अपनी बात

हे ईश्वर, आपने ये क्या कर दिया? अरे मुझे बुला लेते…, अरुण जी को क्यों बुला लिया?

हे ईश्वर, आपने ये क्या कर दिया? अरे मुझे बुला लेते…, अरुण जी को क्यों बुला लिया? ये तो उनलोगों के लिए जी रहे थे, जिनके लिए कोई जीने को तैयार भी नहीं होता। मेरा क्या हैं, मैं तो अपने हिस्से की जिंदगी जी चुका हूं, मेरे ही जिंदगी का शेष भाग, अरुण जी को दे देता, तो आपका क्या बिगड़ जाता। इतना अच्छा इन्सान, इतना अच्छा दोस्त, अब के जमाने में कहां मिलता है? अब तो जैसे लगता है कि अपनी जिंदगी ही पहाड़ सी हो गई। ओह अरुण जी का मानवीय मूल्यों वाला व्यवहार हमेशा मुझे और मेरे परिवार को याद रहेगा।

आज अरुण श्रीवास्तव के दिवंगत हो जाने से अपना पूरा परिवार मर्माहत हैं। मर्माहत इसलिए कि अरुण श्रीवास्तव का मेरे परिवार के साथ बहुत ही मधुर संबंध रहा है। मेरे परिवार का एक भी सदस्य उन्हें कभी भूल नहीं सकता, उसके बहुत सारे कारण है। मैं ही क्या, जो भी लोग अरुण श्रीवास्तव को जानते हैं, वे इस बात को स्वीकारेंगे कि अरुण श्रीवास्तव जैसा मनुष्य मिलना, इस दुनिया में असंभव है।

मुझे जैसे ही पता चला कि अरुण श्रीवास्तव का देहांत हो गया, मैंने उनके छोटे भाई आनन्द जी को फोन लगाया, पर उन्होंने फोन नहीं उठाया। मैं समझ गया कि इस माहौल में किसी का भी फोन उठाना असंभव हैं, आनन्द जी पर तो जैसे लगता है कि आज बहुत बड़ा गाज ही गिर गया था। मैंने तुरन्त अरुण श्रीवास्तव जी के ड्राइवर मनोज को फोन लगाया। उसे जो भी जानकारी थी, उसने मुझे रोते हुए सारी बात बता दी, और लगे हाथों पूछ ही डाला कि “कि सर अब हमलोगों का सुध कौन लेगा, कौन कहेगा कि चिन्ता मत करो, हम है, हमारे सर से तो बड़े भाई का साया ही चला गया, क्या करें?”

सच्चाई है, जो अच्छा होता हैं, लोग उसी के लिए रोते हैं? मैं आज बेचैन था, अंतिम दर्शन के लिए भी लालायित था, कैसे उनके अंतिम दर्शन होंगे और उनका अंतिम संस्कार कहां होगा? इस जानकारी के लिए हमने सुभाष को फोन लगाया, सुभाष ने बताया कि धुर्वा के सीठियो में अरुण जी के शव का अंतिम संस्कार किया जायेगा, मैं तुरंत गाड़ी उठाया, घटनास्थल पर पहुंच गया। अरुण श्रीवास्तव जी के अंतिम दर्शन हुए, और मैं रो पड़ा।

मेरे उपर अरुण श्रीवास्तव जी की बहुत कृपा रही है। अरुण श्रीवास्तव से मेरी मुलाकात तब हुई, जब मैं कुछ दिनों के लिए आइपीआरडी रांची से जुड़ा और जो वहां से उनसे मेरे संबंध बने तो उनके परलोक सिधारने के बाद तक भी बने रहेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है, क्योंकि हम भारतीय इतना जानते है कि शरीर का अंतिम संस्कार होता है, आत्मा का नहीं। अरुण श्रीवास्तव जी की आत्मा अमर हैं, वो निश्चय ही सूक्ष्मावस्था में हम सब पर जरुर नजर बनाये होंगी।

मुझे जब भी किसी चीज की जरुरत हुई या पैसों की जरुरत हुई। अरुण श्रीवास्तव जी ने मुझे उपलब्ध कराया और मुझे जब भी समय पर पैसे आते, मैं उन्हें लौटा दिया करता। क्या कहूं, दिसम्बर 2019 में मैंने अपने सपनों का घर बनाना शुरु किया। इसी दरम्यान मुझे घर को बनाने में कुछ पैसों की आवश्यकता पड़ी। मैं कई लोगों के पास मदद मांगने को गया, पर सफलता नहीं मिली। अरुण श्रीवास्तव जी ने बिना किसी लाग-लपेट के तीन लाख रुपये की मदद कर दी। मैंने जब उन्हें कहा कि मैं आपके ये तीन लाख रुपये जल्द लौटा दूंगा, तब उनका कहना था कि आप आराम से लौटाइयेगा, कोई जल्दबाजी नहीं, जब आप सब का पैसा लौटा देंगे तब हमारा लौटाने के लिए सोचियेगा, ऐसे आप नहीं भी देंगे, तो चलेगा? इतना उदार व्यक्ति कहां मिलेगा?

