अरे वो तो अपना पंकज था, वो आखिरी call और सपना (पार्ट-2)
रांची के पत्रकार पंकज टीएमएच की सीसीयू में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे और मेरा मन यही कह रहा था – कि काश पत्रकार पंकज ठीक हो जाए। कौन नहीं लगा हुआ था उसके लिए। अप्रैल का महीना, कोरोना पीक पर जा रहा था, मेरे पास ट्वीटर पर पंकज की मदद के लिए गुहार लगाती मैसैज आई थी। रोजाना ऐसे मैसेज आते रहते थे और मैं मदद के लिए जुट जाती थी, लेकिन यहां पत्रकार की बात थी तो और भी जिम्मेदारी बढ़ गई।
मैंने प्रदेश भाजपा प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त और अन्य को ट्वीट forward करते हुए लगातार उनसे संपर्क साधा। पंकज का संघर्ष टीएमएच में दाखिले के पहले से ही शुरू हो चुका था। महामारी विकराल रूप लिए थी। फूलती सांसो, उखड़ती सांसों को लिए अस्पतालों में बेड के लिए जूझते लोग, बेड मिल जाए तो oxygen सिलेंडर की किल्लत, वो मिल जाए तो आईसीयू -सीसीयू के लिए जद्दोजहद और वह भी हो जाए तो प्लाज्मा के लिए संघर्ष।
पंकज भी इन्हीं पड़ावों से गुजरा। कुणाल षाड़ंगी की मदद से टीएमएच में जगह लगातार मिलती गई, मंत्री और उपायुक्त भी लगातार लगे रहे, पंकज की मदद के लिए सबने अपना बेहतरीन रोल अदा किया। पत्रकारों के लिए लगातार मुखर रहने की वजह से लोगों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही रहती हैं। पंकज के लिए जहां कुणाल षाड़ंगी रात-रात भर जगकर टीएमएच के साथ संपर्क साधे रहे, वहीं उपायुक्त भी पल-पल के अपडेट हमलोगों को बताते रहे, क्योंकि बात पत्रकार की थी।
पंकज के भाई विवेक के साथ संपर्क हुआ जो खिलाड़ी हैं। हम लगातार भगवान से प्रार्थना करते रहे। कुछ दिन इसी तरह बीते। पर मुझे पता नहीं था कि अगले कुछ दिनों के बाद मेरे पैरों तले ज़मीन खिसकने वाली है। कोरोना महामारी की इस आपदा में मैं खुद एक बड़े operation से गुजरकर घर पर मेडिकल रेस्ट में रहते हुए लगातार ट्वीटर और अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की मदद में इतनी तल्लीन थी कि पंकज और विवेक और इस कनेक्शन पर ध्यान नहीं दे पा रही थी।
खैर, 22अप्रैल आ गया था। इसी बीच पूर्व सासंद आभा महतो के पति सह पूर्व सासंद शैलेन्द्र महतो भी कोरोना पीड़ित होकर टीएमएच में दाखिल कराए गए थे। सीसीयू में वे भी थे। सीसीयू में पंकज भी थे। आभा महतो लोकप्रिय नेता होने के साथ साथ एक बहुत ही सकारात्मक विचारोंवाली महिला हैं, वे अपनी मन:स्थिति की परवाह न करते हुए लगातार विवेक को ढाढ़स बंधाती रही। जब मैं फोन करती तो विवेक और आभा जी दोनों से बात होती, दोनों सीसीयू के बाहर बैठकर एक दूसरे को सपोर्ट करते। मैं कभी विवेक को और कभी आभा महतो को फोन करती।
पंकज जब से टीएमएच में दाखिल हुआ, तब से जो उसकी हालत खराब थी, उसमें खास सुधार नहीं हुआ। सीसीयू पहुंचने के बाद प्लाज्मा को लेकर भी इंतज़ाम किया गया लेकिन पंकज को वेंटीलेटर पर डालना पड़ा, 22 अप्रैल को हम सबने हर संभव कोशिश करते हुए ईश्वर से प्रार्थना की और फिर ईश्वर पर छोड़कर सब शांत हो गए। संभवतया 23 अप्रैल को कुणाल षाडंगी ने मुझे सूचना दी–पंकज को बचाया नहीं जा सका। कुणाल षाड़ंगी उस दिन बहुत दुखी थे। उन्होंने पंकज की मदद के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया था।
