मेरे बेटे को इस बार BJP से टिकट दिला, MLA बनवाइये, क्योंकि मैंने संघ को बहुत कुछ दिया है, क्या समझे
सबसे पहले एक संघ गीत सुनिये, पहले यह गीत संघ की शाखाओं में खुब गाया जाता था, कभी–कभार यह गीत आज भी यत्र-तत्र सुनाई दे जाता हैं, उसके बोल थे… “धर्म के लिए जिये, समाज के लिए जिये, ये धड़कनें, ये श्वास हो, पुण्यभूमि के लिए, कर्मभूमि के लिए…” सच पूछिये, जिसने भी यह गीत लिखा होगा, वह यही सोचकर लिखा होगा कि यह गीत गानेवाले लोग इसके मर्म को समझेंगे और सचमुच देश और समाज से प्यार करना सीखेंगे।
पर सच्चाई यह हैं कि यह गीत अब संघ की शाखाओं में सिर्फ वैसे गिने-चुने लोगों के लिए ही बनकर रह गया हैं, जो या तो बेवकूफ हैं या जिन्होंने धूर्त-शास्त्र को कभी पढ़ने की कोशिश ही नहीं की, क्योंकि अब संघ के बड़े पदों पर रहनेवाले लोग या संघ को अपनी मुट्ठी में कर लेनेवाले लोगों ने एक नई गीत का इजाद किया हैं, जो गाते तो नहीं हैं, पर उसी गीत के ढर्रें पर चलकर, परम सुख का आनन्द लेने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, वो गीत हैं…
“अपने लिए जिये, परिवार के लिए जिये, ये धड़कनें, ये श्वास हो, सिर्फ पत्नी के लिए, अपने बच्चों के लिए…” जरा देखिये न, झारखण्ड में विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की ओर से कौन लड़ेगा, इसके लिए तैयारी चल रही है, और यहां हो क्या रहा हैं? जो देश व समाज के लिए अपना पूरा समय दे रहा हैं, उसे साइड कर संघ को अपने पॉकेट में लेकर चलनेवाला, अपने बेटे को भाजपा का टिकट दिलाने के लिए अपना सब कुछ झोंक रहा हैं।
जो संघ से जुड़े लोग हैं, जो संघ को वर्षों से जानते हैं, वे ऐसी सोच पर लानत भेज रहे हैं, पर उसको इससे कोई मतलब नहीं और न ही उस पर इसका असर पड़ रहा हैं, वह तो सिर्फ यही जानता है कि उसने संघ को अपना समय दिया और संघ के कार्यक्रमों में अपने आप को लगाया, संघ और संघ से जुड़े कार्यक्रमों तथा इनके पदाधिकारियों पर जी भरकर पैसे लूटाएं तो इसका कीमत वसूलने का हक तो उसे पूरा बनता हैं, इसलिए उसे उसके बच्चे को टिकट अवश्य मिलना चाहिए।
हालांकि ऐसे लोग किसी की भी मदद करते हैं, वे यह नहीं भूलते कि इसका आनेवाले समय में फायदा कैसे उठाना हैं, वे फायदा उठा ही लेते हैं, राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि जिस दिन संघ कार्यालय में अमित शाह का आगमन हुआ था, और जिस दिन एक वरिष्ठ स्वयंसेवक को यह कहकर साइड किया गया था कि ये अमित शाह के कार्यक्रम में नहीं रहेंगे, उसी दिन पता चल गया था कि यह व्यापारी अपना कमाल दिखायेगा, अपने बच्चे को राज्यसभा में जरुर भेजेगा, पर इतनी जल्दी विधानसभा की टिकट वह भी ऐसे इलाके से जहां भाजपा की जीत शत प्रतिशत सुरक्षित हैं, वहां से दिलाने में लगा हैं, उसकी अभूतपूर्व सोच बताता है कि वह कितना तेज है।
आखिर इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि अब संघ में भी ऐसे लोगों का जमावड़ा हो चुका हैं, जो त्याग या समर्पण की भावना से काम न कर, अपने कथित त्याग व समर्पण की कीमत वसूलने को तैयार हैं, तो ऐसे में जहां इस प्रकार के लोगों की संघ में वर्चस्व स्थापित हो गया तो समझ लिजिये, संघ अपने उद्देश्य से भटक गया। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि रांची, दिल्ली व नागपुर में बैठे संघ के वरीय पदाधिकारियों को इस विषय पर चिन्तन करना चाहिए कि संघ में प्रचलित गीतों का मूल्य स्थापित किया जायेगा या इस प्रकार के गीत शव की तरह ढोने के लिए बने हैं।
अगर शव की तरह ये गीत ढोने के लिए बने हैं तो रांची में भाजपा मुख्यालय में भाजपा टिकट पाने की संघ से जुड़े लोगों की चाहत बता रही हैं कि सामान्य लोगों की सोच आनेवाले समय में संघ के प्रति प्रभावित होनी तय हैं और जब संघ के प्रति संघ के लोगों तथा सामान्य जनों की सोच प्रभावित हो जायेगी तो फिर संघ, भाजपा और उसके आनुषांगिक संगठनों का हाल, कांग्रेस के आनुषांगिक संगठनों की तरह होने में समय नहीं लगेगा, जहां नाम के अधिकारी होगे, पर उनकी इज्जत नहीं होगी और न उनके बताए मार्ग पर चलने को कोई तैयार होंगे?
क्योंकि लोग समझ लेंगे, इसे भी भाजपा का टिकट चाहिए, जिसके लिए इसने संघ को अपना आधार बनाया हैं, संघ के लोगों को खूब रसगुल्ले-गुलाबजामुन खिलाएं हैं, तथा संघ के विशेष कार्यक्रमों पर अपने पैसे लूटाएं हैं, जिसका कीमत वह आनेवाले समय में अपने परिवार या बच्चों को सांसद या विधायक बनाकर वसूलेगा, क्योंकि जहां समाज-सेवा की भी कीमत वसूली जायेगी तो फिर लोग ऐसी संगठनों से क्यों जुड़ेंगे?