अपनी बात

पीएम से इंटरव्यू लेनेवाले तक के संपादकों के यहां के पत्रकारों की झारखण्ड मंत्रालय में इंट्री बंद, कोई चूं नहीं बोल रहा और न ही इस खबर को अखबारों में दे रहे, आखिर किसका डर इन्हें सता रहा?

पिछले कई दिनों से धुर्वा प्रोजेक्ट भवन स्थित झारखण्ड मंत्रालय में पत्रकारों की इंट्री बंद हैं। लेकिन मजाल है कि कोई पत्रकार चूं बोल दें कि भाई आप झारखण्ड मंत्रालय में बैठनेवाले मंत्रियों व विभागीय अधिकारियों यह तो बता दो कि आपने हमें मंत्रालय में आने से रोक क्यों लगा दिया? आश्चर्य है कि इस मंत्रालय में राज्य के मुख्यमंत्री भी बैठते हैं। आज एक पत्रकार ने मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के मुख्यमंत्री सलाहकार से भी इस संबंध में जानकारी चाही कि आखिर पत्रकारों के मंत्रालय में घुसने पर प्रतिबंध क्यों?

तब मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार ने कहा कि प्लीज हमें कोट मत करियेगा, लेकिन मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार ने कारण बताने में असमर्थता जता दी। इसके बाद उक्त पत्रकार ने राज्य के गृह विभाग व अन्य पुलिस विभागों के उच्चाधिकारियों से भी इस संबंध में जानकारी चाही, लेकिन सभी ने अनभिज्ञता ही जाहिर की। आश्चर्य यह भी है कि पत्रकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध को लेकर किसी ने अधिसूचना भी जारी नहीं की है। लेकिन यह सब कैसे हो रहा है? यह जानकर सारे पत्रकार आश्चर्यचकित हैं।

पूर्व में बार-बार केवल आईपीआरडी के व्हाट्सएप्प ग्रुप में जानकारी देकर झारखण्ड मंत्रालय में कार्यक्रम की गतिविधियों की जानकारी देनेवाला आईपीआरडी भी इस बात पर मौन है। एक बड़े अखबार के पत्रकार ने जब विद्रोही24 को यह सूचना दी, तो उसका यह भी कहना था कि उसने इस संबंध में रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष को भी इस संबंध में बताया। रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष का कहना था कि आखिर इसी बात की जानकारी और विरोध दर्ज अखबार के लोग अपने अखबारों में क्यों नहीं करा रहे हैं?

दरअसल, ज्यादातर पत्रकार यही समझते है कि रांची प्रेस क्लब पत्रकारों की एक बड़ी संस्था है, जो पत्रकारों की समस्याओं के सुलझाने के लिए बनी है। लेकिन उन्हें नहीं पता कि रांची प्रेस क्लब का काम पत्रकारों की समस्याओं को सुलझाने के लिए नहीं, बल्कि क्लब को सिर्फ बेहतर ढंग से चलाने का जिम्मा उन्हें दिया गया है। जैसे रेस्टोरेंट कैसे चले, कमरा की साफ-सफाई, क्लब की व्यवस्था इन सभी चीजों पर ध्यान देने के लिए हैं। बाकी जो समस्याएं हैं, उन समस्याओं से खुद ही जूझना होगा। हां मूर्खों की बात कुछ और हैं।

अब एक बार फिर बात आती है। रांची के बड़े-बड़े अखबारों, मीडिया चैनलों के पत्रकारों की फिलहाल रांची के धुर्वा स्थित झारखण्ड मंत्रालय में इंट्री बंद है। लेकिन अखबारों व चैनलों में बैठे संपादक जो प्रधानमंत्री तक का इंटरव्यू ले लेते हैं। उनकी हिम्मत नहीं कि वे फिलहाल अपने संवाददाताओं को झारखण्ड मंत्रालय में इंट्री करवा दें। है न आश्चर्य की बात। कुछ लोगों का कहना है कि ईडी ने जब से झारखण्ड मंत्रालय में इंट्री शुरु की, तभी से ऐसा हुआ है। जबकि सच्चाई कुछ और हैं। ये घटना बताता है कि झारखण्ड में पत्रकारों की औकात दो कौड़ी से ज्यादा की नहीं हैं। चाहे वो कोई भी हो और इसके लिए कोई दूसरा नहीं, बल्कि पत्रकार ही दोषी है।