जय हो विजयानन्द सरस्वती की, जय हो इनके बुद्धि की, लोकमान्य तिलक का कथन गोपाल कृष्ण गोखले के मुख से कहलवा दिया
पं. विजयानन्द सरस्वती डालटनगंज के रहनेवाले एक बहुचर्चित शिक्षक व ज्योतिषी है। ये स्वयं बताते है कि उन्हें कभी राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया है, इसमें कितनी सच्चाई हैं, ये हमें पता नही, पर हमने देखा है कि झारखण्ड के विधानसभाध्यक्ष ने उन्हें अपने यहां बुलाकर उन्हें शाल ओढ़ाकर सम्मानित करने की कोशिश की है, हमने ये भी देखा है कि ये महाशय को जोधपुर में भी शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
अब इतने बड़े विद्वान अपने फेसबुक में वो भी साल भर पहले और बाद में उसे दुबारा फेसबुक पर ही रि-पोस्ट करें और गलत को सही करार देते हुए स्वयं को महिमामंडित करें, तो ये और भी आश्चर्य हो जाता है, आश्चर्य इस बात की है कि लोग इनकी गलती को भी बड़ी संख्या में लाइक कर रहे हैं, इसका मतलब हैं कि लोग सत्य जानने की कोशिश नहीं कर रहें, बल्कि विजयानन्द सरस्वती के झूठ को ही स्वीकार कर, उनके संवाद को लाइक कर रहे हैं।
आखिर विजयानन्द सरस्वती ने क्या गलती की? विजयानन्द सरस्वती ने 19 फरवरी 2022 को एक डॉयलॉग फेसबुक पर पोस्ट किया, और फिर उसे 19 फरवरी 2023 को रि-पोस्ट किया। वो पोस्ट आपके सामने हैं, आप खुद देखें, क्या लिखा हैं…
विजयानन्द सरस्वती के शब्दों में स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं – लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने नहीं, बल्कि इस संवाद को गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा था, जबकि सारी दुनिया जानती है कि यह कथन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का है, पर विजयानन्द सरस्वती को इससे क्या मतलब? वो तो जो कह दें, वहीं सत्य है। वो ब्रह्मा का लकीर है। कोई उसे चुनौती नहीं दे सकता। ये ब्रह्मवाक्य है।
ऐसे भी विजयानन्द सरस्वती का कोई भी पोस्ट देखें तो उसमें गलतियों की भरमार होती है। शायद ही कोई पोस्ट में व्याकरण की अशुद्धियां नहीं रहती होगी। जबकि ये खुद को शिक्षक, वो भी राष्ट्र निर्माता, वो भी राष्ट्रपति से खुद को सम्मानित करनेवाला, कई जगहों पर खुद को शॉल ओढ़वाकर खुद को सम्मान प्राप्त करनेवाले व्यक्ति का ये हाल हैं तो जरा सोचिये, इस देश का क्या हाल होगा? भाई, खुद को स्वयंसिद्ध विद्वान साबित करनेवालों से तो कम से कम ऐसी अपेक्षा तो नहीं की जा सकती।