अगर नीतीश ने जीएसटी का विरोध कर दिया होता तो क्या होता…
जरा सोचिये, अगर नीतीश ने जीएसटी का विरोध कर दिया होता तो क्या होता… तो फिर क्या पत्रकार से नेता बने हरिवंश वहीं लिखते, जो उन्होंने दैनिक भास्कर के 2 जुलाई के अंक में लिखा। उत्तर होगा – एकदम नहीं। सबसे पहले हम आपको बता दें कि हरिवंश वर्तमान में, जदयू सांसद है। इसके पूर्व में वे प्रभात खबर के प्रधान संपादक रहे है, और कुछ महीने पहले ही इनका नाता प्रभात खबर से टूटा है। कुछ महीने पहले तक प्रभात खबर जाकर, अपने प्रधान संपादक के केबिन में बैठकर, ये अखबार का मार्गदर्शन भी करते रहे है। जो लोग हरिवंश को जानते है, वे सचमुच भौचक्के रह गये होंगे, जो दैनिक भास्कर में हरिवंश का फोटो समेत, आलेख देखे होंगे, क्योंकि हरिवंश का आलेख हमेशा से प्रभात खबर में ही आता रहा है। वे बहुत लंबा-लंबा लिखते है, लंबा-लंबा बोलते है। उनके चाहनेवालों की संख्या भी बहुत अधिक है और उनके विरोधियों की संख्या भी कम नहीं है।
आदर्शवादिता समाप्त, मौकापरस्ती प्रारंभ
जब वे प्रभात खबर में प्रधान संपादक के रुप में कार्य कर रहे थे, तब उन्होंने अपने कार्यकुशलता से प्रभात खबर को क्षेत्रीय अखबार से उठाकर राष्ट्रीय अखबार का रुप दिया, जो किसी के बलबूते से बाहर है। समय-समय पर जब प्रभात खबर के उपर खतरे की घंटी बजी, तो उन्होंने उन खतरों का मुकाबला भी किया। जब कभी उनसे हमारी मुलाकात होती तो वे बराबर पूंजी का रोना रोते और कहते कि हम छोटे पूंजी के अखबारों की क्या औकात? बड़े-बड़े अखबारों का समूह रांची आ रहा है, इनके मुकाबले प्रभात खबर टिक पायेगा या नहीं, कुछ कह नहीं सकते, पर मैं बराबर कहता कि टिकेगा, जरुर टिकेगा, क्योंकि उनके पास हरिवंश नहीं है, पर आज वहीं हरिवंश बड़े पूंजी के अखबारों में आलेख लिख रहे है। प्रभात खबर, आज भी रांची से प्रकाशित हो रहा है, पर हरिवंश दैनिक भास्कर में दीख रहे है। हो सकता है कि उनकी अपनी मजबूरियां हो, पर जो लोग पत्रकारिता के क्षेत्र में है, उन्हें मैं बताना चाहता हूं कि यह याद रखे – सम्पति आये या चली जाये, जो सत्पुरुष होते है, दोनों अवस्थाओं में एक जैसे दिखाई पड़ते है, पर ये चीजें आज हरिवंश में नहीं दिखाई पड़ रही, जिसका दुख उन सभी को होगा, जो हरिवंश में आदर्शवादिता ढूंढते होंगे।
हरिवंश के लिए एक प्रसंग। भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण आदि बड़े-बड़े योद्धा जान रहे है कि दुर्योधन गलत है, फिर भी उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में धर्म को नहीं छोड़ा, जो धर्म को छोड़ देता है, धर्म उन्हें नष्ट कर डालता है। जरा देखिये 2 जुलाई, दैनिक भास्कर का अखबार। हरिवंश ने लिखा है – भारत के इतिहास का सबसे बड़ा कदम। जीएसटी की जमकर प्रशंसा की है, हरिवंश ने। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता की कहीं प्रशंसा नहीं, पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और नीतीश कुमार की जमकर आरती उतारी गयी है। चूंकि आज नीतीश कुमार की आरती उतारने का वक्त है, और स्वयं जब नीतीश कुमार की कृपा से राज्यसभा में सांसद के रुप में विराजमान है, तब तो अपने मालिक की प्रशंसा करना और महत्वपूर्ण हो जाता है।
ऐसा नहीं कि नीतीश कुमार ने जीएसटी के पक्ष में खड़ा होकर क्रांति कर दिया, चूंकि बिहार में जहां नीतीश कुमार राजनीति कर रहे है, वहां कि स्थिति ऐसी है कि वे जब तक लालू प्रसाद की पार्टी और भाजपा को समय-समय पर औकात नहीं बतायेंगे, न तो उनकी छवि बनेगी और न ही बिहार में देर तक टिक पायेंगे, इसलिए उन्होंने एनडीए में रहकर भी एनडीए के खिलाफ बोलते रहे और अब यूपीए में रहकर, यूपीए के खिलाफ है। बस मकसद है – स्वयं को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की। नहीं तो, जो नीतीश कुमार को जानते है, वे यह भी जानते है कि यह व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए जब जार्ज फर्नांडिस तथा मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी को औकात बता सकता है तो आम आदमी क्या चीज है? फिलहाल हरिवंश की मजबूरी है – नीतीश कुमार की आरती उतारना। ऐसे भी राज्यसभा के रुप में 3 साल बीत गये, कुछ साल और शेष है, दूसरी पारी भी राज्यसभा में ही रहकर खेलना है, इसलिए समय-समय पर नीतीश कुमार की आरती उतारने में फिर राज्यसभा पहुंच जाने का योग बन जाता है, तो क्या दिक्कत है?
दैनिक भास्कर का क्या कहना
ये अखबार भी नमूना है, इसे देश व समाज से कोई लेना-नहीं, अपनी मर्जी का अखबार है। एकमात्र लक्ष्य – पैसे कमाना और पैसे के लिए किसी के ईमान को खरीद लेना, उसे मजबूर करना तथा अपने इशारों पर नचाना। जो लोग ऐसा करना जानते और चाहते है, वे उसके आगे नतमस्तक हो जाते है। एक उदाहरण देखिये, कुछ दिन पहले एक घटना घटी। घटना ये थी कि चुनाव आयोग ने झारखण्ड के सीएम के प्रेस एडवाइजर और अनुराग गुप्ता के खिलाफ विभागीय कानूनी कार्रवाई करने का पत्र, राज्य के मुख्य सचिव को लिखा। राज्य के सभी अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा। प्रथम पृष्ठ पर स्थान दिया, पर इस अखबार ने उस खबर को इस प्रकार दबा दिया, ऐसे जगह पर छापा कि आप ढूंढने की भी कोशिश करे, तो नही मिलेगा। वह भी सिर्फ इसलिए कि कहीं सीएम के लोग नाराज न हो जाये, विज्ञापन पर रोक न लगा दे, जहां ऐसी स्थिति होगी, वहां कैसी पत्रकारिता होती होगी, भगवान मालिक है। चलिए इधर हरिवंश ने प्रभात खबर से नाता तोड़ा और दैनिक भास्कर से रिश्ता जोड़ा। देखते है, इनकी जोड़ी कितने दिनों तक सलामत रहती है और ये देश व समाज को क्या देते है? जहां तक मेरा मानना है, जिनके पास चरित्र ही नहीं, वे देश और समाज को क्या देंगे, वे तो देश और समाज से सिर्फ और सिर्फ फायदा ही उठायेंगे।