इधर भाजपा वाले बैठक-बैठक खेल रहे थे, उधर भाजपा के एक बड़े नेता गिरिनाथ सिंह पाला बदल रहे थे मतलब संकेत साफ है कि भाजपा कुछ भी कर लें, झारखण्ड में इस बार बेड़ा गर्क होना तय है
आज भाजपा प्रदेश कार्यालय में दो अलग-अलग बैठकों का आयोजन हुआ। एक बैठक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हुई, जिसमें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी, आजसू पार्टी के सुदेश महतो, नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी, केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केन्द्रीय राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी, क्षेत्रीय संगठन मंत्री नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी व संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह, साथ ही लोकसभा के सभी प्रत्याशी, उनके प्रभारी, संयोजक, सह संयोजक, जिलाध्यक्ष, जिला प्रभारी उपस्थित रहे।
वहीं दूसरी बैठक भाजपा ने अपने लोकसभा प्रभारियों, संयोजकों, सह-संयोजकों, जिलाध्यक्षों व जिला प्रभारियों के साथ अलग से किया। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो भाजपा को अब पूरी तरह से विश्वास हो गया है कि उनकी पार्टी की स्थिति झारखण्ड में ठीक नहीं है। इसलिए उनके स्थानीय नेता जिनकी झारखण्ड में पकड़ न के बराबर हैं, उन्होंने बैठक-बैठक खेलना शुरु कर दिया है। जिसका परिणाम भी राजनीतिक आकलन करनेवालों को पता है।
राजनीतिक पंडितों का तो साफ कहना है कि इस बार भाजपा के एक मंत्री की हार तो शत प्रतिशत सुनिश्चित है। इसमें कोई इफ-बट है ही नहीं। लेकिन फिर भी वे हाथ-पांव ऐसे मार रहे हैं, जैसे कि लगता है कि उनकी इस बार जीत सुनिश्चित है। ज्ञातव्य है कि ये जनाब पिछली बार भी जैसे-तैसे घिच-घाचकर चुनाव जीते थे। लेकिन इस बार लगता है कि इंडिया गठबंधन निराश इस बार नहीं होगा।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा का झारखण्ड में हार का मूल कारण उनके नेताओं में आया अहंकार, पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं का मजाक उड़ाते हुए उनसे रायशुमारी लेने के बाद भी उनकी रायशुमारी को हवा में उड़ा देना और अपने मनमाफिक धनबल व जातिबल के आधार पर किसी को भी टिकट थमा देना, दूसरे दलों के नेताओं को सर्वाधिक महत्व देना, जिसने जमकर भाजपा और उनके कार्यकर्ताओं को जिंदगी भर गाली दी, उसे ऐन मौके पर टिकट थमा देना, अपराधिक चरित्र के व्यक्ति को संत बताते हुए उसे धनबाद सीट से खड़ा कर देना साथ ही बड़े ही ढिठाई से उसका समर्थन करना, बिल्डरों, पूंजीपतियों, धनजीवियों को ज्यादा महत्व देना हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि एक समय था कि बाबूलाल मरांडी आदिवासियों के नेता थे। लेकिन फिलहाल ये भी सच्चाई है कि आज कोई आदिवासी उन्हें अपना नेता नहीं मानता और न ही अर्जुन मुंडा को ही आदिवासी अपना नेता मानते हैं। आज भी झारखण्ड में आदिवासियों का कोई नेता हैं तो वे हेमन्त सोरेन हैं, इस सच्चाई से कोई इनकार भी नहीं कर सकता। अमर बाउरी को दलित नेता बनाकर दलितों के वोट हासिल करने की कोशिश भाजपा ने जरुर की है। लेकिन वे ऐसा कर पायेंगे। दिख नहीं रहा।
इधर जब से ईडी ने हेमन्त सोरेन को जेल में डाला है। यहां के आदिवासियों और मूलवासियों में ये भावना बलवती हो गई है कि हेमन्त सोरेन को झूठे आरोप में भाजपा की केन्द्र सरकार ने ही जेल में डलवाया है। जिसको लेकर आदिवासी-मूलवासी एकजूट होकर भाजपा को सबक सिखाने में जूट गये हैं। उधर भाजपा कार्यकर्ताओं में इस बार अंदर ही अंदर आक्रोश अपने ही नेताओं के खिलाफ धधक रहा है। जिसकी गूंज तो भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं के कानों तक पहुंच रही हैं। पर ये उस गूंज को जान-बूझकर नजरंदाज कर रहे हैं।
कई शीर्षस्थ नेता तो अब पाला भी बदलने लगे हैं। विद्रोही24 ने तो पूर्व में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि भले ही ये मोदी लहर, राम लहर का दावा करें। लेकिन इस बार इनकी पार्टी में ही भगदड़ मचेगी और बड़े-बड़े नेता इन्हें ही जयश्रीराम कहकर पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में जायेंगे और इनका कब्र खोदेंगे। जेपी पटेल, रामटहल चौधरी और अब गिरिनाथ सिंह का जाना इसी बात का संकेत हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो अब भाजपा कुछ भी कर लें। झारखण्ड की जनता और भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं ने जो दूरियां बनाई हैं, वो दूरियां इसी तरह चुनाव तक रह गई तो कमल कब और कैसे इंडिया गठबंधन की लहर में बह गया पता ही नहीं चलेगा, प्रदेशस्तरीय नेताओं के हाथों में सिर्फ कमल का डंठल रह जायेगा। इसलिए जो लोग दिवास्वप्न देख रहे हैं कि भाजपा झारखण्ड में अच्छा करेगी, उन्हें इस बार राज्य की जनता ही नहीं, बल्कि भाजपा के ही समर्पित कार्यकर्ता भी सबक सिखायेंगे। जब मतदान होगा, वे आराम से अपने घरों में यह कहकर सोयेंगे की मोदी के नाम पर तो जनता वोट दे ही देगी।