HC के वरीय अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्र ने CM हेमन्त को लिखा पत्र, बताया आपके कुलगुरु है रावण, इसलिए रावण दहन पर लगाए रोक
झारखण्ड उच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्र रावण दहन के खिलाफ है। वे इसको लेकर अपने ढंग से कड़ा विरोध भी दर्ज करा रहे हैं, हालांकि उनका विरोध इस नक्कारखाने में उन तक नहीं पहुंच रही हैं, जहां पहुंचना चाहिए, ऐसे भी उनका विरोध कोई गलत नहीं हैं। जो शास्त्रों को माननेवाले हैं, वे भी इस बात को स्वीकारते है कि लंकाधिपति रावण का दहन शास्त्र सम्मत नहीं हैं।
इधर अवनीश रंजन मिश्र ने झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को फेसबुक के माध्यम से पत्र लिखकर इस रावण दहन के खिलाफ अपना पक्ष रखा हैं, साथ ही उन्हें याद दिलाया है कि आखिर एक बार जब उनके पिता शिबू सोरेन जब मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने रावण दहन करने से क्यों इनकार किया था, और चूंकि वे स्वयं शिबू सोरेन के पुत्र हैं तो उन्हें भी रावण दहन से इनकार करना चाहिए, क्योंकि रावण उनके कुलगुरु रह चुके हैं। झारखण्ड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्र को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को जो पत्र लिखा गया हैं, वो इस प्रकार है…
“सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
झारखण्ड सरकार।
प्रसंग -विजयादशमी के अवसर पर रावण दहन।
विषय-प्रसंगधीन विषय पर संज्ञान लेते हुए रावण दहन कार्यक्रम को निषिद्ध करने हेतु।
महाशय,
उपरोक्त प्रसंगाधीन एवं विषयांकित संदर्भ में मैं श्रीमान का ध्यान श्रीमान के पिता श्री, झारखण्ड राजनीति की आधारशिला, विशाल वटवृक्ष, मूर्धन्य राजनीतिज्ञ दिशोम गुरु शिबू सोरेन साहब के उस वक्तव्य की ओर आकृष्ट करना चाहूंगा, जब गुरू जी ने लंकाधिपति रावण के पुतले पर तीर चलाने से यह कहकर मना कर दिया था कि ये उनके कुलगुरु हैं, पुनः संथाल रूढ़ी झारखंड का मेरुदंड है और संथाल रूढ़ी –
येन अस्य पितरो माता पितामह।
तेन यायात सतां मार्ग तेन गछ्यत रिश्यते।।
अर्थात् जिस मार्ग से हमारे पूर्वज चले हैं, उसी मार्ग से चलने पर मनुष्य अधर्म से पीड़ित नही होता है अर्थात धर्मानुकूल आचरण करने पर वह दुखी नहीं होता है, पर विश्वास करता है। कथन का अभिप्राय यह कि आप भी संथाल रूढ़ी से आच्छादित होते हैं, उपरोक्त कथन का अनुसरण आपके हैतुक भी प्रासंगिक है, जब आपके पिता श्री के कुलगुरू रावण, तो आपके क्यों नहीं?
यही समय है इस कुप्रथा अधारित बेजा खर्च को बंद करने का, रही बात रावण के वध की तो वो त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम जी के कर कमलों से हो चुका है, सुबह शाम, दिन रात दारू शराब पीते, बलात्कार करते, पर स्त्री गमन, व्यभिचार करते, धोखा, फरेब, झूठ, मक्कारी करते स्व परिभाषित राम के हाथों रावण का पुतला दहन अब प्रासंगिक नहीं है,
हम अपने अंतर्मन में निहित रावण रूपी बुराइयों का नाश करें वही सही मायने में रावण दहन होगा। यही समय है आपका अपने कुलगुरु के प्रति दायित्व निर्वहन का। विशेष आप कुशल राजनीतिज्ञ हैं विषय की गंभीरता समझते होंगे। जोहार!
भवदीय,
अवनीश रंजन मिश्र
अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, रांची।”
मो -94311 41694.
अवनीश रंजन मिश्र ने तो आगे फेसबुक पर यह भी लिखा हैं जो देखा जाय तो प्रासंगिक भी हैं, और इसका जवाब किसी के पास हो भी नहीं सकता, उन्होंने लिखा है कि – सनातन धर्म में पिता को अग्नि देने का अधिकार पुत्र को होता है, इसी अधिकार के उपयोग में आज लोग लंकाधिपति रावण को अग्नि देंगे।