एक अदना सा कैंडिडेट तो दे नहीं सकते और चले हैं सिल्ली एवं गोमिया में चुनाव लड़ने
एक अदना सा उम्मीदवार जो कम से कम गोमिया अथवा सिल्ली में अपना जमानत बचा सकें, वह तो ढूंढ नहीं सकते और न इनके पास ऐसा कोई उम्मीदवार ही हैं, पर इनके नेताओं की बोली देखिये, जैसे लगता है कि पहाड़ ही तोड़ लायेंगे। बात हो रही है, यहां भाजपा की, जो सत्ता में आने के बाद एक विधानसभा की सीट छोड़कर, जितने पर उपचुनाव हुए, हार का स्वाद चखी। फिलहाल चुनाव आयोग ने सिल्ली और गोमिया विधानसभा सीट पर चुनाव कराने की घोषणा कर दी है।
जो भी यहां से चुनाव जीतेगा, मात्र डेढ़ साल ही विधायक रह पायेगा, पर विधायक और नेतागिरी का अन्योन्याश्रय संबंध रहा है, इसलिए एक बार भी विधायक बन जायेंगे तो क्या जिंदगी भर या मरने के बाद भी पूर्व विधायक नहीं लिखायेगा क्या? या विधानसभा में श्रद्धांजलि उनके नाम पर नहीं दी जायेगी क्या? या उनके परिवार के लोग या मित्रमंडली विधायक बनने के बाद का परमसुख प्राप्त नहीं करेंगे क्या, इसलिए जहां मौका मिले, मुड़ी घुसेर दीजिये, जीत गये तो लीजिये स्वर्गिक आनन्द और नहीं तो नेताजी का तमगा का सर्टिफिकेट मिल गया सो अलग?
इधर भाजपा ने जब से झाविमो के दलबदल में माहिर विधायकों को अपनी पार्टी में मिलाया है, बेचारे आजसू की दादागिरी खत्म हो गई। बेचारे आजसू ने सोचा था कि जनता ने एक बार फिर 2014 में भाजपा का लगाम उनकी हाथों में रखा है, पर सिल्ली से सुदेश की करारी हार और झाविमो के कुछ विधायकों का मंत्री तथा अन्य चीजों की लालच में पाला बदल लेना, आजसू के सपनों पर ऐसा लगा कि जैसे किसी ने कुठाराघात कर दिया हो। ऐसे भी आजसू शुरु से ही सत्ता समर्थक रहीं है, कहने को ये झारखण्ड में संघर्ष करने की बात करती है, पर आज तक झारखण्ड बनने के बाद किसी जनता ने इसका संघर्ष नहीं देखा। यहीं एकमात्र पार्टी है, जिसका विधायक, सत्ता किसी का भी हो, मंत्री पद का स्वाद चखा है।
सिल्ली में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो स्वयं चुनाव लड़ रहे है, जबकि गोमिया में प्रशासनिक अधिकारी रह चुके लम्बोदर महतो को आजसू चुनाव लड़ा रहा है। सूत्र बताते है कि भाजपा भी लम्बोदर महतो को अपना उम्मीदवार घोषित करना चाहती थी, पर आजसू ने भाजपा के उस मंसूबे पर पानी फेर दिया, जिसके आधार पर वह गोमिया सीट पर अपना दावा ठोक रही थी। ऐसे हम आपको बता दे कि गोमिया और सिल्ली दोनों सीटें झामुमो के पास थी, पर न्यायालय के आये फैसले के बाद झामुमो के दोनों विधायकों की विधायकी समाप्त हो जाने के कारण यहां चुनाव हो रही है।
झामुमो चाहती है कि उसका उम्मीदवार दोनों स्थानों पर फिर से चुनाव जीते, और इसके लिए वह प्रयास भी कर रही है। हाल ही में नेता विरोधी दल हेमंत सोरेन, बाबू लाल मरांडी से सहयोग करने के लिए उनसे मिले, बाबू लाल मरांडी के हाव-भाव से पता चलता है कि वे भी सहयोग के मूड में हैं, अगर सब कुछ ठीक रहता है और विपक्ष एक रहता है तो आजसू या भाजपा के लिए या गठबंधन के लिए दोनों सीट पर जीत पाना कठिन हो सकता है, ऐसे भी झामुमो ने अपनी ओर से इन दोनों सीटों पर विजय पाने के लिए तैयारी शुरु कर दी है।
सिल्ली में झामुमो से अमित महतो की पत्नी को टिकट मिलने की संभावना प्रबल दिखाई पड़ रही है, ऐसे भी सुदेश से ज्यादा अमित की फिलहाल सिल्ली में चल रही है, ऐसे में सुदेश को जनता पुनः मौका देगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। भाजपा के लिए तो सिर्फ यहीं हैं कि जिस दिन उसे सुयोग्य कैंडिडेट मिलेगा, तभी वह ज्यादा भाव दिखाये तो ठीक रहेगा, उसके लिए अच्छा रहेगा कि वह आजसू के पीछे-पीछे ही चलकर गठबंधन धर्म का पालन करें, नहीं तो वह लोकोक्ति याद हैं न “माया में दोनो गये, माया मिली न राम।“