राजनीति

हेमन्त ने खिलाया रघुवर को च्यवनप्राश, गरजे रघुवर, कह दिया नई स्थानीय नीति से झारखंड के आदिवासियों-मूलवासियों को कोई फायदा नहीं, नई नीति को बताया असंवैधानिक, बाहरियों को नियुक्त करने का नया प्रयास

लीजिये राजनीति इसी तरह करवट लेती है। हेमन्त सोरेन समझ रहे हैं कि अब क्या हम तो अब झारखण्ड की कुर्सी पर ऐसे चिपक गये है कि कोई उखाड़ ही नहीं सकता और इसी घमंड में उनके द्वारा उटपुटांग हरकतें भी की जा रही हैं, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं कि जनता कब की, उन्हें अपने नजरों से उतार चुकी है और नया मामला स्थानीय नीति ने तो इन्हें कही का नहीं छोड़ा है।

बुद्धिजीवियों की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में लाया गया स्थानीय नीति ही सर्वाधिक ग्राह्य है। आज रांची के प्रदेश कार्यालय में संवाददाताओ को संबोधित करते हुए झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि झूठे वादे और नारो के आधार पर झामुमो-कांग्रेस ने सरकार बनाई। युवाओं को बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए कि यह युवाओं की सरकार है। एक वर्ष में पांच लाख नौकरियां देंगे और खतियान के आधार पर स्थानीय नीति परिभाषित करेंगे। लेकिन दोनों में से सरकार ने कुछ नहीं किया।

श्री दास ने कहा कि बेरोजगार नौजवान-नवयुवतियों समेत संपूर्ण झारखंडवासियों को धोखा देने का इस सरकार ने काम किया है। ऐसी नीति बनाई कि कहीं से भी आकर झारखंड में 10वीं या 12वीं पास कर नौकरी पा लो। ऐसे असंवैधानिक नीति बनाई, जिसमें हर भाषा होगी, लेकिन हिंदी नहीं रहेगी। ताकि नीति कानूनी उलझन में फंसी रहे और नियुक्तियां न हो सके। नियुक्ति हो भी तो नियुक्ति के व्यापार का रास्ता खुल सके। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार झारखंड में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक उद्योग बन गया है, अब सरकार नियुक्तियों को भी उद्योग बनाना चाह रही है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की नयी नियुक्ति नियमावली यहां के जातिगत और भाषागत संरचना को नुकसान पहुंचाने की एक बड़ी साजिश रही है। बांग्ला और उड़िया भाषा को शामिल करने का हमलोग स्वागत करते हैं, लेकिन राष्ट्र भाषा हिंदी की उपेक्षा बर्दाश्त करने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि नयी नियुक्ति नियमावली के माध्यम से झारखंड में बाहरी लोगों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। नये प्रावधान के बाद देश के किसी भी हिस्से में रहनेवाला व्यक्ति सिर्फ झारखंड से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास कर यहां नौकरी प्राप्त कर सकता है।

झारखंड के अधिकांश छात्र जनजातीय भाषा की बजाय हिन्दी भाषा में पढ़ते हैं। वर्तमान सरकार ने जानबुझकर हिन्दी को ही परीक्षा प्रक्रिया से बाहर कर दिया ताकि यहां के छात्रों को नुकसान हो। पूर्व की भाजपा सरकार ने 2016 में पहली से 10 वीं तक की परीक्षा पास करनेवालो को नौकरी का प्रावधान किया था। उसी प्रावधान का श्रेय यह सरकार ले रही है जबकि उसने सिर्फ 10 वीं कि परीक्षा पास करने का प्रावधान कर यहां के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है।

पूर्व की भाजपा सरकार ने जेपीएससी और एसएससी की परीक्षा में स्थानीय भाषाओं को शामिल किया था। संथाली, मुंडा, हो, खड़िया, कुड़ुख, कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया व अन्य भाषाओं को शामिल किया गया था। वर्तमान सरकार ने विगत डेढ़ साल में नियुक्ति तो नहीं ही की आगे कि नियुक्तियों को भी उलझाने की मंशा से नियुक्ति नियमावली में संशोधन करने का काम किया है। वर्तमान सरकार ने छठीं जेपीएससी के माध्यम से गलत नियुक्ति करने का काम किया है। साथ ही हाईकोर्ट के आदेश का पालन भी नहीं कर रही है जिसमें दोषी पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी थी।

श्री दास ने कहा कि वर्तमान सरकार राज्य की सामाजिक समरसता को बर्बाद करने पर तुली हुई है। नयी नियुक्ति नियमावली से राज्य के आदिवासियों व मूलवासियों को कोई फायदा नहीं होगा बल्कि नयी नियुक्तियां लटक जायेंगी। उन्होंने कहा कि झारखंड में इंटरमीडिएट तक क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई नहीं होती है। किसी भी विषय में स्नातक की पढ़ाई कर कोई व्यक्ति नयी नीति का लाभ उठा सकता है। 

मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन का एक साल में पांच लाख नौकरी देने का वादा हवा हवाई साबित हो गया है। उसी के बचने के लिए अब पूरे मामले को उलझाने का प्रयास चल रहा है। नयी नियुक्ति नियामवली पूरी तरह से असंवैधानिक है जिसका असर भविष्य में होनेवाली नियुक्तियां पर पड़ेगा। जिसका सीधा नुकसान आदिवासियों, मूलवासियों और झारखंडवासियों को होगा।