अपनी बात

पहली बार झारखण्ड विधानसभा में पत्रकारों (प्रेस दीर्घा समिति के सदस्यों को छोड़) को पास देने के बावजूद प्रेस दीर्घा तक जाने से रोका गया, कई पत्रकारों ने इस घटना से स्वयं को किया अपमानित महसूस

कल झारखण्ड विधानसभा में घटित घटना का असर झारखण्ड के सामान्य पत्रकारों पर भी पड़ा। आज जैसे ही वे समाचार संकलन करने के लिए विधानसभा पहुंचे। विधानसभा के मुख्य द्वार पर खड़े मार्शल ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। मार्शलों का कहना था कि वे ही पत्रकार सिर्फ विधानसभा के अंदर प्रवेश करेंगे, जो झारखण्ड विधानसभा प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य है।

मार्शलों का कहना था कि उन्हें उपर से आदेश हैं। वे किसी की बात नहीं मानेंगे, सिर्फ और सिर्फ दीर्घा समिति के सदस्य ही अंदर जा सकते हैं। दूसरा कोई नहीं। इस आदेश से वे पत्रकार आज गर्व महसूस कर रहे थे, जो प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य हैं। वे बड़े ही गर्व से दीर्घा समिति का पहचान पत्र मंगलसूत्र की तरह गले में धारण करते हुए विधानसभा के अंदर प्रवेश कर रहे थे। मार्शल भी बड़े ही आदर के साथ उन्हें अंदर प्रवेश करा रहे थे।

इधर जो पत्रकार प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य नहीं थे। लेकिन जिन पत्रकारों की उपरि पहुंच थी। उन्होंने उपरि पहुंच का इस्तेमाल किया। विधानसभा के अधिकारियों और जनसम्पर्क अधिकारी से सम्पर्क साधा। उन अधिकारियों ने तुरन्त विधानसभा के मुख्य द्वार पर खड़े मार्शलों को दिशा-निर्देश दिये। वे पत्रकार भी विधानसभा के अंदर प्रेस दीर्घा तक पहुंच गये। लेकिन जिन्होंने ईमानदारी व निष्ठा के बल पर पत्रकारिता की सौंगध खा रही थी। उनके लिए आज का दिन अपमान से कम नहीं था, क्योंकि उन्होंने ऐसी घटना पहले कभी नहीं देखी थी।

विधानसभा में घटित पहली इस घटना का प्रभाव यह पड़ा कि जिन पत्रकारों को हरा कार्ड विधानसभा के प्रेस दीर्घा तक जाने के लिए सत्रावधि तक के लिए जारी हुआ था। वे स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे थे। सैकड़ों की संख्या में समाचार संकलन को आये पत्रकार हतप्रभ थे। महिला पत्रकारों की तो और बुरी हालत थी। पता नहीं किस महापुरुष ने ऐसी व्यवस्था की थी।

जिस व्यवस्था में कोई भी पुरुष या महिला पत्रकार आज के दिन विधानसभा के अंदर बने शौचालयों में मल/मूत्र का परित्याग करने भी नहीं जा सकता था। यही नहीं कैंटीन तक जाने की मनाही थी। जो अंदर बने प्रेस कक्ष में बैठ सकते थे। वहां तक भी जाने नहीं दिया जा रहा था। जबकि प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य आज के दिन परमानन्द को प्राप्त कर रहे थे, आज का दिन उनके लिए गर्व का पल लेकर आया था तथा वे लोग आनन्द का अनुभव कर रहे थे, जिन्होंने अपने पावर का इस्तेमाल कर अंदर जाने की व्यवस्था कर ली थी और जो बाहर थे, उन्हें अपनी औकात मालूम हो रही थी।

