नेता चाभे मलाई और सरकारी सेवा से जुड़ने के लिए जनता दे पांच साल सशस्त्र सेना को
संसद की एक स्थायी समिति ने सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक लोगों के लिए पांच साल की सैन्य सेवा को अनिवार्य किये जाने की सिफारिश की है। संसदीय समिति ने इसके लिए कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रणालय को एक पत्र लिखकर एक प्रस्ताव तैयार करने और उसे केन्द्र सरकार को भेजने को कहा है। समिति का कहना है कि सरकारी नौकरियों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य किये जाने से सशस्त्र सेनाओं में जवानों की संभावित कमी को भी पूरा किया जा सकेगा।
हमारे विचार से इसकी जितनी प्रशंसा करनी चाहिए, कम ही है, सभी को इस सिफारिश की प्रशंसा करनी चाहिए, इससे लोगों में देश के प्रति सुरक्षा की भावना का भी विकास होगा, लोग अपने कर्तव्यों को बेहतर ढंग से समझेंगे, पर हमें एक बात समझ में नहीं आई कि इतनी सुंदर सिफारिश करनेवाली समिति, सैन्य सेवा के मामले में संकुचित दायरा क्यों अपना रहीं हैं? यह सिफारिश केवल सरकारी नौकरी में ही क्यों? ये बाते राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं और उनके परिवारों पर लागू क्यों नहीं, क्या वे स्पेशल हैं? उनको सैन्य सेवा में लाने की आवश्यकता नहीं हैं, समिति को इस पर भी अपना दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, होना तो यह चाहिए कि जो भी जिम्मेदार पद पर बैठे लोग हैं, सभी को सैन्य सेवा से जोड़ने चाहिए, नहीं तो इसका बुरा प्रभाव पड़ना भी तय हैं।
हमारे देश के संसद में बैठे जनप्रतिनिधियों को लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी उन्हीं के अंदर सिर्फ विद्यमान हैं, देश की सेवा के नाम पर केवल मलाई चाभने, स्वर्गिक आनन्द प्राप्त करने, और अंत में पेंशन लेकर, आजीवन परम सुख प्राप्त करने का अधिकार केवल उन्हें और उनके परिवार को ही प्राप्त हैं, जिसका ये फायदा उठा रहे हैं, जरा पूछिये इस सिफारिश को जन्म देनेवालों से कि आप केवल पांच वर्ष सांसद रहे या विधायक रहे तो आपको आजीवन पेंशन और जो देश के लिए पच्चीस-तीस साल जो सेवा करते-करते गुजार दें, उसकी पेंशन पर रोक और अब उसे सैन्य सेवा भी लोगे, कुछ जगहों पर तो सैन्य सेवा में ही शामिल लोगों के राशन मनी एलाउंस तक इस केन्द्र सरकार ने रोक लगा दी, ऐसे में सैन्य सेवा में लगे लोगों पर एक तरफ जूल्म करोगे तो सशस्त्र सेनाओं में जवानों की कमी तो होगी ही, आप क्या करों कि अपने सुविधानुसार जब चाहे, जब वेतन बढ़ा लो और सशस्त्र सेनाओं में शामिल जवानों के भत्ते, राशन भत्ते कटवा दो और फिर सशस्त्र सेनाओं में जवानों की कमी का रोना रोओ, ये बात कुछ हजम नहीं हुई।