अपराध

हेमन्त सरकार ने रांची के रिम्स से “दवाई दोस्त” प्रतिष्ठान को हटाने का आदेश दिलवाकर गरीबों का गला घोटनेवाला किया अनैतिक काम

हेमन्त सरकार द्वारा रांची के रिम्स से दवाई दोस्त प्रतिष्ठान को हटाने का चौतरफा विरोध जारी है। जैसे ही लोगों को यह समाचार मिला कि रांची के रिम्स जैसे अस्पताल से दवाई दोस्त प्रतिष्ठान को एक महीने के अंदर रिस्म परिसर से हट जाने का आदेश मिला है, जनता में आक्रोश स्पष्ट रुप से देखा जा रहा हैं। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के साथ-साथ झारखण्ड सिविल सोसाइटी के सदस्य भी राज्य सरकार के इस अनैतिक कार्य की आलोचना कर रहे हैं।

हम बता दे कि रांची में दवाई दोस्त एक ऐसा प्रतिष्ठान हैं, जो जरुरतमंदों को बहुत ही सस्ती दरों पर महंगी दवाएं उपलब्ध करा देता हैं, जिससे आम आदमी को दिक्कतों का सामना नहीं करना  पड़ता और उसे भारी मात्रा में रुपयों की भी बचत हो जाती हैं, जिससे वे अन्य कार्य कर लेते हैं। शायद यही बातें हेमन्त सरकार और न्यूज 11 भारत चैनल को पसन्द नहीं आ रही है, और दोनों ने मिलकर षडयंत्र रचकर रिम्स परिसर से दवाई दोस्त जैसी गरीब हितैषी प्रतिष्ठान को निकलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो राज्य के स्वास्थ्य विभाग की औषधि निदेशक ने न्यूज 11 भारत के मालिक अरुप चटर्जी के हितों के संरक्षण को लेकर जितनी दरियादिली दिखाई, उतना वो गरीबों के लिए दिखाती तो मानवता को एक बहुत बड़ा उपकार होता, पर यहां तो मानवता को लीलने का ही प्रयास किया जा रहा है।

नेता विरोधी दल बाबू लाल मरांडी का कहना है कि “रांची के रिम्स अस्पताल कैम्पस में स्थित जेनेरिक दवाइयां सस्ते दर पर बेचनेवाले ट्रस्ट की दवाई दोस्त दुकान बंद कराने का प्रयास किया जा रहा है। यह घोर अनुचित काम है और यह गरीबों को सस्ते दर पर मिल रही दवाई जैसे जनोपयोगी लाभ से वंचित कराने का प्रयास है। दवाई दोस्त की जेनरिक एवं एकदम सस्ती दवाई से जन-सामान्य को लंबे समय से लाभ मिल रहा है। सरकार को चाहिए था कि ऐसी दुकानें जिला व प्रखण्ड स्तर तक खुलवाकर गरीबों को लाभान्वित कराती। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता जी, आप दवाई दोस्त दुकान बंद न होने देने के लिए कदम उठाएं।”

राहुल अवस्थी लिखते है कि “हाई कोर्ट की बार-बार फटकार के बाद भी राज्य सरकार झारखण्ड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स को सुधारने के लिए कोई काम नहीं कर रही और साथ ही साथ रिम्स के निर्देशक भी समय-समय पर तुगलकी फरमान जारी कर रहे हैं। क्या कमीशनखोरी के लिए सस्ती दवा देनेवाली दवाई दोस्त बंद किया जा रहा है।”

वरिष्ठ पत्रकार सुनील तिवारी कहते है “दवाई दोस्त की जेनेरिक दवा दुकान गरीबों के लिए लाइफ लाइन के समान है। इसका अस्तित्व समाप्त कर गरीबों को महंगी दवा खरीदनों को मजबूर करने के पीछे छिपे मंसूबे को झारखण्ड सरकार क्यों नहीं समझना चाहती है?”

झारखण्ड सिविल सोसाइटी के फेसबुक पर अमृतेश पाठक खुलकर लिखते हैं – “रिम्स प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा रिम्स परिसर से “दवाई दोस्त” को हटाना साबित करने को काफी है कि दवाई के नाम पर लूटने में रिम्स को दिक्कत हो रही है तथा उसका कमीशन संबंधित विभाग के मंत्री अधिकारी को नहीं मिल पा रहा है।

दवाई दोस्त पिछले कई सालों से न सिर्फ रिम्स बल्कि रांची शहर के बहुत सारे जगहों पर सस्ती दवाओं को जनता के लिए उपलब्ध करा रहा है। जिन दवाओं की कीमत 100, 200, 500 है उसे 80 से 85 प्रतिशत तक कम कीमत में जनता को मिल रहा है। यह दवा कंपनियों, दवा दुकानदारों, डॉक्टरों और कमीशन खोर अधिकारियों तथा मंत्रियों को रास नहीं आ रहा है।

इसलिए सब मिलकर बहुत पहले से दवाई दोस्त को हटाने का षड्यंत्र रच रहे हैं। रिम्स में झारखंड ही नहीं बिहार और बंगाल के भी मरीज भर्ती होते हैं। ज्यादातर मरीज गरीब और लाचार होते हैं। सरकारों को जहाँ सस्ती दवा की व्यवस्था के लिए काम करना चाहिए वहां एक निजी प्रयास पर शुरू किए गए पुनीत कार्य पर भी गिद्धों की नजर पड़ गई है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पूर्व में पत्रकार या चैनल पत्रकारीय कार्य में ही रुचि रखते थे, लेकिन अनुचित ढंग से पैसे कमाने की लालच व ब्लैकमेलिंग के धंधे ने उन्हें हैवान बना दिया है, आश्चर्य यह है कि हेमन्त सरकार को ऐसे लोगों की पहचान होने के बावजूद, उनके मनोबल को बढ़ाना बताता है कि यहां सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा।

अगर ऐसे अनैतिक कार्य होते रहे, तो कल पत्रकारों को भी लोग गंदी निगाहों से देखेंगे, होना तो ये चाहिए कि रांची के सारे पत्रकारों को इस अनैतिक कार्य के लिए उक्त न्यूज चैनल का विरोध करना चाहिए, पर इतना करने के लिए नैतिक बल का भी होना जरुरी हैं, जो किसी में नहीं हैं। फिलहाल हेमन्त सरकार और न्यूज 11 के इस गठजोड़ ने गरीबों के हालत तो खराब जरुर कर दिये हैं, देखते है कि इसका परिणाम क्या निकलता है –सुखद या दुखद।