, सामान्य लोगों पर इस प्रकार की ज्यादती वह भी प्रशासन में होकर, ऐसा करना उन्हें शोभा नहीं देता, क्योंकि रामधारी सिंह दिनकर को देखिये, वे क्या कहते हैं…
रामधारी सिंह दिनकर की “शक्ति और क्षमा” कविता स्पष्ट कर देती हैं कि एक उदार तथा बड़े दिलवालों की सोच कैसी होनी चाहिए – “क्षमा शोभती उस भुंजग को, जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत सरल हो।”
और अंत में मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए एक कहानी जो महात्मा गांधी से संबंधित है। एक बार महात्मा गांधी को किसी शख्स ने उनके खिलाफ भद्दी-भद्दी गालियां लिखकर चार पृष्ठों की एक प्रति महात्मा गांधी को थमा दी। महात्मा गांधी ने उन पृष्ठों को बारी-बारी से पढ़ा और फिर उस प्रति की पिन निकालकर अपने पास रख ली और उन चार पृष्ठों को कचरे में फेंक दिया। जिस शख्स ने वह चार पृष्ठों की प्रति दी थी, उसे लगा था कि गांधी गुस्से में आयेंगे, उससे नफरत करने लगेंगे, पर ऐसा होता नहीं देख। उस व्यक्ति ने गांधी से पूछा कि आपको उसके लिखे बातों से गुस्सा नहीं आया।
गांधी ने कहा – एकदम नहीं, चूंकि तुम्हारे द्वारा दिये गये वस्तु में से एक ही काम की चीज थी, वह थी पिन, उसे मैंने अपने पास रख लिया, बाकी कोई काम की थी ही नहीं, इसलिए मुझे अनुपयोगी लगी, बस बात इतनी सी हैं, इसलिए इसमें गुस्से की कौन सी बात। ऐसे थे गांधी, गांधी को 2 अक्टूबर के दिन याद कर, उन्हें माला पहनाना एक बात और उनकी बातों पर अमल करना दूसरी बात है। सीएम रघुवर दास जी, आपकी हरकतें बताती है कि आप गांधी को दिल से नहीं मानते। जरुरत हैं आपको गांधी के विचारों आत्मसात करने की, पर हमें लगता है कि आप गांधी को यूज करते हैं।
एक घटना और, बात उन दिनों की है, जब ईटीवी में, मैं काम करता था। 31 दिसम्बर 2006 को धनबाद के गांधी सेवा सदन में, एक घटना घटी। वहां के कुछ पत्रकारों ने गांधी सेवा सदन में मुर्गा काटा, खाया, शराब पिया। मैंने उस घटना को ईटीवी पर दिखा दिया। परिणाम यह हुआ कि धनबाद के कुछ पत्रकारों को छोड़कर बाकी 98 प्रतिशत पत्रकार हमारे विरोध में हो गये। धनबाद से प्रकाशित बिहार ऑब्जर्वर अखबार ने 1 जनवरी 2007 से लेकर 8 जनवरी 2007 तक श्रृंखलाबद्ध हमारे खिलाफ समाचार प्रकाशित किया।
उस वक्त तत्कालीन समाचार समन्वयक गुंजन सिन्हा ने हमें उक्त अखबार के खिलाफ दो करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा ठोकने को कहा, पर मैंने गुंजन सिन्हा को यहीं कहा कि ये सब किसी के लिख देने से इज्जत नहीं जाती और न मुझे कोई मानहानि हुआ है, ऐसे भी चालीस वर्ष का हो गया हूं, चालीस वर्ष और जीउंगा, और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। मेरा मानहानि तभी होगा, जब मेरी आत्मा यह कह देगी कि मैं गलत हूं, उसके बाद तो न्यायालय भी कितना कहता रहे कि मैं देवतुल्य हूं, मेरे लिए ये शब्द मायने नहीं रखेंगे। आज भी गुंजन सिन्हा जिन्दा हैं, आप पूछ सकते हैं, और वो बिहार आब्जर्वर अखबार भी जिंदा हैं, उससे 1 जनवरी 2007 से लेकर 8 जनवरी 2007 का अखबार देख लीजिये, उसकी भाषा देख लीजिये, आप भूल जाइयेगा कि सम्मान और गाली क्या चीज होती हैं…