हेमन्त ने अचानक क्रांतिकारी बने अखबारों को बड़ी विनम्रता से चेताते हुए कहा इहां न चलिहे राउर माया
आज सबेरे-सबेरे राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के टिवटर पर विद्रोही24.कॉम की नजर पड़ी। टिवट था – “मुझे बहुत खुशी है कि पहले की तरह सरकार के गुण-गान की जगह आज मीडिया जनता के सरोकार के मुद्दे पूरी तन्मयता से उठा रहे हैं। यह बदलाव स्वागतयोग्य है।” यह टिवट बता रहा है कि मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की नजरों में राज्य के अखबारों की क्या इज्जत है? यह इज्जत राज्य के अखबारों ने खुद बनाई है, ऐसा नहीं कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपनी ओर से कह दी है, ऐसी सोच राज्य की सारी जनता की है।
जनता साफ कहती है कि इन अखबारों में छपी समाचारों पर न तो विश्वास किया जा सकता है और न ही इन्हें सम्मान की नजरों से देखा जा सकता है क्योंकि जो अखबार अपने संपादकीय पृष्ठों तक को सरकार की आरती उतारने में लगा दें, उस पर विश्वास कैसे की जा सकती हैं, वह भी सफेद झूठ रुपी विज्ञापन के लिए।
ठीक उसी तरह जैसे कोई कह दे कि लीजिये यह साबून है, इसमें आलू-गोभी का रस मिला हुआ है, इससे त्वचा कांतियुक्त हो जाती है तो क्या आप विश्वास करेंगे, आप तो यही कहेंगे कि आलू और गोभी का साबून बनाने में उपयोग क्यों भाई? पर चूंकि विज्ञापन युग है, झूठ को भी इस प्रकार से जनता के बीच परोसना है कि जनता को लगे कि वो जो विज्ञापन प्रकाशित करनेवाला कह रहा है, वो सही ही होगा।
जो लोग रांची से प्रकाशित अखबारों को जानते हैं, वे यह भी जानते है कि कैसे इन अखबारों ने पिछले पांच वर्षों तक रघुवर सरकार की स्तुति गाई और जनसरोकार के न्यूज से खुद को अलग रखा। मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा के सभी बड़े-छुटभैये नेताओं को अखबारों में जगह दी गई, पर झामुमो और अन्य विपक्षी दलों के छोटे नेता तो दूर, प्रमुख नेता भी अखबारों में स्थान को तरस गये।
पर जैसे ही सरकार बदली, सभी अखबार हेमन्त स्तुति में जुट गये, उन्हें लगा कि सरकार बदली है, तो चलो स्तुति गाये, कुछ अच्छा ही होगा, पर हेमन्त तो दूसरी मिट्टी के बने हैं, उन्हें इस चुनाव ने अच्छा ज्ञान दिया है, वो ज्ञान है कि जनता को अखबार में छपे विज्ञापन और समाचार से कोई मतलब नहीं होता, वो सत्य को जानती है और उसी अनुसार फैसला भी सुना देती है।
इधर मुंहमांगी विज्ञापन न मिलने से नाराज कुछ तथाकथित अखबारों ने सरकार को ब्लैकमेलिंग करने का काम शुरु कर दिया है और ऐसी-ऐसी खबरें छाप रहे हैं, जिससे सरकार का इमेज खराब हो, तथा भाजपा का इमेज बनना शुरु हो जाये, इसलिए जो अखबारें पिछले पांच साल तक जन-सरोकार की खबरों से अपने को दूर रखा, अब जनसरोकार की खबरें वह भी प्रमुखता से प्रथम पृष्ठ पर छापने शुरु कर दिये हैं।
इसी बीच अपने संवाददाताओं को सक्रिय किया गया कि वे सूचना के अधिकार का सदुपयोग करते हुए, समाचार को अखबार में स्थान दें, यानी एक बार फिर क्रांतिकारी बने, लेकिन हमें लगता है कि मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने भी ठान लिया है कि आप जो भी करो, जो सही होगा, उसको तुम्हारे न छापने पर भी मानेंगे, सरकार अपना काम कर रही हैं, वह हर प्रकार के फैसले ले रही हैं, जिन फैसलों को लेने के लिए जनता ने उन्हें दायित्व सौंपा हैं।
आप खुब छापिये, उससे आखिरकार जनता को ही फायदा होगा, यहीं तो चाहिए भी, लेकिन ये सोचियेगा कि इस भय से हेमन्त सोरेन आप के आगे नतमस्तक हो जायेंगे, तो ये भूलावे में मत रहिये। क्योंकि न तो फिलहाल हेमन्त सोरेन को आरती पसन्द है और न ही आपकी यह ब्लैकमेलिंग, तभी तो टिवटर में अपनी बात बड़ी ही शालीनता से कहकर उन्होंने मैसेज दे दिया कि “इहां न चलिहे राउर माया।”
पहले पत्रकारिता थी, अब सत्ता की दलाली है.
इसी कारण अख़बारों की कोई विश्वसनीयता नहीं रह गयी है. कॉर्पोरेट मीडिया ख़बरें छापता नहीं, प्लांट करता है.