CM हेमन्त के भय व अपनी शत प्रतिशत हार को सामने देख प्रदेश भाजपा नेताओं ने केन्द्र के इशारे पर शुरु की सौदेबाजी, किसी को कार्यकारी अध्यक्ष तो किसी को प्रवक्ता तो किसी का निलंबन रद्द करने का काम किया शुरू
भाजपा अब पूरी तरह से डर चुकी हैं। उसे पता चल गया है कि झारखण्ड, हरियाणा या जम्मू-कश्मीर नहीं हैं। उसके द्वारा शतरंज की बिसात पर बिछाई गई सारी गोटियां एक-एक कर धराशायी हो रही है। कोई इनके नेताओं को पुछ नहीं रहा हैं। भाजपा के जमीनस्तर के कार्यकर्ता तो इनकी लंका में आग लगाने के लिए बेकरार है। कुछ तो उनकी लंका में आग लगाकर तमाशे देख रहे हैं तो कोई (रवीन्द्र राय और अमरप्रीत सिंह काले जैसे लोग) इस बात के लिए इंतजार कर रहे है कि उनकी केन्द्र के नेताओं से सौदेबाजी हो जाये ताकि उनकी बैठे-बैठाए राजनीति चमक जाये।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इसका फायदा ऐसे नेताओं को मिल भी रहा है। सबसे पहले इसका फायदा अमरप्रीत सिंह काले को मिला। जैसे ही रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू दास को जमशेदपुर पूर्व से टिकट मिला और वहां के धुरंधर भाजपा नेता शिव शंकर सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामजदगी का पर्चा दाखिल कर ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास को चुनौती दी।
भाजपा नेता व ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास के हाथ-पांव फूल गये। उसने सबसे पहले सिक्ख वोट न बंटे। इसके लिए अमरप्रीत सिंह काले को अपनी ओर लाने का प्लान बनाया। चूंकि इन्होंने (रघुवर दास ने) ही अमरप्रीत सिंह काले को छह वर्षों के लिए पार्टी से निलबिंत करवाया था। अब देखा कि उनकी बहू की हार सुनिश्चित है तो उन्होंने सबसे पहले अपने बहू को अमरप्रीत सिंह काले के घर जाकर उनका आशीर्वाद लेने को कहा। इधर उनकी बहू अमरप्रीत सिंह काले के घर गई और इधर रघुवर ने केन्द्र व प्रदेश के नेताओं को अमरप्रीत सिंह काले का निलंबन खत्म कर एक बड़ा पद देने का दबाव बनाया।
जैसे ही उधर रघुवर दास का दबाव बना। प्रदेश नेताओं ने बिना देर किये अमरप्रीत सिंह काले को निलंबन मुक्त तो छोड़ दीजिये, प्रदेश प्रवक्ता बना दिया। अब रवीन्द्र राय (भूमिहार जाति से आते हैं) को देखिये। जैसे ही इन्होंने विद्रोह का बिगुल फूंका। बड़े-बड़े नेता इनके घर पहुंच गये। सौदेबाजी शुरु हुई। रवीन्द्र राय शांत हो गये।
लेकिन जैसे ही भूमिहार जाति के एक और नेता निरंजन राय ने दो दिन पहले धनवार सीट से ऐलान किया कि वो चुनाव लड़ेगा। बाबूलाल मरांडी जो धनवार सीट से ही भाजपा के प्रत्याशी बनाये गये हैं। उनके हाथ-पांव फूल गये। उन्हें लगा कि अब रवीन्द्र राय को ऐसे छोड़ना ठीक नहीं रहेगा, नहीं तो हार का मुंह देखना पड़ेगा। आज रवीन्द्र राय को भाजपा के प्रदेश का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और इसकी सूचना केन्द्र के नेताओं द्वारा जारी कर दी गई।
यही नहीं उधर पलामू में भी भाजपा की हालत खराब है। ऐसे में वहां से बहुत सालों से निलंबित चल रहे रवीन्द्र तिवारी को भी आज निलंबन से मुक्त कर दिया गया। इसी प्रकार अभी कई ऐसे भाजपा नेता हैं। जिनके नहीं रहने से भाजपा को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ सकता हैं। इसको लेकर केन्द्र और प्रदेश के भाजपा नेता बेचैन हैं। ये ऐसे निलंबित चल रहे भाजपा नेताओं को ढूंढ-ढूंढ कर निलंबन मुक्त कर रहे हैं। कुछ को सौदेबाजी कर उन्हें मनचाहा पद थमा दे रहे हैं और वे सब उन पदों को पाकर चुप्पी साध ले रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जो सौदेबाजी में विश्वास करते हुए अपने अपमान का भी सौदा कर रहे हैं। दरअसल वे नेता हो ही नहीं सकते और न ऐसे नेताओं का जनता मान रखती हैं। न इनके निलंबनमुक्त होने के बाद इनके कहने पर किसी दल को वोट दे देती है। जनता जानती हैं कि ये डगरा पर के बैगन हैं। जनता ये भी जानती है कि ये मौकापरस्त हैं। जनता ये भी जानती है कि जैसे मौका पड़ने पर लोग गधे को भी बाप कहते हैं।
राजनीतिक पंडित कहते हैं कि ये सभी उसी लोकोक्ति के आधार पर बाप बनाये गये हैं। इनकी इज्जत पार्टी में दो कौड़ी की भी नहीं। आज चुनाव समाप्त हो जाये तो ये फिर दो कौड़ी के हो जायेंगे और पार्टी इन्हें धक्के मारकर निकाल देगी। लेकिन इन सभी को इन सभी चीजों से क्या मतलब? ये तो तब भी यही कहेंगे कि पहली बार अपमानित थोड़े ही हुए हैं। हम तो हमेशा अपमानित होने के लिए ही बनें हैं। इसलिए एक बार और अपमान सही।