अपनी बात

हिमंता बिस्वा सरमा के रात्रिकालीन सेवा का कमाल, पत्रकारों/इंफ्लूएंसरों को दिल हुआ बाग-बाग, राजनीतिक पंडितों ने कहा पत्रकार/इंफ्लूंएसर वहीं, जो हिमंता बिस्वा सरमा मन भाएं, लेकिन जनता …

असम के मुख्यमंत्री व झारखण्ड विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से बनाये गये सह-प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा द्वारा 28 अक्टूबर को होटल कावस में पत्रकारों को समर्पित रात्रि सेवा का परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आने लगा है। जो पत्रकार उनकी रात्रि सेवा से आह्लादित हैं या जो उनकी सेवा से अपनी सुध-बुध खो बैठे थें। वे उसी दिन से हिमंता-हिमंता जप रहे हैं।

स्थिति ऐसी है कि अब रांची का ज्यादातर पत्रकार चाहता है कि उसकी एक फोटो कम से कम हिमंता के साथ अवश्य हो, ताकि उसे अपने घर में लगा सकें। उक्त फोटो को अपने बीवी-बच्चों, अपने माता-पिता, अपने पूरे खानदान या इष्टमित्र को दिखा सकें कि देखों, आज के युगप्रवर्तक, साक्षात आधुनिक भगवान हिमंता से वो मिल चुका हैं। अब उसे दुनिया का सारा सुख प्रदान करने से कोई रोक नहीं सकता।

कई अखबार और कई टूटपूंजिया चैनल (जिसमें वो चैनल भी शामिल है, जिसका मालिक नौ महीने तक कारागार में रहकर अपना जीवन धन्य कर चुका है) हिमंता के आगे-पीछे कर रहे हैं। इनके आगे-पीछे करने का मूल कारण है कि वे जानते हैं कि अगर फिर से हेमन्त सरकार (जिसे दुबारा सत्ता में आना ही हैं), सत्ता में आ गई तो उनके दुर्दिन शुरु होने तय है, क्योंकि वे जो कुकर्म कर चुके हैं। उसे पूरा झारखण्ड देखा ही नहीं, बल्कि झेल चुका है।

हिमंता को क्या हैं? उसे कौन सा झारखण्ड से लेना है, वो तो समय गुजार रहा है, अपने बुद्धि से सबको अपने चरणों में नतमस्तक कराते जा रहा है। साम-दाम-दंड-भेद के तहत वो हर प्रकार की नीतियां चल रहा हैं, जो उसके हित में हैं, क्योंकि वो भी जानता है कि अगर हेमन्त सरकार (जिसे दुबारा सत्ता में आना ही हैं), फिर से सत्ता में आ गई तो खुद भी असम में मुख्यमंत्री रह पायेगा या नहीं, उसके उपर संकट आना तय है।

इधर ज्यादातर टूटपूंजिये पत्रकार जो इन्फ्लुएंसर का काम करते हैं। हिमंता से चिपक गये हैं। ऐसे चिपके हुए हैं कि अगर वो हिमंता के बगल में बैठ गया तो वो तब तक नहीं उठेगा, जब तक हिमंता उस सोफे से उठ न जाये। यहीं नहीं सोफे से उठने के बाद भी वो हिमंता के साथ चलते हुए दांत निपोड़ेगा, इधर-उधर की बात करने की कोशिश करेगा, चाहे हिमंता बात करना चाहे या नहीं। इसका मकसद वो दूसरों को बताना चाहता है कि हिमंता अगर पत्नी के बाद किसी को चाहते हैं तो बस उसे ही चाहते हैं और किसी को नहीं।

कमाल है, रांची के पत्रकारों के लिए जिस रात्रिकालीन सेवा को हिमंता द्वारा प्रदान किया गया था। उसके फोटो या वीडियो “भाजपा झारखण्ड” या खुद हिमंता बिस्वा सरमा के फेसबुक वॉल पर नहीं दिख रहे। लेकिन कुकुरमुत्ते की तरह रात्रिकालीन सेवा में खुद को उपकृत करने के लिए गये पत्रकारों का समूह अपने-अपने फेसबुक वॉल पर उन फोटों को खुब अपलोड किया है।

