धर्म

आत्मपरिवर्तन के लिए अहं का परित्याग, दृढ़ इच्छाशक्ति, योग व ध्यान के प्रति निष्ठा व योगदा से जुड़े गुरुओं के बताये मार्ग पर चलना आवश्यकः ब्रह्मचारी प्रह्लादानन्द

आप का समय किनके साथ ज्यादा बीतता है? आप कहां ज्यादा समय बीताते हैं? यह निर्णय आपके जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर आपके साथ रहनेवाले सही लोग हैं। तब ऐसे में आपका जीवन सकारात्मकता की ओर जायेगा, आप बेहतर स्थिति में होंगे, आपका सामान्य जीवन भी शाश्वत आनन्द की ओर प्रेरित होता रहेगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं हैं तो फिर आपके जीवन में आत्मपरिवर्तन की यात्रा की बात भी व्यर्थ है। ये बातें आज योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए ब्रह्मचारी प्रहलादानन्द ने योगदा भक्तों के बीच में कही।

उन्होंने कहा हर व्यक्ति चाहता है कि वो शांति और आनन्द में रहे। लेकिन ये पल तभी आ सकता है। जब आपके उपर गुरु और ईश्वर की कृपा सदैव बनी  रहे। आखिर गुरु और ईश्वर की कृपा कब किसी व्यक्ति के उपर होती हैं, क्या आपने कभी इस पर विचार किया है? जब तक आप स्वयं में परिवर्तन लाने की कोशिश नहीं करेंगे, आप की चेतना जागृत कैसे होगी? आप की चेतना उस सबकॉन्शियस मन, फिर उसके बाद सुपर सबकॉन्शियस मन तक कैसे पहुंचेगी?

उस सुपर सबकॉन्शियस मन तक पहुंचने के लिए आपको ध्यान की ओर आकृष्ट होना होगा। आपको गहरे ध्यान में जाना होगा, क्योंकि यह गहरा ध्यान ही आपको शांति और आनन्द के मार्ग की ओर ले जाने को प्रेरित करेगा। ध्यान आत्मपरिवर्तन की यात्रा के लिए परमावश्यक है। इसे नजरंदाज नहीं किया सकता। उन्होंने कहा कि आपके जीवन में धैर्य और दयालुता का भी होना जरुरी है, क्योंकि ये ध्यान के लिए आवश्यक हैं।

उन्होंने कहा कि आत्मपरिवर्तन में गुरु जी की टींचिंग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनके द्वारा बताये गई बातें जो पाठमालाओं में निहित हैं। उसका गहरा अध्ययन, उसे बार-बार पढ़ने और समझने तथा उनके बताये मार्ग पर चलने का अभ्यास आपके जीवन को पूर्ण रूपेण परिवर्तित करने में सहायक  है।

लेकिन ये सबके लिए सबसे पहले आपके अंदर इच्छाशक्ति का होना बहुत जरुरी है। अगर आपके अंदर इच्छाशक्ति हैं, तो आप अपने जीवन को परिवर्तन कर सकते हैं और अगर इच्छाशक्ति का अभाव है तो आप किसी भी हालत में आपका कोई भी कुछ भी नहीं कर सकता। क्योंकि जो करना हैं, वो आपको ही करना हैं, आपके अंदर शांति और आनन्द को प्रतिस्थापित करने के लिए आपका दूसरा कोई सहायक नहीं बन सकता। जो करना है, आपको ही करना है। इसलिए आपके अंदर इच्छाशक्ति का होना बहुत ही जरुरी है। ये इच्छाशक्ति भी गुरु और ईश्वर की कृपा से ही बलवती होती जाती है। इसलिए आप अपने गुरु और ईश्वर के प्रति प्रेम करना सीखें।

उन्होंने यह भी कहा कि आपके जीवन में जो अहं हैं। उसकी समाप्ति आवश्यक है। बिना अहं के परित्याग के आप की आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती और न ही आप आत्मपरिवर्तन की ओर बढ़ सकते हैं। अहं सबसे बड़ी बाधा है, आपके आत्मपरिवर्तन में, इसलिए अहं का परित्याग कर स्वयं को बेहतर स्थिति में लाने का उपाय ढूंढे और इसका सबसे सुंदर तरीका हैं योग और ध्यान, जो योगदा सत्संग के गुरुओं द्वारा बताई गई हैं। जितना आप इसमें डूबेंगे आप उतने ही आनन्द व शांति में स्वयं को पायेंगे।

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