अपनी बात

हेमन्त ने पकड़ी ‘रघुवर’ की राह, कनफूंकवों ने रखी मूंछ पर ताव, ‘मोमेंटम झारखण्ड’ का मजा लीजिये ‘इमर्जिंग झारखण्ड’ में

राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की राह पकड़ ली है। जिन-जिन कनफूंकवों ने रघुवर दास के समय मूंछ पर ताव रखी थी, वे सब तो फिलहाल इस सीन से गायब है, लेकिन उनके जगह पर नये कनफूंकवों ने स्थान ग्रहण कर लिया है, जबकि एक अभी भी यहां विद्यमान है, जो उस वक्त भी सक्रिय थी।

याद करिये, मोमेंटम झारखण्ड और इसके नाम पर हाथी उड़ाने का सर्कस। यह भी याद रखिये, कि कैसे इसके नाम पर पहले भारत के मुंबई, फिर कोलकाता, दिल्ली तथा देश के अन्य महत्वपूर्ण शहरों में मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर मस्ती का खेल और फिर उसके बाद कभी चीन तो कभी अमरीका का दौरा। ये सब फिर शुरु होनेवाला है, क्योंकि दिल्ली से इसकी शुरुआत इमर्जिंग झारखण्ड के नाम पर स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कर दी है।

कभी यही मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, इन्हीं सभी हरकतों को लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की तीखी आलोचना भी कर चुके हैं, तथा इनकी इन यात्राओं में बराबर गड़बड़ियां निकाला करते थे, प्रेस कांफ्रेस किया करते थे। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को भी वहीं कंपनी अभी गाइड कर रही हैं, जो कभी रघुवर दास को गाइड किया करती थी, यानी हेमन्त ने मान लिया कि रघुवर दास की सोच सचमुच महान थी, और वे इस महानता को फिर से जमीन पर उतारने के लिए सक्रिय है।

भाकपा माले नेता विनोद कुमार सिंह तो साफ कहते है कि ये सब करने से अच्छा है कि राज्य में जो कंपनियां पहले से मौजूद है, उसे ही सबसे पहले रिवाइव किया जाय। जो लोग यहां सक्षम है, उनकी सक्षमता का फायदा उठाया जाय। नये उद्योगों को निमंत्रित करने से ज्यादा जरुरी है कि अपने लोगों का मनोबल बढ़ाया जाय, साथ ही नये उद्योगों से होनेवाले विस्थापन, पलायन और पुनर्वास को लेकर नीतियां बनाई जाये।

विनोद सिंह कहते है कि आखिर हम कृषि बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं, इसीलिए न कि कही अडानी और अम्बानी मिलकर इस क्षेत्र में आ गये तो कही कृषि व्यवस्था न पंगु हो जाये, किसानों की रोजी-रोटी ही न साफ हो जाये। सबसे पहले हेमन्त सोरेन को चाहिए कि उद्योग को लेकर स्पष्ट नीति बनाये, नहीं तो हाथी उड़ाने की योजना को लेकर जैसे रघुवर दास हवा हो गये, उनकी प्लानिंग फेल हो गई, कही ऐसा नहीं कि खुद भी फेल हो जाये।

इसलिए हेमन्त सरकार को चाहिए कि जिन सोच को लेकर राज्य की जनता ने सत्ता परिवर्तन किया, उन्हें सत्ता सौंपी, उस सोच को वे प्रभावित न करें। हेमन्त सोरेन को यह नहीं भूलना चाहिए कि रघुवर के समय में बहुत बड़ी-बड़ी नौकरियों की बात कही गई, लेकिन अंत में क्या हुआ? पांच-छह हजार की नौकरियां वह भी महानगर में दी गई और कोई गया भी नहीं, हमारे युवा हार-थक कर लौट आये, इसलिए सबसे पहले उद्योगों को लेकर एक नीति बनाये, फिर काम करें, लोगों को विश्वास में लें, तब कुछ करें, तो अच्छा भी लगेगा, ऐसे में तो रघुवर दास वाली हाल होनी तय है, यानी चले थे हाथी उड़ाने और खुद हवा हो गये।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि अर्जुन मुंडा ने भी झारखण्ड में नये उद्योगों को लाने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम तैयार किया था, उनके आमंत्रण पर तो मित्तल तक रांची पहुंच चुके थे, लेकिन क्या हुआ? रघुवर दास ने तो मोमेंटम झारखण्ड करके बहुत कुछ किया, नतीजा क्या निकला? फिर आपने ये कैसे सोच लिया कि आप ऐसा करके कामयाब हो जायेंगे, याद रखिये कनफूंकवें आपको लेकर डूब जायेंगे। फिलहाल 30% लेकर डूब गये हैं, बचा है, 70 प्रतिशत तो वहां तक पहुंचने में भी टाइम नहीं लगेगा, क्योंकि ये जो 30%  लेकर डूबे हैं, यह सब कारनामा मात्र ढाई महीनों में हुआ है।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि झारखण्ड में जितने भी मुख्यमंत्री हुए, सभी प्रयोग ही करते रहे, हेमन्त सोरेन बने तो लगा कि कुछ नया होगा, पर 28 दिसम्बर 2020 के बाद कि जो स्थिति देखने को मिल रही है, वो बेहद हास्यास्पद है। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि अभी राज्य में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, लेकिन अभी तक झामुमो ने अपने विधायक दल की बैठक तक नहीं बुलाई, आखिर क्यों?

