गुंजन सिन्हा ने पत्रकारिता में लंबी लकीरें ही नहीं, इतिहास भी बनाया है
“मेरा अश्लील विजुअल चलाओ यार, कुछ मुझे भी मजा आये। फेसबुक की अजीब दुनिया है। मैं किसी पर व्यक्तिगत लिखता नहीं। सामान्य टिप्पणी करना, स्थितियों पर अपनी राय अनुभव रखना सबका हक़ है, मेरा भी है। सुबह कुछ लिखा, समय के कौन से मुद्दे बेधते हैं, अब एक कोई कुलदीप भरद्वाज हैं। सुबह से मेरे ऊपर अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं, उम्र और काबिलियत को लेकर लांछित कर रहे हैं, हर आदमी कभी बूढा होता है, रिटायर होता है। वो भी होंगे, उनके पिता भी हुए होंगे. खैर, उनका कहना है कि मैं अब चुप बैठूं , उम्र हो गई है। मैंने उनके आरोपों का जब भी सबूत माँगा तो वो तो दिया नही, नए आरोप लगाने लगे, अब किसी २७ सेकेण्ड के विजुअल की बात कह कर मुझे डराने की कोशिश कर रहे हैं कि मैं आर्यन टीवी में किसी ऐंकर को साड़ी बांधना सिखा रहा था। मैंने उन्हें चुनौती दी कि शेयर कर दीजिये तो फिर भागने लगे कि बाद में दिखाएंगे। ऐसे मूर्खों और ब्लैकमेलर्स से मैं डरता नहीं। उन्हें रिप्लाई बॉक्स के बदले जिसमे सभी नही पढ़ते, यहाँ लिख कर कह रहा हूँ क्योंकि ऐसे लोग प्रतिरोध की आवाजों को डरा कर चुप कराने की साजिश का हिस्सा हैं।” ये वाक्यांश आपको हरदिल अजीज वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा के फेसबुक वॉल पर लिखा है।
इन दिनों गुंजन सिन्हा गंभीर बिमारियों से ग्रस्त है, और उसके बाद भी जीवन और पत्रकारिता दोनों से संघर्ष करते हुए, उन गंभीर बिमारियों को चुनौती दे रहे हैं। गुंजन सिन्हा के जो मित्र माने जाते हैं, वे आज भी बहुत अच्छे पोस्टों पर हैं, बहुत सारे पैसे भी कमा रहे हैं, अपने परिवार को बेहतरीन पोजिशन पर रख रहे हैं, पर गुंजन सिन्हा के लिए ऐसा फिलहाल संभव नहीं हैं, फिर भी वे असंभव को संभव बनाने के लिए तत्पर हैं, और यहीं तत्परता हम जैसे लोगों को प्रेरणा देती है।
गुंजन सिन्हा से हमारी पहली मुलाकात बिहार में पीटीएन चैनल में हुई थी, जब मैं पीटीएन चैनल से जुड़ा था और आकाशवाणी पटना में युववाणी एकांश में आकस्मिक उद्घोषक के रुप में सेवा दे रहा था तथा उस वक्त जीवन-यापन के लिए संघर्ष कर रहा था। ट्यूशन और पूजा-पाठ यहीं हमारे आय के स्रोत थे। इसी दौरान उनकी अच्छाइयों और उनके परिवार से मैं ऐसा जुड़ा कि आज भी वो जुड़ाव बरकरार है, ईश्वर से प्रार्थना है कि यह जुड़ाव सदैव बरकरार रहे।
संयोग से जब वे दैनिक जागरण ज्वाइन किये, तब उस वक्त दैनिक जागरण में कार्यरत अनिल सिंह और तत्कालीन संपादक शैलेन्द्र दीक्षित ने हमें दैनिक जागरण धनबाद कार्यालय का प्रभारी बनाया, हालांकि वे ज्यादा दिनों तक दैनिक जागरण में नहीं रहे और फिर वे शीघ्र ही ईटीवी से जुड़ गये। जब ईटीवी बिहार चैनल आ रहा था, तब इसे प्रतिष्ठित करने का जिम्मा इन्हीं को मिला। इन्हीं पर दारोमदार था कि कैसे लोग इस चैनल में लाये जाये? उन्होंने इसके लिए परीक्षाएं ली। जो परीक्षाओं में उतीर्ण हुए, तथा साक्षात्कार व पीटीसी की परीक्षा में सफल हुए, वे ही इस चैनल में जुड़े, हालांकि इस दौरान इन पर जातिवाद फैलाने का आरोप भी लगा, ये आरोप भी वहीं लोग लगा रहे थे, जिन्हें ये सर्वाधिक प्यार करते थे, पर ये भी सच्चाई था कि वे कायस्थ और मैं विशुद्ध ब्राह्मण और उन्होंने मुझे रांची कार्यालय में स्थापित किया, ऐसे में मेरा दिल कभी नहीं माना कि वे जातिवादी थे, हमारे देश में यह विडम्बना है कि अगर अंगूर मिल गये तो मीठे और अंगूर नहीं मिले तो खट्टे कह कर इतिश्री कर दो।
