रांची प्रेस क्लब का पहला आम चुनाव, पत्रकार मतदाता परीक्षा देने को तैयार
कल परीक्षा उन पत्रकार मतदाताओं की भी हैं, जो पत्रकारिता में सुधार के लिए लंबा-लंबा फेकते हैं, क्योंकि कल के ही मतदान से पता चल जायेगा कि रांची प्रेस क्लब का भविष्य क्या है? क्योंकि अभी तक की जो स्थिति थी, वह हमने देख ही लिया, आगे देखना बाकी है। जब से चुनाव प्रक्रिया प्रारम्भ हुई है, तब से मैं देख रहा हूं कि रांची प्रेस क्लब के महत्वपूर्ण पदों पर काबिज करने के लिए रांची के विभिन्न संस्थानों के लोग लग गये यानी वे चाहते हैं कि रांची प्रेस क्लब उनके संस्थान का गुलाम बन जाये, वे चाहते है कि रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारी उनके इशारों पर नाचे और सत्ता में शामिल दल तथा अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं का समूह उनके आगे-पीछे करें, जैसा कि आम जगहों पर होता हैं। अभी तक की जो रिपोर्ट हैं, उसमें किसी भी पद के लिए खड़े प्रत्याशी ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं किया है कि,
- वह चुनाव लड़ क्यों रहा हैं?
- उसकी सोच क्या हैं?
- उद्देश्य क्या है?
- उसने आनेवाले समय के लिए कौन-कौन से एजेंडे तय किये हैं?
जब प्रत्याशियों के पास दृष्टिकोण का अभाव हो, सोच और उद्देश्य स्पष्ट न हो तथा एजेंडे का पता न हो, तो स्पष्ट है कि संबंधित प्रत्याशी स्वहित के लिए चुनाव में हैं।
आश्चर्य इस बात की है कि जिन लोगों ने सोचा था कि रांची प्रेस क्लब का चुनाव सभी चुनावों से हटकर होगा, वहीं यह चुनाव स्पष्ट रुप से बता रहा है कि यह पत्रकारों का चुनाव न होकर, चैंबर का चुनाव हो गया हैं। जैसे चैंबर ऑफ कामर्स के चुनाव में टीमें घोषित होती है, उसी प्रकार यहा भी कई टीमें पैदा हो गई और जो कल तक एक-दूसरे के खिलाफ हुआ करते थे, गालियां दिया करते थे, वे सारे गिले-शिकवे दूर करते हुए, सिर्फ चुनाव जीतने के लिए अनैतिक गठबंधन कर चुके हैं। आश्चर्य इस बात की भी है कि इन टीमों को जीताने के लिए उन संस्थानों में कार्यरत कई दिग्गजों ने भी हामी भर दी, यानी स्वयं को बुद्धिजीवी कहलानेवाला वर्ग, टीमों की गिरफ्त में हैं।
आज अहले सुबह एक प्रत्याशी से हमारी मोबाइल के माध्यम से बातचीत हुई, उसने बताया कि वह तो सपने में भी नहीं सोचा था कि यहां गुटबाजी होगी, लोग टीम बनाकर लड़ेंगे। वह तो स्वतंत्र रुप से लड़ रहा था, उसके कुछ सपने थे, उन सपनों को लेकर वह चुनावी मैदान में आया था, पर उसे भी विभिन्न टीमों में जबर्दस्ती रख दिया गया था, उसे समझ में नहीं आ रहा था, क्या करें या क्या न करें, जिनसे कभी बात नहीं हुई थी, वे उससे बात कर रहे थे और अपनी टीम में शामिल करने की योजना को मूर्त्तरुप दे रहे थे। आश्चर्य इस बात की भी थी कि लोग सिर्फ और सिर्फ जीत को प्राप्त करने के लिए अपने उसूलों को अपने अखबारो की दीवारों की खूंटी पर टांग चुके थे, उसने मुझसे कहा कि छोड़िये सर आपका आशीर्वाद हमें चाहिए और कुछ नहीं, ये दर्द हैं एक प्रत्याशी का, जिसके मन में भाव हैं, कुछ करने का।
कुछ लोगों को तो मैंने देखा कि उधर प्रत्य़ाशी खड़े हो रहे हैं और इधर सोशल साइट पर उनकी झूठी गुणगान शुरु कर चुके हैं, जबकि उसी में से कई को मैने विशुद्ध रुप से ऐसे –ऐसे कुकर्मों में लिप्त देखा है कि सर शर्म से झुक जाती है कि ऐसे भी यहां पत्रकार है, पर ये तो अपना – अपना नजरिया हैं, किसी को लंपटों में भी भगवान नजर आ जाये, तो क्या कहने, ये तो उसकी सोच है।
चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों ने कई के मोबाइलों को खुब छकाया है, कभी मोबाइल से प्रचार तो कभी एसएमएस के माध्यम से प्रचार ने खूब शमा बांधा है। हमारे मोबाइल पर भी कई महानुभावों के एसएमएस आये, जो मैं मानता हूं कि गलतियों से आ गये, क्योंकि जिस माध्यम से एसएमएस आ रहे थे, उस माध्यम को क्या पता कि एसएमएस भेजनेवाले प्रत्याशी और हमारे बीच उसका क्या संबंध हैं? जिन्होंने हमें गालियों से नवाजा और जिन्होंने हमें रांची प्रेस क्लब के सदस्य से ही हटाने की गुजारिश कोर कमेटी के बीच रख दी थी, उनके भी एसएमएस हमारे पास आ गये थे, पर सच्चाई यह भी है कि सिर्फ एक को छोड़कर किसी ने व्यक्तिगत तौर पर हमसे मिलकर वोट नहीं मांगे। शायद लोगों को लगता हो कि एक वोट से क्या होता है? जबकि सामूहिकता में यहां वोट देनेवालों और नाक रगड़नेवालों की लाइन लगी हो। हमारा मानना है कि यहीं पर रांची प्रेस क्लब का लोकतंत्र प्रभावित हो जाता है, वोट एक हो या सामूहिकता में किसी बक्से में बंद, सब की अहमियत है, हमें लगता है कि ऐसे कई लोग होंगे, जिनके पास प्रत्याशी नहीं पहुंचे होंगे, कई ने तो विभिन्न अखबारों में जाकर जनसम्पर्क अभियान चलाया तो किसी ने बैठकर ही मोबाइल घुमा दिये।
अंततः कल मतदान है, एक बार फिर कहूंगा, अपने मन-मस्तिष्क को साफ करिये, मौका मिला है, एक आदर्श स्थापित कीजिये, दीजिये चुनावी परीक्षा और कहिये कि हम पत्रकार बुद्धिजीवी है, लोकतंत्र को मजबूत करने में हमारी अहम भूमिका है, गलत लोगों को वोट नहीं देंगे। जो हमारी छाती को रौंदते हैं। जो हमारे भाइयों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देते है। जो हमारे सम्मान के साथ खेलते है। जो हमें देखकर मुंह फेरते हैं। जो हमें पत्रकार मानने से इनकार करते हैं। जो स्वार्थी और असामाजिक हैं, बहुरुपिये हैं। उन्हें वोट न कर, हम आदर्श स्थापित अवश्य करेंगे।