आश्चर्य है कि एक राजनीतिक दल ने यहां तक की टिप्पणी कर दी कि हिमंता तो रात्रिसेवा दे रहे हैं। हम तो केवल दिन की सेवा ही देंगे। फिर भी इन्हें शर्म नहीं उल्टे ये उनसे पूछते है कि आप भी कभी-कभी रात में बुला लीजिये। उक्त राजनीतिक दल कहता है कि आप घर आइये। अब इससे बड़े शर्म की बात क्या हो सकती है। लेकिन शर्म किसे आयेगी, उसे न जो शर्म की परिभाषा जानें।

खैर, छोड़िये, इन बातों को। अब रांची से छपनेवाले सारे अखबारों व चैनलों में हिमंता की इंट्री नहीं, बल्कि जय-जयकार हो रही हैं। हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी के कार्यक्रम विलुप्त होते जा रहे हैं। अगर दिख भी रहे हैं तो भगवान की कृपा समझिये। मतदान आते-आते तो 2019 जैसा दृश्य दिखेगा। लेकिन जिसकी पकड़ जनता के बीच हो, उसे अखबार और चैनल क्या कबाड़ लेंगे या हिमंता के साथ फोटो खिंचवाने को बेकरार तथाकथित पत्रकार क्या कर लेंगे?

28 अक्टूबर को ही जब हिमंता रात्रिकालीन सेवा दे रहे थे तो वहां उपस्थित एक पत्रकार ने विद्रोही24 को बताया कि एक महिला पत्रकार ने हिमंता से कहा कि सर, जब चुनाव संपन्न हो जायेगा तो आप तो असम चले जायेंगे, लेकिन हमसब आपको बहुत मिस करेंगे। मतलब समझिये बात मिस करेंगे तक आ रही है। मतलब नेता और पत्रकार में इतना प्रेम की, मिस करेंगे वाली बात तक आ जा रही हैं। इतना प्रेम तो मैंने किसी को अपने माता-पिता से करते नहीं देखा?

हमारे पास तो पक्की सूचना है कि 28 अक्टूबर को हिमंता की रात्रिकालीन सेवा के लिए भाजपा के लोगों ने 70 पत्रकारों की सूची बनाई थी। सभी को फोन द्वारा सूचना दी गई थी। लेकिन इंतजाम 100 का किया गया था। लेकिन ये क्या रात्रिकालीन सेवा जब शुरु हुई तो पत्रकारों की संख्या 200 से भी अधिक पार करने लगी। आयोजकों के हाथ-पांव फूल गये। जिन्हें गिफ्ट नहीं मिले, उन्हें कहा गया कि आप अपना नाम दे दीजिये, बाद में भिजवा देंगे।

ऐसी स्थिति रही। जब कुकुरमुत्ते की तरह उगे तथाकथित पत्रकारों की संख्या 200 से भी अधिक पार करने लगी, तो एक भाजपाई ने चुटकी ले ली और कहा कि हमारे हिमंता जी में तो वो प्रेमरस भरा है कि उस प्रेमरस की सुगंध को पाकर अच्छे-अच्छे लोग उनके पास आ जाते हैं तो इन पत्रकारों की क्या औकात? ये तो आयेंगे ही। दीपावली भी तो हैं।

अब जरा देखिये न। रांची प्रेस क्लब में एक भाजपा नेत्री की किताब का विमोचन था। उस विमोचन कार्यक्रम में हिमंता को आना था। जैसे ही रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष को इस बात की जानकारी मिली, पहुंच गये ग से गमला और ग से गमछा लेकर। हिमंता के गले में गमछा डाला और हाथों में गमला पकड़ा दिया। फोटोवाले को कहा फोटो खींचों। लीजिये तुरन्त वो फोटो रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष ने उसे अपने सोशल साइट पर डाल दिया।

लीजिये, फेसबुक पर वो फोटो डालते ही उनकी वैकुण्ठ की कुर्सी पक्की हो गई। ये हालात है, रांची के तथाकथित पत्रकारों और इंफ्लूएंसरों की। किसी ने इसी पर ठीक ही कहा हैं –पत्रकार/इंफ्लूंएसर वहीं, जो हिमंता बिस्वा सरमा मन भाएं। लेकिन जनता क्या कह रही हैं, जाकर जनता से पूछिए, जनता तो इतनी आक्रोशित हैं कि ऐसे पत्रकारों/इंफ्लूंएसरों का चेहरा तक देखना पसन्द नहीं कर रही।

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