आज जो ईटीवी के बिहार या झारखण्ड कार्यालय में कार्यरत है, उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि गुंजन सिन्हा के कार्यकाल तक इस ईटीवी पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं था, साथ ही गुंजन सिन्हा का कार्यकाल स्वर्णिम काल था, उनके जाने के बाद जो लोग नये आये और उन्होंने कैसे ईटीवी को कबाड़ा बनाया और आज ईटीवी की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि जब ईटीवी मुख्यालय में गुंजन सिन्हा मौजूद थे तब मेरा भी इनसे जबर्दस्त टकराव हुआ था, यह टकराव ऐसा था कि उनके दरवाजे हमारे लिए सदा के लिए बंद हो गये थे। ये टकराव करानेवाले कोई और नहीं थे, सभी अपने थे, जो हमसे कहा करते थे कि वे हमारे हैं, वे आज भी रांची में मौजूद है, पर हमें यह ज्ञान तब प्राप्त हुआ, जब हैदराबाद में उस व्यक्ति का दोगला चरित्र सामने आया, फिर भी स्थिति ऐसी हो गई थी कि गुंजन सिन्हा हमें देखना पसंद नहीं करते थे, पर धीरे-धीरे उन्हें भी पता चल रहा था कि सच्चाई क्या हैं? मैं इसी बीच रांची से डालटनगंज आया और फिर डालटनगंज से धनबाद पहुंच गया, पर मेरी पत्रकारिता पर इन्होंने कभी प्रश्न चिह्न नहीं लगाया, जब वे ईटीवी से विदा हो रहे थे, तब भी बात हुई थी और आज तो कहना ही नहीं, खुब बातें होती है।
गुंजन सिन्हा क्या है? उनका चरित्र क्या है? वह इसी से पता चलता है कि जब वे मौर्य से जुड़े तब उन्होने एक बार फिर मुझे रांची में पदस्थापित करने का मन बनाया और जिम्मेवारियां सौंपी, पर न तो मौर्य में उन्हें ठीक से काम करने दिया जा रहा था और न हमें, ऐसे में, मैं पांच महीने में ही मौर्य से नाता तोड़ लिया।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इलेक्ट्रानिक मीडिया का जब भी बिहार और झारखण्ड से संबंधित इतिहास लिखा जायेगा तो गुंजन सिन्हा को भूलने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता, उनके बिना इतिहास पूरा हो ही नहीं सकता. उनकी ईमानदारी पर, उनकी पत्रकारिता पर, उनकी सज्जनता पर, उनकी वैचारिक क्रांति पर अंगूली उठाना, ठीक उसी प्रकार है, जैसे सूर्य के उपर थूकने का प्रयास करना।
जो नये लोग पत्रकारिता में आ रहे हैं, या आयेंगे, मैं कहूंगा कि वे उनसे सीखे। वे स्वयं में एक संस्थान है, एक बार मिल लोगे, सुन लोगे, जीवन की सही पढ़ाई पढ़ लोगे, पर ये तब होगा, जब तुम्हारे अंदर ज्ञान को परखने की शक्ति होगी, क्योंकि विरजानन्द सरस्वती को स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ऐसे ही नहीं पहचान लिया था। अगर गुंजन सिन्हा कहीं किसी संस्थान में नहीं है, तो ये गुंजन सिन्हा का दुर्भाग्य नहीं है, बल्कि उन संस्थानों का दुर्भाग्य है, जो उन्हें नहीं पहचान पा रहा।
ऐसे भी किसकी हिम्मत है कि हवाओं को बांध ले, किसकी हिम्मत है कि सूर्य की रोशनी को कैद कर लें। हमें खुशी है कि हमे गुंजन सिन्हा का साथ मिला और दुख इस बात का है कि जो लोग गुंजन सिन्हा को पहचान नहीं पा रहे, जिनकी औकात नहीं, वे उन पर कीचड़ उछाल रहे हैं, ऐसे भी जिसने अपने जिंदगी में कीचड़ ही उछाला हो, वह और क्या करेगा?