आश्चर्य इस बात की है, जो स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे थे, फिर भी इस घटित घटना के विरोध में बोलने से हिचकिचा रहे थे। उन्हें डर था कि कही विरोध करने के कारण उनके ही संस्थान के लोग उनका क्लास न ले लें या जो प्रेस दीर्घा में जिन संस्थानों के लोग हैं, वे कही बुरा न मान लें। विद्रोही24 का मानना है कि जब विधानसभा के लोगों ने जब निर्णय ले ही लिया था कि आज किसी भी पत्रकार (प्रेस दीर्घा समिति के सद्स्यों को छोड़कर) को अंदर नहीं जाने देना हैं, तो इसकी सूचना अखबारों के माध्यम से पहले ही दे देते या अपने ही दीर्घा समिति के सदस्यों को दे देते, वे अपने अखबारों में समाचार बनाकर छाप देते, कम से कम वे हलकान तो नहीं होते या स्वयं को अपमानित तो महसूस नहीं करते या जिस प्रकार की परेशानी उन्हें आज झेलनी पड़ी, वो तो नहीं झेलते।

अब कल यानी दो अगस्त को भी यहीं स्थिति रहेगी या स्थिति दूसरी रहेगी, इसका भी आज पता नहीं चल सका है। विद्रोही24 ने जब मार्शल से पूछा कि क्या कल भी यहीं स्थिति रहेगी, तो मार्शलों ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं पता। कल अगर यही स्थिति रहेगी तो कल भी हम किसी को जाने नहीं देंगे। जो आदेश होगा। उसका पालन करेंगे।

इधर कई पत्रकार जिनकी इतनी भी ताकत नहीं कि वे कुछ बोल सकें। उन्होंने छुपते-छुपाते कह ही दिया कि दीर्घा समिति के लोग अपने लिये तो बेहतरी की व्यवस्था व स्टडी टूर के नाम पर विभिन्न राज्यों में पर्यटन का लाभ तो ले लेते हैं। लेकिन उन्हीं के संस्थान में रहनेवाले जो अन्य पत्रकार हैं, उन्हें भी पेशाब लगता है, उन्हें भी प्यास लगती है, उन्हें भी भूख लगता है, उसका ख्याल उन्हें नहीं रहता। अगर ख्याल रहता तो आज जैसी हालत उनकी नहीं होती। लोग मल-मूत्र का त्याग करने के लिए इधर से उधर बाहर में भटकते रहे। राहत की बात यह रही कि सदन भोजनावकाश के पहले ही कल तक के लिए स्थगित हो गया। अगर शाम तक चलता तो समझ लीजिये, ऐसी हालत में पत्रकारों की क्या स्थिति होती।

पता नहीं विधानसभा में बैठे लोगों को इतना कैसे गहरा विश्वास हो चला है कि जो प्रेस दीर्घा समिति में होते हैं। वे बहुत ही अच्छे होते हैं और जो प्रेस दीर्घा में नहीं हैं, वे बेकार व भोंदे होते हैं। जबकि प्रेस दीर्घा समिति में कई ऐसे लोग हैं, जो दीर्घा में ही बैठकर दीर्घा के बने नियमों को तोड़ते हैं। इसी मानसून सत्र में प्रेस दीर्घा समिति के एक सदस्य ने अपने साथ ऐसे व्यक्ति को लाया और दीर्घा में बिठाया, जिसके पास अनुमति पत्र भी नहीं था और वह व्यक्ति प्रेस दीर्घा में बैठकर विडियो भी बनाने लगा। आश्चर्य इस बात की जानकारी दीर्घा समिति के संयोजक को भी हैं।

लेकिन सभी ने इस बात को छुपा लिया, क्योंकि भाई वे प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन उनके खिलाफ कोई बोलेगा तो वे आसमा सिर पर उठा लेंगे और उसकी मदद वे भी करेंगे, जिन्हें उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए। खुशी इस बात की है कि नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी ने इस बात को सदन में उठाया कि पहली बार समाचार संकलन करने के लिए पत्रकारों को प्रेस दीर्घा तक आने से रोका गया। लेकिन सत्तापक्ष के लोगों ने इस बात को उठाने में दिलचस्पी नहीं ली और न ही किसी अन्य विधायकों ने भी पत्रकारों के साथ घटित इस अमानवीय घटना को सदन में उठाया।