अपनी बात

भाजपा के “साम दाम दंड भेद” की नीतियों का जवाब देने के लिए मधुपुर के समर में उतरे हेमन्त, जीत को लेकर महागठबंधन के हौसले बुलंद

भारतीय जनता पार्टी के “साम दाम दंड भेद” की नीतियों का जवाब देने के लिए आखिरकार राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन मधुपुर के चुनावी समर में कूद ही गये। यह झामुमो के कार्यकर्ताओं के हौसलों को बुलंद करने के लिए जरुरी भी था। हालांकि झामुमो की जीत सुनिश्चित है, फिर भी चुनावी समर में कार्यकर्ताओं व समर्थकों में जोश का तड़का न हो तो, जीती हुई बाजी भी पलट जाती है।

हेमन्त सोरेन आज अपनी चिर-परिचित अंदाज में मधुपुर विधानसभा के एक- दो जगहों पर आम सभा को संबोधित किया और भाजपा से कुछ सवालों के जवाब भी मांगे। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के मधुपुर आगमन और चुनावी सभा का असर भी दिखा, कार्यकर्ता आत्मविश्वास से लवरेज नजर आये, जबकि दूसरी ओर भाजपा में ये चीजें दिखाई नहीं पड़ रहे।

आज भी भाजपा कार्यकर्ताओं में गंगा नारायण सिंह को टिकट देने को लेकर जो खाईं बनी है, वो खाईं पटी नहीं हैं, हालांकि इस खाईं को पाटने के लिए कई नेताओं द्वारा प्रयास हो रहे है, पर कोई असर नहीं दिख रहा। इधर कुछ दिनों से गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दूबे सक्रिय जरुर हुए हैं, फिर भी इसका असर यहां देखने को मिलेगा, उसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश से लेकर बाबू लाल मरांडी तक कई चुनावी सभा कर चुके हैं, साथ ही तरह-तरह के शिगूफे छोड़ रहे हैं, पर उसका भी असर नहीं दिख रहा है।

पिछली उप चुनावों की तरह एक बार फिर भाजपा के नेता कहने लगे हैं कि अगर झामुमो यहां से हार गई तो फिर नई सरकार यहां दिखेगी, लेकिन इसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही, उसका मूल कारण भाजपा कार्यकर्ताओं में मायूसी तथा दूसरी तरफ झामुमो कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह है। मधुपुर की तो यह स्थिति हो गई है कि जो इलाके भाजपा के माने जाते थे। उन इलाकों में भी झामुमो के झंडे नजर आने लगे है, जिसको लेकर भाजपा के कई नेता गुस्से में दिख रहे हैं। भाजपा नेता निशिकांत दूबे तो अपने सोशल साइट फेसबुक में इसको लेकर अपना गुस्सा भी प्रकट कर चुके हैं।

एक सबसे बड़ी बात यहां दिख रही है कि कांग्रेस के नेता इरफान अंसारी और दूसरी ओर निशिकांत दूबे के बीच गजब की छीटाकशी हो रही हैं, जो बिल्कुल सतही दिख रही है, और आश्चर्य इस बात की भी है कि इस छीटाकशी को देखने/सुननेवालों की भी संख्या बड़ी तादाद में हैं, खुद दोनों नेता इस प्रकार की छीटाकशी को बड़े गर्व से अपने सोशल साइट पर इसे टैग भी कर रहे हैं, वो कहते है न कि बदनाम भी हुए तो क्या हुआ, नाम नहीं होगा। शर्म इस बात की है कि पूछनेवाले ट्रेडर्स पत्रकार की भाषा भी सतही ही हैं, इसलिए तीनों की सतही बातें, ज्ञानवर्द्धन के लिए नहीं बल्कि सतही मनोरंजन में जो विश्वास रखते हैं, उनके लिए यह देखनेलायक है।

कुल मिलाकर देखें तो राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के सक्रिय हो जाने से मधुपुर में अब चुनावी गरमाहट देखने को मिलनी शुरु हो गई, जो 15 अप्रैल तक दिखेगी, जनता ने निर्णय ले लिया है, कोई दलित कार्ड तो कोई मुस्लिम कार्ड खेल रहा हैं, धर्म और जाति ही नहीं, हर प्रकार के कार्ड खेले जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पंडितों की मानें तो इस बार भी हेमन्त सभी पर भारी है, यहां जीत हफीजुल अंसारी की नहीं, बल्कि हेमन्त सोरेन की ही होगी, क्योंकि असली लड़ाई तो हेमन्त ही यहां लड़ रहे हैं।