मैंने देखा कि एक ईटीवी में ही कार्यरत एक युवक कुछ साल पहले, उन पर जगदीश चंद्र कातिल को लेकर उलझ गया था, आज एक बार फिर एक शख्स ने ऐसी घटिया स्तर की हरकतें की, जो शर्मनाक है, पर ऐसे लोगों से हम अच्छा की उम्मीद करते हैं तो यह भी मूर्खता है।
मैं तो कहूंगा कि अगर गुंजन सिन्हा, ऐसे लोगों से उलझते है, तो उसमें उनकी ही गलती है, क्योंकि ये हैं ही ऐसे, ये इसके सिवा दूसरा कुछ कर ही नहीं सकते, इसलिए ऐसे लोगों से उलझना मूर्खता को सिद्ध करना है। पता नहीं गुंजन सिन्हा को याद है कि नहीं, जब वे ईटीवी मुख्यालय हैदराबाद में थे, और मैं धनबाद में था। धनबाद में 31 दिसम्बर 2006 को कथित पत्रकारों ने गांधी सेवा सदन में मुर्गा खाया था, मैंने इस समाचार को भेजा और उन्होंने इस समाचार को प्रमुखता से प्रसारित कराया और ठीक उसके दूसरे दिन यानी 1 जनवरी 2007 से धनबाद से ही प्रकाशित बिहार आब्जर्वर ने हमारे खिलाफ आपरेशन पर्दाफाश करके लगातार आठ दिनों तक हमारी इज्जत का फलुदा बनाने का प्रयास किया।
स्वयं गुंजन सिन्हा ने ही उस वक्त कहा था कि मैं उक्त अखबार पर मानहानि का मुकदमा ठोकूं, पर मैंने यहीं कहा था कि ऐसे-ऐसे अखबारों और उसमें प्रकाशित झूठी एवं भ्रामक खबरों से इज्जत नहीं जाती। इज्जत जाती है, अपने नजरों से गिरने में, और मेरी नजरे आज भी ऊंची हैं। आज मैं शान से झारखण्ड में रह रहा हूं, पत्रकारिता कर रहा हूं, किसी की हिम्मत नहीं की हमें चुनौती दे दें, मेरी आत्मा निर्मल है, किसी से सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं, इसलिए गुंजन सिन्हा या बहुत लोग जो इन्हें प्यार से गुंजन भैया भी कहते हैं, क्या जरुरत हैं, आपको ऐसे लोगों से मुंह लगने की, आप प्रसन्न रहिये और जो कर रहे हैं, उसे करते रहिये, क्योंकि आप बहुत लोगों के एवं आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
He is a gem of person , rare to see these cbination of intellect, kindness & generosity in one person . Gunjan sinha sir is undoubtedly one of them . Thanks for writing on him .
Totally agree with you. He is really a great man. Man who never compromises. Man of principles. Intelligent and ofcourse a hardcore Journlist. I salute his honesty, integrity and commitments to his profession. A rare among rarest .