अरे ढूंढों भाजपाइयों को, कहां …. गये, पहले तो स्पीकर और सरकार पर दोष मढ़ते थे कि ये नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने दे रहे, अब सब कुछ क्लियर हैं तो उन्हें अपनी ओर से नाम देने में क्या दिक्कत आ रही, कहीं बिखरने …
अरे ढूंढों भाजपा को यारों, कहीं मिले तो हमें बताओं, अब तो राज्य सरकार ने बजट सत्र के तिथियों की भी घोषणा कर दी, आखिर ये कब बतायेंगे कि इनका सदन में विधायक दल का नेता कौन होगा? पहले तो विधायक दल का नेता नहीं घोषित होने पर कभी स्पीकर, तो कभी राज्य सरकार पर दोष मढ़ देते थे, अब जबकि स्पीकर ने दरवाजा अपना खोल रखा है और राज्य सरकार खुद ही पूछ रही है कि भाजपावाले बतायें कि उनका विधायक दल का नेता कौन होगा, नेता प्रतिपक्ष कौन होगा तो ये बता क्यों नहीं रहे?
आखिर उन्हें केवल एक नाम घोषित करने पर पसीने क्यों छूट रहे? कहीं उन्हें इस बात का ऐहसास तो नहीं हो रहा कि अगर पार्टी ने विधायक दल के नेता की घोषणा कर दी, तो कही पार्टी में भगदड़ न मच जाये और उनके कई नेता उछलकर झामुमो के गोद में न बैठ जाये? राजनीतिक पंडित तो साफ कह रहे हैं कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। अंदर ही अंदर खिचड़ी पक रही हैं, सभी को पता है कि जिसका भी नाम नेता प्रतिपक्ष का इधर से घोषणा होगा, कइयों के मुंह फूलेंगे और जब मुंह फूलेंगे तो उसका असर भी पड़ेगा।
धीरे-धीरे पार्टी अंदर ही अंदर कमजोर होती जायेगी और एक दिन ऐसा भी आयेगा कि पार्टी के कई शीर्षस्थ नेता जो अभी तक पार्टी के झंडे-बैनर लेकर पार्टी की दुहाई दे रहे हैं, पार्टी छोड़कर दूसरे दल का रास्ता नापेंगे। ऐसे भी इधर जब से रघुवर दास के फिर से पार्टी ज्वाइन करने की बात आई हैं, पार्टी में कई धड़ा उत्पन्न हो गया है और पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं को भी सबक सिखाने में तूला है। इधर पार्टी में बढ़ी मूरखों की जमात इस समय का फायदा उठाने के लिए काफी मेहनत कर रही हैं।
वो जानती है कि जितना पार्टी में सिरफुटोव्वल होगा। अंत में फायदा उसी को होना है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा पूरे प्रदेश से गायब हो गई है। गायब होने का मूल कारण पार्टी का अपने मूल सिद्धांतों से पूरी तरह डिरेल होना हैं। जो पार्टी कभी भी शून्य से शिखर तक पहुंचने की आमदा रखती थी, आज किसी अस्पताल के आईसीयू में लेटकर श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता देख रही हैं कि कब उसे यहां से मुक्ति मिले और वो श्मशान घाट पहुंच जाये।
आश्चर्य इस बात की है कि वर्तमान में इस स्थिति को देखकर जिन्हें कभी खून खौलता था, वे भी अब चुप्पी मारकर बैठ गये हैं। उन्हें लग रहा है कि कहीं ऐसा नहीं कि उनके बोलने से उन्हें ही किक मारकर मूर्खों की जमात साइड न थमा दें। फिलहाल स्थिति यह है कि मूरखों की जमात ने पार्टी को अपने कैद में ले लिया है।
हालांकि सोशल साइट पर युवाओं की टीम क्रांति कर रही हैं। वो भाजपा के कई नेताओं का उपनाम देकर, उनके लंका में आग लगाने का भरसक प्रयास कर रही हैं। जिसमें आंशिक रुप से उन्हें सफलता भी मिल रही हैं। आंशिक सफलता का आलम यह है कि भाजपा के रांची से लेकर दिल्ली तथा उधर नागपुर भी जान चुका है कि पार्टी में किस नेता का नाम क्या रखा गया है और उसे क्यों ऐसा कहकर बुलाया जा रहा हैं।
उधर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने इनकी वो दशा कर दी हैं कि आनेवाले दस सालों में ये नेता अपना नाम तक भूल जायेंगे, पार्टी को ये क्या मजबूत करेंगे? अभी तो चारों ओर झामुमो ही झामुमो दिखाई पड़ रहा हैं। भाजपा या उनके गठबंधन के लोग दिखाई भी नहीं दे रहे हैं।
मतलब भाजपा की मूर्खता भरे कदम ने पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाया हैं, अभी तक शीर्षस्थ नेता इसका आकलन भी नहीं कर सकें और जो उन्हें राह बता रहा हैं, वे उसे सबक सिखाने में लगे हैं और संगठन महापर्व का नाटक कर खुद को धोखा देने में ज्यादा समय बीता रहे हैं। राजनीतिक पंडित तो ये भी कह रहे है कि संगठन महापर्व का नाटक केवल भाजपा में ही चलता है, अन्य दलों में इस प्रकार का नाटक नहीं चलता, वहां तो उनके नेता जो कहते हैं, उनके समर्थक उनकी बातों को जमीन पर उतारने के लिए चल देते हैं।