अपनी बात

वो खुद समस्या है, पर समाधान यात्रा निकाल रहा है, वो एक मंत्र भी गा रहा है – “त्वदीय सत्तां लालू प्रसादं, तुभ्यमेव समर्पयेत्”

भगवान कृष्ण के मंदिर में भगवान कृष्ण को भोग लगाने के समय ज्यादातर पुरोहित जो मंत्र बोलते हैं, वो मंत्र है – “त्वदीय वस्तु गोविन्दम् तुभ्यमेव समर्पयेत्”। ठीक उसी प्रकार जब से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्फ पलटू राम उर्फ कुर्सी कुमार उर्फ डगरा पर के बैगन जी को एक सनक सवार हुई है कि वो पीएम मोदी को सत्ता से उखाड़ कर फेंक देंगे।

उन्होंने इस सनक को साकार करने के लिए एक मंत्र को अपना लिया हैं और इसके लिए वे दिन-रात एक कर दिये हैं, क्योंकि वे जानते है कि उनका सनक कितना भी बड़ा क्यों न हो, मोदी को सत्ता से उखाड़ नहीं सकता, इसलिए क्यों नहीं “त्वदीय सत्तां लालू प्रसादं, तुभ्यमेव समर्पयेत्” का मंत्र जाप करते हुए लालू के पुत्र तेजस्वी को बिहार की सत्ता समर्पित कर दें।

हालांकि जब से उन्होंने लालू प्रसाद के गोद में बैठकर लालू नाम केवलम् का जाप करना प्रारम्भ किया है। लालू की सेना में ही वर्षों से लालू भक्ति में लीन जगतानन्द के बेटे ने नीतीश को कहीं का नहीं छोड़ा है, वो रह-रहकर नीतीश की सारी बतीसी निकाल दे रहा है। यही नहीं अब तो उनकी यात्रा में कुर्सियां भी चलनी शुरु हो गई हैं, इसलिए बिहार में वर्तमान में नीतीश कितने लोकप्रिय हैं, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

जो लोग नीतीश को जानते हैं, वे अच्छी तरह से जानते है कि नीतीश को कब किस बात की सनक चढ़ जाये और इस सनक में वे क्या फैसले ले लें, कोई नहीं जानता, पर राजनीतिक पंडित जानते है कि नीतीश कभी भी किसी की भी इज्जत से खेल सकते हैं, उन्हें इस विधा में डिग्री भी हासिल है। कभी लालू प्रसाद को नीचा दिखाकर भाजपा के साथ सत्ता संभालना हो या भाजपा को गरियाकर लालू के गोद में बैठकर बिरहा गाना हो, नीतीश के लिए यह बाये हाथ का खेल है।

नीतीश इस सनक की चक्कर में ये भी भूल जाते है कि उन्होंने अपने ही बयान को सड़क पर और सदन में क्या कहा है? ये वहीं नीतीश है कि सदन में बोलते हैं मिट्टी में मिल जायेंगे पर आप (भाजपा) के साथ नहीं जायेंगे और फिर कुछ महीने बाद भाजपा के साथ सत्ता भी संभालते हैं। अपनी झूठी शान के लिए वे विधानसभाध्यक्ष की इज्जत से भी खेलने में गूरेज नहीं करते।

याद करिये कभी उत्तर बिहार में बाढ़ आया था, उस वक्त गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार की बाढ़पीड़ित जनता को गुजरात की जनता की ओर से आर्थिक मदद की थी, जिसे नीतीश ने लौटा दिया था, ठीक उसी प्रकार जैसे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान में आये बाढ़ के बाद भारत की आर्थिक मदद लेने से इनकार कर दिया था, वह भी तब, जबकि उसके पास खाने तक को पैसे नहीं थे।

याद करिये, भाजपा की कभी पटना में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक आयोजित थी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे। भाजपा नेताओं को डिनर पर आमंत्रित किया और फिर खुद ही उक्त डिनर को कैंसिल भी कर दी, ये चरित्र है नीतीश कुमार का। मतलब पूरा देश देखा कि नीतीश कुमार, बिहार का मुख्यमंत्री किस तरह की नीच हरकत करता है। मतलब भोज देकर, भोज गायब करने की परम्परा, खासकर राजनीति में इसी नीतीश कुमार ने प्रारंभ की थी।

अभी देखिये ये व्यक्ति बिहार में समाधान यात्रा निकाल रहा है। है न कमाल। जो व्यक्ति लगभग बीस वर्षों तक बिहार की सत्ता से चिपका रहा, वो व्यक्ति अब राजनीतिक विदाई के समय आकर समाधान यात्रा निकाल रहा हैं, मतलब जो खुद समस्या है, वो समाधान की बात कर रहा हैं, अरे तुम खुद बिहार से हट जाओ, बिहार की समस्या का समाधान खुद ब खुद निकल जायेगा।

आज भी तुम्हारे 20 वर्ष के शासन के बाद बिहार के लोग रोजी-रोटी के लिए गुजरात-महाराष्ट्र, दिल्ली-पंजाब-हरियाणा अथवा दक्षिण का रुख करते हैं या बेहतर इलाज के लिए दूसरे राज्यों का दौरा करते हैं तो तुम्हें चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए, पर तुम ऐसा करोगे कैसे? इसके लिए तो शर्म और हया की जरुरत होती हैं, वो तो तुम कब के बेच खाये हो।

कमाल है, 15 साल लालू एंड लालू की फैमिली, दूसरी ओर लालू भक्त नीतीश कुमार बीस साल तक राज्य में रहे, फिर भी बिहार बीमारु राज्य से आगे बढ़ ही नहीं सका, इसके लिए कौन जिम्मेवार है – कुर्सी कुमार, पलटू राम, डगरा पर के बैगन जी, जरा आत्मचिन्तन करो न। कब करोगे? आखिर ये बेशर्मीपन का चोला कब उतारकर फेकोंगे, बिहार की जनता जानना चाहती है। अरे तुमलोगों के कारण तो बिहार की सड़कें इतनी जाम रहती है कि कई परिवार के सदस्य तो एंबुलेंस में अस्पताल जाने के समय ही दम तोड़ देते हैं, पर तुम जैसे नेताओं को शर्म नहीं आती।

आज भी बिहार में शराबबंदी नाम की है, जबकि हर चौक-चौराहों पर शराब आसानी से मिलती हैं, मैंने खुद शराबियों को पीकर पटना के ही विभिन्न चौक-चौराहों पर मस्ती में उलटते-घुलटते देखा है, पर आप राजनीतिज्ञों को वो दिखाई नहीं देता। कमाल है, 35 वर्षों तक बिहार में पिछड़ों का शासन और ये दोष देंगे सवर्णों को, ये अभी भी जातीय जनगणना करायेंगे और पिछड़ों व दलितों का शोषण करते हुए अपनी जाति के लोगों को शीर्ष पर पहुंचायेंगे।

यही इनकी घटिया सोच है, जिसके लिए ये राजनीति में आये हैं और अब अपनी जैसे सोचवाले लोगों को ये सत्ता लौंटायेंगे। नहीं तो नीतीश बतायें कि बिहार में कितने लोग पंजाब-हरियाणा, गुजरात-महाराष्ट्र या दक्षिण के राज्यों से आकर यहां रोजी रोटी की तलाश में भटक रहे हैं या यहां के अस्पतालों में अपना या अपने परिवार की इलाज करवा रहे हैं?