अपनी बात

उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये। पयः पानं भुजंगानां केवलं विषवर्द्धनम्।।

बिहार का एक नमूना शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने श्रीरामचरितमानस पर एक विवादास्पद बयान क्या दे दिया, भगवान राम की कृपा देखिये, वो भी विख्यात हो गया। जब राम से विवाद कर रावण विख्यात हो गया, तो चंद्रशेखर यादव क्यों नहीं होगा? आजकल अपने देश में एक प्रकार का फैशन चल रहा हैं, भले ही एक पैसे का ज्ञान हो या न हो, पर संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ऐसे बयान जरुर दे देंगे, जिससे समाज में बिखराव पैदा हो।

हालांकि भारत की मिट्टी में जन्मा सनातन धर्म हमेशा से सहिष्णु रहा है, इसलिए इस मामले में भी उसने सहिष्णुता दिखाई। हालांकि जिस पार्टी से चंद्रशेखर यादव अपना चेहरा दिखाता हैं, उसके प्रमुख नेता चंद्रशेखर यादव की तारीफ में कसीदे ही पढ़ दिये, ये नेता थे – तेजस्वी यादव और जगतानन्द, हालांकि चंद्रशेखर यादव के बयान की थोड़ी-बहुत आलोचना शिवानन्द ने की, पर जैसे ही तेजस्वी का बयान आया, उसने भी चुप ही रहना ज्यादा पसन्द किया।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो अभी जब तक बिहार विधानसभा के चुनाव संपन्न नहीं हो जाते, इस प्रकार के बयान अभी और राजद की तरफ से आयेंगे, ताकि हिन्दू समाज में बिखराव हो, लोग एक-दूसरे से लड़ पड़े और इसका फायदा राजद को मिले, क्योंकि यादववाद के कारण तो यादव उनके साथ हैं ही, सनातनियों/हिन्दूओं की आस्था पर प्रहार करने से मुस्लिम भी काफी प्रसन्न हो जायेंगे और फिर उसकी पार्टी की चल पड़ेगी, रही नीतीश कुमार की, तो राजद ने तो उनका नामकरण संस्कार ही ‘पलटू राम’ से किया हैं तो ऐसे व्यक्ति की बात ही क्या करनी।

हां, इस बीच पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर ने एक बेहतरीन काम किया है। महावीर मंदिर प्रबंधन ने इसे लेकर 22 जनवरी को एक संगोष्ठी बुला दी हैं, जिसमें पक्ष-विपक्ष को खुला आमंत्रण दे दिया है और कहा है कि इस शास्त्रार्थ में आ जाइये, जो सत्य होगा, उसे सभी स्वीकार करें। हमें लगता है कि जिन्हें श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य से चिढ़ हैं, जो इसे नफरत का ग्रंथ बताते हैं, वैसे चंद्रशेखर यादव व चंद्रशेखर यादव जैसे लोगों को जाना चाहिए और अपना ज्ञानवर्द्धन करना चाहिए। इसके संयोजक भवनाथ झा बनाये गये हैं। जो महावीर मंदिर से निकलनेवाली पत्रिका ‘धर्मायण’ के संपादक भी है।

भवनाथ झा ने अपनी भावना को सोशल साइट पर भी उल्लेखित किया है। जो इस प्रकार है –  “भारतीय स्वस्थ परम्परा रही है- वादे वादे जायते तत्त्वबोधः। किसी धार्मिक, साहित्यिक अथवा किसी भी मुद्दे पर शास्त्रार्थ से वास्तविकता का ज्ञान होता है। रामचरितमानस एवं तुलसीदास पर आज जो बातें पक्ष एवं विपक्ष में कही जा रहीं हैं, उससे समाधान कम हो रहे हैं, भ्रान्तियाँ अधिक फैल रही हैं।

