जब राज्य का सीएम गाल बजाने लगे, तो राज्य की जनता को चेत जाना चाहिए…
सही कह रहा हूं कि जब राज्य का सीएम गाल बजाने लगे, तो राज्य की जनता को चेत जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा सीएम आत्मप्रशंसा का भूखा होता है, उसे राज्य की जनता के दुख-सुख से कोई मतलब नहीं होता, उसका एक ही सूत्री कार्यक्रम होता है, अपना चेहरा चमकाना, चेहरा चमकाने के लिए अंधाधुंध पैसा खर्च करते जाना, कोई झूठी प्रशंसा कर दें तो उसके लिए कुछ भी कर देना, और यहीं हाल फिलहाल झारखण्ड में दीख रहा है।
पिछले दस दिनों से मैं दक्षिण भारत की यात्रा पर था, आज ही रांची लौटा हूं। रांची लौटने के क्रम में, मैंने देखा कि, दिल्ली के एयरपोर्ट पर अपने सीएम रघुवर दास का और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक होर्डिग्स लगा है, जिसमें लिखा था देश में मोदी और झारखण्ड में दास। भाई देश में मोदी है, बात समझ में आता है, उनके कुछ काम भी दीखते है, पर झारखण्ड में सीएम रघुवर दास ने ऐसा क्या कर दिया कि ये स्वयं को पीएम से तुलना करने लगे, कि जैसे देश में प्रधानमंत्री का डंका बजता है, वैसे ही झारखण्ड में सीएम रघुवर दास का ड़ंका बजता है। सच्चाई तो यह है कि स्वयं उनके सोशल साइट पर आम जनता उनको ऐसे-ऐसे शब्दों से नवाज रही है कि वैसे शब्दों का प्रयोग हम कर ही नहीं सकते और न ही उन शब्दों को यहां लिख सकते है। विशेष जानकारी के लिए आप मुख्यमंत्री रघुवर दास के ही फेसबुक पर उनके द्वारा किये गये पोस्टों में आम जनता द्वारा दी गई कमेन्ट्स को आप देख सकते है।
इनसे न तो जनता खुश है और न ही खुश है इनके कार्यकर्ता, तो फिर खुश कौन है? मैं आपको बताता हूं, इनसे सर्वाधिक खुश है, इनके कनफूंकवे और वैसे लोग जिनके परिवार के लोग सत्ता में भी है, प्रशासन में भी है और ठेकेदारी में भी है। ऐसे लोगों ने अखबारों और चैनलों के मालिकों और प्रधान संपादकों को मुंहबोली रकम और विज्ञापनों का अंबार लगाकर, उन्हें अपने पक्ष में ठुमरी गाने को मजबूर कर दिया है। ये ठुमरी वैसे ही गा रहे हैं, जैसे फिल्म पाकीजा में सुप्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी गा रही थी, गाने के बोल है – बोले छमाछम, पायल निगोरी रे, मैं तो कर आई, सोलह श्रृंगार रे ठारे रहियो…
जरा पूछिये सीएम रघुवर दास से कि वे बताये कि किस भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने 1000 दिन पूरे होने पर इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कराये है, और पैसे फूंके हैं। जरा पूछिये कि वे ईमानदारी की बात करते हैं, उस वक्त उनकी ईमानदारी कहां गई थी? जब उन्होंने सत्ता संभालते ही, अपनी कुर्सी मजबूत करने के लिए झाविमो के दलबदलू विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया था, वह भी मंत्री पद तथा अन्य सुविधाओं का लालच दिखाकर।
राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कैसे-कैसे कार्य किये? वो तो चुनाव आयोग भी जान चुका है, तभी तो उसने कार्रवाई करने के लिए राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेजा, पर आज तक चुनाव आयोग की बात पर कार्रवाई तो दूर, उसे अपने साथ चिपकाकर चलते है, सीएम रघुवर दास।
मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में क्या-क्या गोरखधंधा चल रहा है, ये बातें कौन नहीं जानता, बात करने की तमीज नहीं है जनाब को, और 1000 दिन का उत्सव मना रहे हैं। जरा इनकी लोकप्रियता देखिये, ये दिल्ली जायेंगे तो नितिन गडकरी से मिलेंगे, वेंकैया नायडू से मिलेंगे और कुछ नहीं बचा तो राजनाथ सिंह से मिलेंगे, जरा पूछिये इनकी हालत ऐसी क्यों है?
आखिर और कोई भाजपा का वरिष्ठ नेता अथवा संघ का ही कोई वरिष्ठ प्रचारक इन्हे भाव क्यौं नहीं देता? क्योंकि इनकी औकात सभी जानते है। ये लाख ढोल पीटे, इनका ढोल फट चुका है, इनका ढोल आवाज नहीं कर रहा, शायद इन्हें नहीं पता।