आखिर क्यों, झामुमो के ही नेता लोबिन हेम्ब्रम ने मुख्यमंत्री के ही विधानसभा क्षेत्र के मुख्यमंत्री के ही प्रतिनिधि पंकज मिश्र पर गड़बड़ी करने का वह भी सदन में आरोप मढ़ डाला, ये अलग बात है कि उनकी बातों पर पर्दा डालने का प्रयास किया गया है, लेकिन जनता तो जान गई कि कुछ ठीक नहीं चल रहा। ऐसे हालत में, तो पार्टी में ही कही भूकम्प न हो जाये।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि राज्य में सत्ता किसी की हो, चलती तो कनफूंकवों की है, क्योंकि वे सबसे पहले मुख्यमंत्री को ही कब्जे में लेते हैं, तथा वैसे लोगों को मुख्यमंत्री से मिलने नहीं देते, जो मुख्यमंत्री की बेहतरी चाहते हैं, वे दूर से ही उन्हें पुचकार या भय दिखाकर बाहर कर देते हैं, और अपने मनमुताबिक तथा भाव देनेवालों को वे मुख्यमंत्री के सामने खड़ा कर दे रहे हैं।

ऐसे में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का भी वहीं हाल होगा, जो रघुवर दास का हुआ, यानी उनके काल के कनफूंकवे तो आज भी बम-बम है, लेकिन रघुवर दास की क्या हालत है? ऐसे भी हमें क्या? कोई मोमेंटम झारखण्ड करें या कोई इमर्जिंग झारखण्ड, अगर झारखण्ड की जनता के भाग्य में दुख ही लिखा है या शोषण की तकदीर लिखी हुई है तो कोई कर ही क्या सकता है।

क्योंकि आज जिस प्रकार से दिल्ली में प्रेस कांफ्रेस के नाम पर लोगों को मुख्यमंत्री के समक्ष बिठाया गया और जिन बूमों को मुख्यमंत्री के सामने प्रकट किया गया, अगर मुख्यमंत्री बुद्धिमान हैं तो समझ ही गये होंगे कि क्या हो रहा है, और अगर नहीं तो भगवान की मर्जी, जो होगा, देखा जायेगा।

साथ ही इमर्जिंग झारखण्ड के नाम पर जो एमओयू का खेल, खेला गया। वह साफ बताता है कि इज्जत बचाने के लिए इन कंपनियों को मुख्यमंत्री के सामने रखा गया, जिसके लिए दिल्ली जाने की जरुरत ही नहीं थी, हेमन्त सोरेन स्वयं चाहते तो ये कंपनियां खुद ब खुद उनके दरवाजे पर आकर खड़ी होती, मिन्नतें कर रही होती, लेकिन यहां कौन किसको समझाएं, भाई। सब बुद्धिमान है।

अंत में, हेमन्त सोरेन जान लें कि अभी अमित शाह और नरेन्द्र मोदी का ध्यान बंगाल और असम चुनाव पर हैं, जैसे ही बंगाल और असम का चुनाव खत्म हुआ, तो फिर दुसरा कोई इनके पास काम नहीं हैं, हो जायेगा यहां भी जय झारखण्ड, मतलब समझ रहे हैं न। इसी बीच निर्दलीय विधायक सरयू राय ने कहा है कि अगर हेमन्त जी ने प्रयास शुरु किया है, तो ठीक ही है, इसमें कितनी गंभीरता है, ये तो बाद में पता चलेगा। उन्होंने कहा कि सच पूछिये तो इसके बारे में ज्यादा जानकारी भी हमें नहीं हैं।