बार-बालाओं के डांस और मित्रों को KISS के साथ हैप्पी न्यू ईयर बोलते मस्ती में डूबिये
जब भी नया वर्ष आता है, तब भारी संख्या में लोग एक दूसरे को नये वर्ष की बधाई देने के लिए उमड़ पड़ते हैं। कोई ग्रीटिंग कार्डस का सहारा लेता है, तो कोई व्हाट्सएप या मैसेन्जर या फेसबुक के माध्यम से अपने चाहनेवालों को खुशियां और आनन्द देने का काम करता है। इसी बीच कई लोग ऐसे भी हैं जो नये वर्ष का इन्जवाय करने के लिए वर्ष का पहला दिन पर्यटक स्थलों की ओर जाने का प्रोगाम बनाते हैं, कोई मंदिरों में भगवान का दर्शन करने जाता हैं, कोई अपने बच्चों को आनन्द और आशीर्वाद देने में जुट जाता है, कोई पार्कों में अपनी महबूबा के पीछे दौड़ लगाने में समय लगा देता है, तो कोई महानगरों से बुलाये गये बार-बालाओँ के डांस में खुद को डूबोकर मस्तियां प्राप्त कर रहा होता हैं।
यहीं नहीं कई होटलों और क्लबों में तो नये साल के लिए विशेष इंतजाम होता है, जिसका आनन्द धनाढ्य परिवार के लोग अपने हिसाब से करते है, यानी लोग मस्ती की आलम में इस प्रकार डूबते है, जैसे लगता हो कि दुनिया की सारी खुशियां उन्होंने पा ली है। ऐसे भी खुशियां अलग-अलग प्रकार की होती है, किसी को बार बालाओं की डांस में आनन्द आता है, किसी को मंदिर जाकर देव दर्शन करने में आनन्द आता हैं, किसो को भूखों को खिलाकर आनन्द आता है, किसी को ठंड से ठिठुर रहे लोगों को गर्म कपड़े उपलब्ध कराने में आनन्द आता हैं तो किसी को पैसे में आग लगाकर तापने में आनन्द आता हैं। भारत में तो कई लोग ऐसे भी हैं, जो अपने बंदूकों व राइफल्स से जब तक धांय – धांय नहीं कर लेंगे, उन्हें आनन्द ही नहीं आयेगा, क्योंकि ये नया भारत हैं, वह भारत जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी, पर बदलना है तो बदलना है, बदल लिये है।
आज रांची से प्रकाशित सभी अखबारों में नंग-धड़ंग लड़कियों के फोटो छपे हैं, फोटो उनके भी छपे हैं, जो इस मौके पर लड़कियों व महिलाओं को गोद में उठाकर, एक विशेष प्रकार की आनन्द की अनुभूति प्राप्त करते हैं, और इस दृश्य को दुसरों को दिखाकर, वे ब्रह्मानन्द में समा जाते हैं। हमें लगता है जिन्होंने इस प्रकार का इन्जवाय किया होगा, वे आज की अपने अखबारों में फोटो देखकर और अपने बच्चों को दिखाकर जरुर गर्व महसूस करते होगे कि देखों हमने किला फतह कर लिया है, गजब ढा दिया है।
आश्चर्य इस बात की है थोड़े दिन पहले साहेबगंज में झामुमो नेता सायमन मरांडी ने किस कम्पीटीशन कराया था, तो कुछ लोगों ने बवाल मचा दिया था, पर आज जिस प्रकार के फोटो अखबारों में छपे हैं, हमें लगता है कि उस वक्त साहेबगंज के कम्पीटीशन पर विरोध जतानेवाले भी इस प्रकार के कार्यक्रम का विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि फिलहाल ऐसा प्नतीत हो रहा हैं, जैसे नये साल में सभी को अपनी–अपनी अलग तरह की मस्ती में डूबने का अधिकार हैं, जो वे कर रहे हैं, और उन्हें देखने-दिखाने का अधिकार हैं।
कुछ वर्ष पहले, संत जेवियर्स में पत्रकारिता विभाग में इसी प्रकार का दृश्य दिखा था, तब रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने प्रथम पृष्ठ पर फोटो छापे थे और उस पर कड़ी टिप्पणी की थी, जिसको लेकर बवाल हुआ था, पर उस वक्त की युवा पीढ़ी ने बहुत ही शानदार तरीके से प्रभात खबर के इस पत्रकारिता पर ही सवाल उठा दिया था, जो चर्चा का विषय रहा।
सचमुच रंग बदल रहा है, फिजां बदल रही हैं, जो चीजे कल गलत थी, आज वह सही हो रही है, सभी जब नंगे होंगे तो फिर कोई एक दूसरे को नंगा कैसे कह सकता है? सवाल यहीं है। ऐसे भी यह नया वर्ष हमारा तो है नहीं, जहां से आया हैं और जहां इसे जिस प्रकार मनाया जाता है, वह चीज तो यहां भी दिखेगा, सो दीख रहा हैं। इस पर आश्चर्य की कोई बात नहीं।
भारतीय संस्कृति में भी नया वर्ष मनाया जाता हैं जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता हैं, आप इस दिन ऐसी हरकत, जैसी हरकत आज करते हैं, कर ही नही सकते, क्योंकि भारतीय संस्कृति आपको इसकी इजाजत ही नही देती और अगर आपने करने की कोशिश की तो उसे प्रकृति ही इस प्रकार आपसे हिसाब ले लेगी कि आप जिंदगी भर याद रखेंगे, क्योंकि भारतीय पर्व व त्योहार सभी प्रकृति से संबंधित हैं।
इधर एक नये पौधे ने जन्म लिया है, जिसका काम हैं, हर बात का विरोध करना। अब जरा देखिये, नया वर्ष जो लोग अंग्रेजी तिथि के अनुसार मना रहे हैं, सभी उसकी आलोचना यह कहकर कर रहे हैं, कि ये तो अंग्रेजों का हैं, पाश्चात्य संस्कृति हैं, हमारा नया वर्ष तो चैत्र में आता हैं। आश्चर्य है, कि ऐसे लोगों से अगर आप पूछेंगे कि आपका जन्मतिथि हिन्दी तिथि के अनुसार क्या हैं? तो दांत बायेंगे, यानी ये अपना जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ, अपने बच्चों का जन्मदिन, ये सारे काम अंग्रेजी तिथि के अनुसार करेंगे और जब नये साल की बात आयेगी तो लीजिये ज्ञान देना शुरु। अरे भाई, पहले तुम शत प्रतिशत हिन्दुस्तानी बन जाओ, तब विरोध करोगे, तो चलेगा, लेकिन दुनिया को दिखाने के लिए विरोध ये तो जायज नहीं।
सुप्रसिद्ध विद्वान राघव प्रसाद पांडेय ठीक ही कहते है कि अपनी भारतीय संस्कृति, परंपरा, साहित्य, धर्म, आचार, व्यवहार का सम्मान और उस पर गर्व करना बहुत अच्छी बात है, तथा उसके अनुसार ही आचरण करना श्रेयस्कर है, परन्तु देशकाल परिस्थिति के साथ चलना भी जीवन्तता और सजगता के लिए आवश्यक है। अपने सिद्धांतों पर दृढ़ता प्रशंसनीय है पर अपनी वैचारिक कट्टरता के अभिमान में भिन्न मतावलंबियों का अपमान अनुचित ही माना जायेगा, यदि कोई अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अपनी ओर से वर्ष परिवर्तन पर नववर्ष की शुभकामना प्रकट करता है, तो उसे स्वीकार करना और बदले में उसे भी शुभकामनाएं देना सर्वथा उचित हैं।