अपनी बात

भारत की दो बड़ी कम्यूनिटियों को जाहिल बनाने का काम किया हैं, खुद को सेक्युलर व साम्यवादी बतानेवालों ने

24 जून 2019 – तबरेज अंसारी पर चोरी का आरोप है और इसी आरोप में उन्मादी भीड़ द्वारा खंभे में बांधकर उसे पीटा जाता हैं और उसके बाद उसकी मौत हो जाती है। तबरेज अंसारी चूंकि मुस्लिम समुदाय से आता है, इसलिए इसे मुस्लिम नजरिये से देखा गया और पूरे देश में मुस्लिम संगठन इस घटना के खिलाफ सड़कों पर उतर गये, मामला संसद तक पहुंच गया। खुद को साम्यवादी, अतिसंवेदनशील कहलानेवाले, खुद को आदर्श कहलानेवाले, हिंसा के खिलाफ हर प्रकार का आंदोलन करने का दंभ भरनेवाले भी इस मामले को तूल देते हैं और लीजिये मामला बड़ा बन गया, भाजपा सरकार की नींद उड़ गई और सरकार इसमें धारा कौन सा लगाये, इसी में उलझ कर रह गई, यह कई उदाहरणों में से एक उदाहरण है।

विजयादशमी –  हिन्दूओं का महत्वपूर्ण त्यौहार, इसी दिन बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में एक स्कूल शिक्षक बंधु प्रकाश पाल, उनकी गर्भवती पत्नी ब्यूटी पाल, पुत्र अंगन पाल की नृशंस हत्या कर दी जाती है। बंधु प्रकाश पाल को आरएसएस का  कार्यकर्ता बताया जाता है और लीजिये इसको लेकर पूरे देश में हिन्दू संगठनों द्वारा बंगाल सरकार को कटघरे में किया जाने लगता है और लोगों को बताया जाता है कि बंगाल में हिन्दूओं की स्थिति बहुत ही खराब है, लेकिन बाद में पता चलता है कि इस हत्या का कारण ही दूसरा है, और फिर ये मामला खुद-ब-खुद दबने लगता है, लेकिन इस नृशंस घटना के खिलाफ कोई मुस्लिम संगठन या  खुद को साम्यवादी, अतिसंवेदनशील कहलानेवाले, खुद को आदर्श कहलानेवाले, हिंसा के खिलाफ हर प्रकार का आंदोलन करने का दंभ भरनेवाले, मुंह नहीं खोले।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के झांसी नगर सीपरी बाजार स्थित लहर की देवी मंदिर के पास एक ब्राह्मण परिवार के चार सदस्यों को जिंदा जलाकर मार डाला गया, पर जरा पूछो हिन्दू संगठनों और मुस्लिम संगठनों से कि किसने इस नृशंस हत्या के खिलाफ आवाज उठाई। पूछो खुद को साम्यवादी, अतिसंवेदनशील कहलानेवाले, खुद को आदर्श कहलानेवाले, हिंसा के खिलाफ हर प्रकार का आंदोलन करने का दंभ भरनेवाले नमूनों से किसने उक्त ब्राह्मण परिवार के चार सदस्यों को जिंदा जलाकर मार डालने की घटना पर घड़ियाली आंसू बहाए।

वो इसलिए घड़ियाली आंसू भी नहीं बहाए, क्योंकि भारत में एक नये वर्ग का तेजी से प्रभाव बढ़ा है, जो ब्राह्मणवाद के नाम पर ब्राह्मणों को ही निशाना बनाता है, उसे लगता है कि अगर भारत को ब्राह्मण विहीन कर देंगे तो भारत सदा के लिए उनके कब्जे में आ जायेगा, और वे इस पर बहुत तेजी से काम कर रहे हैं, क्योंकि भारत का संविधान ब्राह्मणों के खिलाफ कुछ भी करने पर आपको सजा नहीं देता, जबकि दलितों के लिए विशेष प्रावधान कर रखे हैं और यही सबसे बड़ा कारण है कि इन दिनों पूरे देश में खासकर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को सर्वाधिक निशाना बनाया जा रहा हैं।

कल लखनऊ में जिस प्रकार हिन्दू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की चाकू गोद-गोदकर हत्या कर दी गई, गोली मारी गई, ऐसा करनेवालों ने एक प्रकार से संदेश भी दे दिया, संभलना हैं तो संभलो, नहीं तो मरने के लिए तैयार रहो, क्योंकि तुम जिन पर भरोसा रख रहे हो कि ये लोग तुम्हें बचायेंगे, दरअसल वे खुद मारनेवालों के भरोसे जी रहे हैं।