मुझे घऱ बनाने में करीब सात लाख रुपये कर्ज लेने पड़े। जिसमें मैं तीन लाख रुपये लौटा चुका हूं। चार लाख रुपये बचे हैं, जिसमें एक लाख किसी और को देने हैं और तीन लाख अरुण श्रीवास्तव जी को देने थे, खैर, मैं तो ये पैसे उनके परिवार को लौटा ही दूंगा, पर अच्छा होता कि अरुण जी उस वक्त साथ होते, जब मैं पैसे लौटा रहा होता, लेकिन ईश्वरीय विधान के आगे किसका चलता हैं?

दिसम्बर 2020 में जब हमने अपने छोटे बेटे की शादी की, तो उसमें भी उन्होंने हमारी खुब मदद की, ऐसी मदद की मैं क्या कहूं? अरुण जी, केवल मेरी ही मदद नहीं करते थे, वो तो हमारे जैसों की कई बार मदद की और भूल जाते, जब कोरोना काल आया? तो उनके कंपनी में काम करनेवाले मजदूरों-कर्मचारियों को लगा कि जैसे अन्य जगहों पर काम बंद हो रहे हैं, तो अरुण जी के यहां भी काम बंद हो जायेगा, लोगों को नौकरी से हटा दिया जायेगा, या वेतन कम कर दिये जायेंगे, पर हमारे अरुण जी तो दूसरे मिट्टी के बने हुए थे, उन्होंने किसी मजदूर-कर्मचारी के वेतन नहीं काटे और न ही उन्हें काम से हटाया, सभी को  उतने ही वेतन दिये, जैसा कि पहले दिया जा रहा था, जबकि इसी रांची में कई अखबारों में मैने देखा कि कई लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया तो कई लोगों के वेतन कम कर दिये गये। ऐसे थे अरुण जी।

मेरी मित्रता कोई ज्यादा दिनों की उनसे नहीं थी, मात्र छह साल की, पर लगता ऐसा था कि ये कई जन्मों का हैं। हम कह सकते है कि मैं नाम का कृष्ण था और अरुण जी काम के कृष्ण थे, सच पूछा जाये तो मैं हमेशा सुदामा रहा, और वो हमेशा कृष्ण। हम जब भी मिलते, तो उनके मुख से यही निकलता कि चलिये समर्पण हो जाये या समर्पण की भावना बलवती हो रही हैं, और हम मुस्कुरा देते, आज मैं सोचता हूं कि अब वो समर्पण का भाव कहां दिखेगा? अरुण जी, जीने के लिए बहुत लोग जीते हैं, पर आपने जो जिया, वो बहुत कम लोग जीते हैं। भगवान ने आपको अपने पास बुला लिया, लेकिन जो गम आपके परिवार को मिला हैं, वो गम जल्द दूर हो, हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे। हम प्रार्थना करेंगे कि आप जहां भी रहें, मुस्कुराते रहे, आनन्दित रहे, क्योंकि भारतीय संस्कृति में तो Rest in Peace का कोई प्रावधान ही नहीं हैं, हमारे यहां तो कहा गया है…

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्माति नरोपराणि।

यथा शरीराणि विहाय जीर्णा, न्यन्यानि संयाति नवानि देहि।।

जैसे  हम पुराने वस्त्रों को त्यागकर नया वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को छोड़ नया शरीर धारण करती हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के ये श्लोक बताते है कि ये जीवन चक्र कभी समाप्त नहीं होता, जहां से मृत्यु होती हैं, वहीं से नये जीवन का संचार भी होता हैं, और जहां से नये जीवन का संचार होता हैं, ठीक मृत्यु की तिथि भी वहीं तय हो जाती हैं, इसे कोई नकार भी नहीं सकता। इसी को जीवन चक्र कहते हैं। मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार करें। हम भी जल्द आपसे अगले जन्म में मिलेंगे। वो दिन दूर नहीं।