देश में पहली बार शिशु हत्या और परित्याग को लेकर सिटिजन्स फाउंडेशन और पा-लोना ने की परिचर्चा आयोजित
हमारा मौजूदा सिस्टम शिशु हत्या और परित्याग को रोकने के लिए कितना सक्षम है, हम उसका बेहतर इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं, इस लड़ाई में हमारे स्टेकहोल्डर्स कौन–कौन हो सकते हैं, ये तय करना बहुत जरूरी है। उक्त बातें आईसीपीएस डाईरेक्टर डी.के. सक्सेना ने कहीं। वह पा–लो ना और सिटिजन्स फाउंडेशन्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे।
मालूम हो कि आश्रयणी मीडिया एसोसिएट्स द्वारा शुरू की गई और आश्रयणी फाउंडेशन द्वारा समर्थित मुहिम पा–लोना और सिटिजन्स फाउंडेशन के द्वारा मंगलवार को ओवरब्रिज स्थित सिटिजन्स फाउंडेशन के कार्यालय में शिशु हत्या और शिशु परित्याग के कानूनी पक्षों पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया था। उद्देश्य था कि इस जघन्य अपराध को दर्ज करने और बच्चों का जीवन संरक्षित करने के रास्ते में आ रही बाधाओं को दूर किया जाए। देश में पहली बार इस विषय पर ये परिचर्चा आयोजित की गई थी।
इसे संबोधित करते हुए डी.के. सक्सेना ने इस विषय पर काम करने, इसे खंगालने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की। उन्होंने कहा कि स्टेट लेवल पर इस विषय में क्या किया जा सकता है, इसे देखना होगा। इससे पूर्व चर्चा की शुरूआत दिवंगत वरिष्ठ पत्रकारों ललित मुर्मू और पुष्पगीत जी की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखकर की गई।सिटिजन्स फाउंडेशन के सचिव गणेश रेड्डी ने उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया।
पालोना की फाउंडर व संपादक मोनिका गुंजन आर्य ने शिशु हत्या और परित्याग के विभिन्न पक्षों, विशेषकर कानूनी पहलुओं, पालोना मुहिम, इसकी गतिविधियों, इसके परिणामस्वरूप आए बदलावों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। विशेषकर जिन सेक्शंस की वजह से शिशु हत्या पर कानूनी कार्रवाई को लेकर भ्रम होता है, उन पर विस्तार से चर्चा हुई।
झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर ने कहा कि यह मुद्दा बहुत गंभीर है, इस पर काम करने के लिए आयोग हर तरह से साथ है। खाद्य आयोग से जुड़ीं रंजन चौधरी ने कहा कि बच्चों को त्यागने वाले माता–पिता की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करनी होगी, उन्हें छोड़ देना सही नहीं है।
बाल शाखा की ओर से कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पीयूष सेनगुप्ता ने पुलिस के द्वारा एफ आई आर दर्ज करने में होने वाले आनाकानी को लेकर जानकारी दी और जेजे एक्ट के सेक्शन 38 (1) में संशोधन की जरूरत पर बल दिया।
कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि पा–लो ना द्वारा एकत्रित आंकड़ों से पता चलता है कि शिशु परित्याग के मूल में केवल जेंडर नहीं है, बल्कि ये खतरा लड़कों पर भी मंडरा रहा है। उन्होंने मृत बच्चों को जल में बहाने को धर्म सम्मत लेकिन कुरीति बताया और इसे जागरुकता के माध्यम से रोकने पर बल दिया।
परिचर्चा के दौरान उपस्थित अतिथियों के द्वारा कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए। इस समस्या के निदान को लेकर एक प्रपोजल तैयार कर सरकार को सौंपा जाएगा, यह भी सहमति बनी।श्रीमती आर्य ने कहा कि उनका मकसद इस समस्या को लेकर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को एक मंच पर लाना था, अब आगे इसे सिस्टम को संभालना होगा, क्योंकि बिना उनकी भागीदारी के इसका निदान संभव नहीं.
कार्यक्रम के अंत में डॉ सुनीता यादव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। मंच संचालन सुश्री श्रीमाली सुमि ने किया, कार्यक्रम में बाल कल्याण समिति सदस्य श्रीकांत, तनुश्री सरकार, साहित्यकार संगीता कुजारा टाक, हाईकोर्ट की एडवोकेट रेणुका त्रिवेदी, सोशल एक्टिविस्ट रश्मि साहा, पूर्व सीडब्लूसी सदस्य त्रिभुवन शर्मा, राजा दुबे, सीता स्वांसी, आदि ने भी विचार रखे। इसे सफल बनाने में प्रोजेश दास, प्रशांत कुमार झा, अमित कुमार, अतुल, अभिलाषा, अनमोल, प्रभजोत कौर का विशेष योगदान रहा।