पहले अपनी संतानों को विदेशों में पढ़ानेवाले/इलाज करानेवाले भाजपाई नेता तो अपने घर में शत प्रतिशत स्वदेशी अपनाएं
देश के केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि उनके गृह मंत्रालय ने यह निर्णय लिया है कि सभी केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की कैंटीनों और स्टोरों पर अब सिर्फ स्वदेशी उत्पादों की ही बिक्री होगी। एक जून 2020 से देश भर की सभी CAPF कैंटीनों पर यह लागू होगा, जिसकी कुल खरीद लगभग 2800 करोड़ रुपये के करीब है। इससे लगभग दस लाख CAPF कर्मियों के पचास लाख परिजन स्वदेशी उपयोग करेंगे।
अमित शाह ने देश की जनता से भी अपील की है कि वे देश में बने उत्पादों को अधिक से अधिक उपयोग में लायें व अन्य लोगों को भी इसके प्रति प्रोत्साहित करें। यह पीछे रहने का समय नहीं, बल्कि आपदा को अवसर में बदलने का समय है। हर भारतीय अगर भारत में बने उत्पादों (स्वदेशी) का उपयोग करने का संकल्प लें, तो पांच वर्षों में देश का लोकतंत्र आत्मनिर्भर बन सकता है।
चूंकि कल ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने और लोकल प्रोडक्टस (भारत में बने उत्पाद) उपयोग करने की अपील की है, अगर सचमुच यह जमीन पर उतर जाता है तो निश्चय ही आनेवाले समय में भारत विश्व का नेतृत्व करने लायक बन सकता है, पर क्या ये केवल गृह मंत्रालय के अधीन काम करनेवाले जवानों पर लागू कर देने से हो जायेगा, या देश व राज्य के अंदर चलनेवाले सभी मंत्रालयों तथा उनके अंदर चलनेवाले सारे विभागों में काम करनेवाले बड़े-बड़े मठाधीशों द्वारा भी स्वदेशी का अनुकरण किया जायेगा।
ज्यादातर देखा जाता है कि सामान्य जनता तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बातों में आकर, उनकी बातों को अनुकरण करने लगती है, पर भाजपा के नेता एवं कार्यकर्ता ही सर्वाधिक इस प्रकार के अनुरोध की धज्जियां उड़ा देते हैं। जरा सोचिये, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी खुद को कहनेवाली भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता व कार्यकर्ता संकल्प कर लें कि हमें स्वदेशी अपनाना है तो दिक्कत कहां है? करोड़ों की संख्या में जिनके सदस्य है, वे अगर स्वदेशी अपनाने लगे, तो सच पूछिये, गांवों की किस्मत ही बदल जाये, पर यहां गांवों की किस्मत कौन बदलना चाहता है, यहां तो हर चीज में राजनीति घुसी है, वह भी देशहित के लिए नहीं, बल्कि स्वहित में, ऐसे में ये आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात की भी हवा निकल जाती है, तो इसे गलत मत समझियेगा।
तभी तो करोड़ों में खेलनेवाले भारतीय मीडिया हाउस व चीन में बैठे चीन के इशारों पर अपनी कलम गिरवी रखनेवाले लोगों का समूह, यह बात लिखने से गूरेज नहीं करता कि भारत के लोग चीनी सामग्रियों के बहिष्कार की बात तो करते हैं, पर सच्चाई यह है कि वे सिर्फ बातें करते हैं, अंत में जब वे बाजार जाते हैं तो उनकी प्राथमिकताओं में चीनी सामग्रियों को खरीदना ही होता है, चाहे चीनी सामग्री बेकार ही क्यों न हो?
चाहे चीन अपने ही मित्र देश को मास्क की जगह अंडरवीयर से बने मास्क क्यों न पहुंचा देता हो, चाहे चीन की सेना भारतीय सैनिकों के साथ क्रूरता से ही क्यों न पेश आता हो, चाहे चीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को प्रश्रय ही क्यों न देता हो, यह सच्चाई है। सच्चाई है कि देश को स्वतंत्रता तो मिली, पर जिनके हाथों में देश की युवाओं में चरित्र व देशभक्ति भरना था, उन्हें अपनी कुर्सी दिखाई पड़ रही थी। उन्होंने चरित्र और देशभक्ति की जगह धर्मनिरपेक्षता की ऐसी पट्टी पढ़ा दी कि देश भाड़ में चलता चला गया और उन नेताओं की कुर्सी कई सालों के लिए सदा के लिए निबंधित हो गई, भारत कमजोर होता चला गया।
ये तो ईश्वरीय कृपा है तथा भारत की जड़ें मजबूत हैं, जो भारत को अभी भी जिन्दा रखा है, नहीं तो इन नेताओं ने तो कब का सत्यानाश कर रखा था। जरा देखिये न, इनके बेटे-बेटियों की तबियत खराब हो तो ये विदेश जाकर इलाज करायेंगे। जब इनके बच्चों की पढ़ाई की बात हो, तो ये विदेश जाकर अपने बच्चों को पढ़वायेंगे और हमें स्वदेशी की पाठ पढ़ाने के लिए लेक्चर देंगे।
अरे पहले खुद सुधरो, उसके बाद दुसरों को सुधारो। गांधी के स्वदेशी आंदोलन से सीखो। गांधी ने खुद स्वदेशी अपनाई और उसके बाद लोगों से उन्हें कहने की जरुरत ही नहीं पड़ी, लोग खुद स्वदेशी अपनाते चले गये, और जैसे ही देश स्वतंत्र हुआ, उन्हीं के नेताओं ने स्वदेशी को कांग्रेसी कार्यालयों के खूंटे में टांग दिया, और विदेशियों को न्यौता देना शुरु किया। नतीजा सामने है। जो चीन भारत से कही पीछे था, वो चीन आज अमरीका को चुनौती दे रहा हैं और हम पाकिस्तान से उपर उठ ही नहीं पाये।