बहुत अफसोस हुआ, लेकिन जब पंकज की खबर उसकी पुरानी फोटो के साथ ट्वीटर पर देखा तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई। ये तो अपना पंकज प्रसाद था। oxygen लगी फोटो से मैं तब समझ नहीं पाई कि ये हमारा न्यूज 18 का पूर्व कलीग पंकज प्रसाद ही था, जो दो साल पहले तक हैदराबाद में पदस्थापित था और मूल रूप से जमशेदपुर का रहनेवाला था। सोशल मीडिया में उसको लेकर रांची का पत्रकार बताने की वजह से मैं समझ नहीं पाई।
हालांकि पंकज ने जब न्यूज 18 छोड़ा था (डेस्क पर था), तब मुझे बताया था कि रांची में कुछ अपना शुरू कर रहा है। अब सब कुछ याद आ गया और मैं स्तब्ध थी। पंकज ने 11 अप्रैल को मुझे फोन किया था। तब क्या पता था कि ये आखिरी call है। पंकज जब भी अपने घर जमशेदपुर के टेल्को आता, मुझसे संपर्क करता और न्यूज 18 के दफ्तर मिलने आता। ये दो-तीन साल पुरानी बात है। तब मैं न्यूज 18 में थी। उसने अपने भाई विवेक के बारे में भी बताया था। चूंकि वह डेस्क पर था तो बराबर उससे संपर्क रहता था।
तो मैं 11अप्रैल की बात कर रही थी, पंकज प्रसाद ने मुझे फोन कर बताया कि उसके मंझले भाई की शादी होनेवाली है और वह मुझे आमंत्रित करना चाहता है। मैंने अपने मेडिकल लीव का हवाला देते हुए आने में असमर्थता जताई। फिर पंकज ने मुझसे जेएनसी (जमशेदपुर नोटिफाईड एरिया कमेटी) के किसी पदाधिकारी का नंबर मांगा ताकि वह कोरोना काल के गाईडलाईंस के मुताबिक प्रशासन से इस शादी को लेकर गाईडैंस लेते हुए सूचना देने की प्रक्रिया समझ सके।
इस मसले को लेकर मैंने पंकज को न सिर्फ नंबर दिया बल्कि उससे दो बार बात हुई। बातचीत का विषय यही था कि कैसे व्यवहारिक तौर पर शादी में गाईडलाईंस के मुताबिक कम लोगों को बुलाया जाए। इसको लेकर हंसी-मजाक भी हुआ और पंकज चिंतित भी लगा, लेकिन कहीं से भी नहीं लग रहा था कि वह बीमार होगा। उस दिन के बाद पंकज से फिर बात नहीं हो पाई।
उसके बाद का किस्सा आप सब पढ़ चुके हैं। 23अप्रैल को मैंने विवेक को वाट्सएप किया – आई एस सो sorry, आप हिम्मत बनाए रखिए। विवेक मुझे दीदी कहता है। अपने भाई को खोकर बहुत निराश है, अपनी मां और भाभी को देखकर उसका कलेजा कांपता है। पंकज का छोटा सा बेटा है जो अपने पापा को रोज़ खोज रहा है।
कैसे ये परिवार इस दुख से उबरेगा कहना मुश्किल है। पत्रकार संगठन एआईएसएम के झारखंड प्रभारी प्रीतम सिंह भाटिया मुआवजे को लेकर विवेक को गाईड कर रहे हैं कि कैसे अप्लाई हो। कोई भी मुआवज़ा पंकज की भरपाई नहीं कर सकता, लेकिन हम सबकी कोशिश है कि जो कुछ भी बेहतर किया जा सके किया जाए। सुना है वक्त जख्म भर देता है, ईश्वर पंकज के परिवार को शक्ति और हौसला दे। पंकज, मेरे भाई तुम जहां भी हो, सुकुन से रहना। हो सके तो माफ करना कि तमाम कोशिशों के बावजूद तुम्हें बचा न सके।