इन भ्रान्तियों से कहीं न कहीं हम बिखराव की ओर बढ़ रहे हैं। हमें इससे बचना होगा। हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि हम सब मिलकर एकसाथ होकर समाज तथा राष्ट्र को मजबूत करें और उन्नति के रास्ते पर चलें। महावीर मन्दिर पटना के द्वारा गोस्वामी तुलसीदास पर सेमिनार का आयोजन किया है, जिसमें दोनों पक्षों से वक्ता आमन्त्रित हैं। जिन्हें जो कहना हो, जो साबित करना हो, मानक प्रमाणों के साथ, लिखित आलेख के साथ इस विद्वद्-गोष्ठी में वे आमन्त्रित हैं। महावीर मन्दिर, पटना के द्वारा समाज, धर्म तथा राष्ट्र के हित में यह आयोजन किया गया है।

इस सेमिनार के लिए महावीर मन्दिर की पत्रिका ‘धर्मायण’ के सम्पादक प. भवनाथ झा (मुझे) को संयोजक बनाया गया है। इस सेमिनार में पुष्ट प्रमाणों के साथ पक्ष अथवा विपक्ष में विषय केन्द्रित वार्ता के लिए इच्छुक विद्वान् उनके सम्पर्क न. 9430676240 पर ह्वाट्सएप अथवा वार्तालाप से सम्पर्क कर सकते हैं, अथवा dharmayanhindi@gmail.com पर संदेश भेज सकते हैं। कार्यक्रम को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए यह आवश्यक है कि विद्वानों का प्रस्ताव वक्तव्य के शीर्षक सहित हमारे पास दिनांक 20 जनवरी की संध्या तक आ जाये, ताकि कार्यक्रम की रूपरेखा निर्धारित कर दि. 21 को वक्ताओं को कार्यक्रम के एक दिन पूर्व विधिवत् सूचना दी जा सके।”

राजनीतिक पंडितों की मानें तो उनका कहना है कि हालांकि बार-बार हो रहे विवाद को शांत करने के लिए महावीर मंदिर प्रबंधन ने एक बेहतर विकल्प लोगों को दिये हैं, होना तो ये चाहिए कि इसका भरपूर लोग फायदा उठाएं व देशहित व समाजहित में स्वयं को लगाये, पर डर तो यह भी है कि सुभाषित कहता है –

उपदेशो ही मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।

पयः पानं भुजंगानां केवल विष वर्द्धनम्।।

अर्थात् मूर्खों को उपदेश देने से उनका क्रोध शांत नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सर्प को दूध पिलाने से उनका विष खत्म नहीं होता, बल्कि और बढ़ता है। अब जिन्होंने श्रीरामचरितमानस पर आक्षेप डालकर समाज में विषवमन किया हैं, क्या वे महावीर मंदिर प्रबंधन के इस सुंदर कार्य के आगे नतमस्तक होंगे। हमें तो नहीं लगता, क्योंकि इस प्रकार के कार्य से तो उनका समाज व देश में हिंसा फैलानेवाला काम ही बंद हो जायेगा। समस्या तो यही है।

नहीं, तो जरा पूछिये उस चंद्रशेखर यादव से कि भ्रांतियां और खामियां तो और भी धर्मों में हैं, जरा बोलकर उसके खिलाफ देखें, उसकी सारी हेकड़ियां मिनटों में न निकल गई तो कहना और उसकी पीठ थपथपानेवाले जगतानन्द और तेजस्वी केन्द्र से जेड सुरक्षा की मांग नहीं करने लगे तो फिर कहना, क्योंकि इन राजद प्रोडक्टों को तो सारे छेद (जो हैं भी नहीं), सिर्फ और सिर्फ सनातन धर्मावलंबियों की पुस्तकों, उपनिषदों, शास्त्रों, महाकाव्यों व पुराणादियों में ही दिखाई देते हैं। अन्य धर्मों में तो इन्हें केवल भ्रातृत्व ही दिखाई देता हैं।