कमाल है ये सारी घटनाएं बताने के लिए काफी हैं कि हमारा समाज न तो हिन्दू है और न ही मुसलमान। यह एक नंबर का जाहिल है। जो तथाकथित हिन्दू व मुस्लिम में बंट गया हैं और इसे तथाकथित हिन्दूवादी संगठन, मुस्लिम संगठन और खुद को सेक्यूलर कहनेवालों ने अपने-अपने पक्ष में कर रखा हैं, और अपनी-अपनी सुविधानुसार इसका इस्तेमाल करते हैं। जब हिन्दू कोई मरता है तो मुस्लिम और सेक्यूलर संगठन चुप्पी साध लेते हैं और जब कोई मुस्लिम मरता हैं तो हिन्दू संगठन चुप्पी साध लेते हैं और यही प्रक्रिया समाज में वैमनस्यता फैलानेवालों को मजबूत करती है।

अगर हमसे कोई पूछे कि इस प्रकार की वैमनस्यता को फैलाने के लिए दोषी कौन हैं तो मैं सीधे कहूंगा कि वे सेक्यूलर संगठन, वे साम्यवादी संगठन, जिन्होंने मनुष्य को भी धर्म में बांटकर अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल किया, जबकि इनके लिए दोनों समान होने चाहिए थी, इनको तो चाहिए था कि कहीं भी कोई मरे, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, सभी के लिए आंसू बहाते और इसे मानवता पर प्रहार बताते, पर इन्होंने जिस प्रकार से राजनीति करनी शुरु की है, ये स्वयं समाज के लिए धब्बा है, इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

ऐसे समय में हमें महात्मा गांधी की याद आती है, जब उन्होंने असहयोग आंदोलन शुरु किया और उसी दौरान चौरी-चौरा कांड हो गई, तब गांधी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में इस घटना को जीवन्त दिखाया गया है। मौलाना अबुल कलाम आजाद कहते है कि गांधी जी आपने असहयोग आंदोलन क्यों वापस ले लिया। गांधी, मौलाना से कहते है जाओ उन अंग्रेजों की पत्नियों और बच्चों से पूछ कर आओ कि जिनका सुहाग उजड़ गया, जिनके पिता को मार डाला गया, वे इस घटना पर क्या सोचते हैं? मौलाना आजाद का दिमाग उड़ जाता है? मौलाना आजाद को तब पता चलता है कि गांधी की अहिंसा, गांधी का सत्य मानव-मानव से बंटवारा नहीं करता, वो हिन्दू-मुसलमान-इसाई यहां तक की अपने दुश्मनों से भी बंटवारा नहीं करता।

आज हम अपने गांधी के देश को कहां पहुंचा दिया। स्वच्छता आंदोलन खुब चला रहे हैं पर सड़क की गंदगी को इस प्रकार अपने मन में बिठा लिया कि वह गंदगी ही प्रधान हो गया। आज हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, दलित हैं, पिछड़े हैं, अरे सब कुछ हैं, पर इन्सान नहीं हैं, और जब इन्सान ही नहीं तो आप क्या हो? खुद से पूछो, मैं तो कहूंगा कि तुम आला दर्जे के जाहिल हो, और जो जाहिल होते हैं, वे सिर्फ जाहिल ही होते हैं, न कि कुछ और, चाहे वे सत्ता में रहे या सत्ता से बाहर, और एक बात याद रखना, मारने वालों-हिंसा फैलानेवालों जो नफरत तुम फैला रहे हो, वही नफरत तुम्हारी जान ले लेगी, याद रखना, क्योंकि नफरत कभी मन की शांति का कारण नहीं बन सकती, एक दिन तुम और तुम्हारा परिवार खुद भी उस आग में खाक हो जायेगा, चाहे वह कोई भी हो।

अरे हमने तो गांधी को नहीं देखा, पर महसूस किया कि गांधी की अहिंसा, हिंसा को ही समाप्त कर देती थी। काश गांधी की अहिंसा पर सभी का ध्यान जाता, और हमारा देश सचमुच खुबसूरत नजर आता, पर फिलहाल तो वह बदसूरत नजर आ रहा है, और मुझे ऐसा भारत नहीं चाहिए। हम तो उस भारत को देखना चाहते है कि जहां चार्वाक के सिद्धांत भी उसी तरह फलते-फूलते नजर आये, जैसे औरों के सिद्धांत। हम तो उस भारत को देखना चाहते है कि कबीर और तुलसी दोनों राम को खोज रहे हैं, पर रास्ता अलग-अलग, एक निर्गुण तो दुसरा सगुण मार्ग से, पर दोनों में कोई वैर नहीं। पता नहीं, ऐसे देश को मैं अपने जीते देख पाउंगा या नहीं, या ऐसे ही चला जाउंगा।

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  • Shahnawaz Alam

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