दौड़ में शामिल युवाओं के लिए दूध और फ्रूट्स उपलब्ध कराने की बात करनेवाले देश के एकमात्र दयालु CM हिमंता जी, इसी प्रकार की दयालुता आपके लोगों ने कोरोनाकाल में क्यों नहीं दिखाई थी?
देश में अगर कोई सर्वाधिक विद्वान, महान, दयालु, प्रकांड पंडित है तो वो सिर्फ और सिर्फ असम के मुख्यमंत्री और भाजपा के एकमात्र सिद्धपुरुष हिमंता विश्वा सरमा है। देखिये न, इन्होंने आज भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन की है। उस संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि जहां सिपाही बहाली के लिए दौड़ हो रही हैं। वहां दौड़ में शामिल प्रतिभागियों के लिए सरकार कम से कम एक ग्लास दूध और एक फ्रूट्स की व्यवस्था करें।
आगे वे कहते है कि अच्छा रहेगा कि इस दौड़ को कम से कम पन्द्रह दिनों के लिए सरकार स्थगित कर दें, 15 दिन के बाद जब मौसम अनुकूल हो जायेगा, तो फिर दौड़ करा लें, क्योंकि वर्तमान में जो फिजीकल टेस्ट हो रहे हैं, उस फिजीकल टेस्ट में अब तक कई युवाओं की जान चली गई। वे युवाओं की मौत पर आंसू भी बहाते हैं और कहते है कि जिन-जिन युवाओं की मौत हुई हैं, पार्टी उनके परिवार को एक-एक लाख रुपये की राशि प्रदान करेगी।
अब सवाल उठता है कि क्या अगर विधानसभा का चुनाव नजदीक नहीं होता तो वे इसी प्रकार की घोषणा करते? इसका उत्तर सामान्य जनता भी दे देगी कि कभी नहीं। ये चुनाव चीज ही ऐसी हैं। अच्छे-अच्छों के दिलों में उदारता और महानता के बीज बो देती हैं। जैसा कि हिमंता बिस्वा सरमा के दिलों में बो दी है। जनाब मृत युवाओं के घर एक-एक लाख रुपये बंटवाने जा रहे हैं।
दूसरा सवाल इन्हीं के कथनानुसार, सरकार 15 दिनों तक दौड़ को स्थगित करा दें और 15 दिनों के बाद इसका आयोजन कराये। अब सवाल उठता है कि इसकी गारंटी कौन देगा कि 15 दिनों के बाद मौसम अनुकूल ही हो जायेगा। क्या हिमंता बिस्वा सरमा मौसम वैज्ञानिक है?
तीसरा सवाल, एक ग्लास दूध और एक फ्रुट्स मुहैया कराने की। तो जो उनके प्रेस कांफ्रेस में जो महान संवाददाता बैठे थे। उनकी बुद्धि की बलिहारी है, कि वे इस प्रकार के बयानों के बाद इस पर प्रश्न क्या होगा, वो प्रश्न भी करना नहीं जानते। ऐसे भी भाजपावाले अपने यहां ऐसे ही संवाददाताओं को बुलाते हैं कि जो ज्यादा प्रश्न न करें। बस आये और नाश्ता का पैकेट ले, आराम से चलते बनें। ऐसे भी किस संवाददाता की हिम्मत है कि हिमंता या भाजपा नेताओं से कुछ ऐसा सवाल कर दें, जिससे उनकी घिग्घी बंध जायें, क्या उस संवाददाता को अपनी नौकरी प्यारी नहीं हैं?
विद्रोही24 ने ऐसे कई दौड़ देखे हैं। हेमन्त सोरेन की सरकार तो आज आई है। उसके पहले कांग्रेस और अब भाजपा की कई राज्यों में सरकार विद्रोही24 ने देखे हैं। जहां हमारा जन्म हुआ है। वो तो उत्तर भारत का सबसे बड़ा सैनिक छावनी है। नाम है – दानापुर। वहां तो हमेशा से बहाली होती रही हैं। वहां दौड़ भी आयोजित होते हैं।
लेकिन किसी सैन्य अधिकारी या भाजपा नेता को वहां आनेवाले प्रतिभागियों के लिए, दौड़ में शामिल होने के लिए आनेवाले प्रतिभागियों के लिए एक ग्लास दूध या एक फ्रूट्स का इंतजाम करते नहीं देखा। अरे छोड़ियें, प्रतिभागी तो पैसे देने के लिए भी तैयार है। उसके बाद भी सैन्य अधिकारियों ने उनके लिए कोई व्यवस्था आज तक नहीं की। ये प्रतिभागी आते हैं तो दानापुर में ही बने फुटपाथ के दुकानों से तेल में बनी लिट्टी घुघनी खाकर अपनी क्षुधा शांत करते हैं और उसी में कोई-कोई दौड़ में पास भी हो जाता है।
मैं स्वयं कई ऐसे इग्जामिनेशन में भाग लिया हूं। लेकिन कभी ऐसी व्यवस्था देखने को नहीं मिली। जैसा कि हिमंता विश्वा सरमा ने कही। ये सफेद झूठ पता नहीं इतनी मुस्कुराहट से लोग कैसे बोल लेते हैं और पत्रकार उसे स्वीकार भी कर लेते हैं। जरा पूछिये इतना ही झारखण्ड के युवाओं के लिये दिल अभी पसीज रहा हैं तो रघुवर दास के शासनकाल में महिलाओं पर लाठियां किसने चटकाई थी? वो कौन था जो भरी सभा में एक पीड़िता के पिता को धुर्वा की एक सभा में जलील किया था, जिसका वीडियो आज भी यू-ट्यूब पर उपलब्ध है।
कोरोना काल में गुजरात और महाराष्ट्र में झारखण्डियों और बिहारियों को खदेड़नेवाले कौन थे? उस वक्त इन झारखण्डियों और बिहारियों को इन लोगों ने क्यों नहीं कहा कि तुम अभी कहीं नहीं जाओ, हम तुम्हारे लिये दूध और फ्रूटस की बात छोड़ों, हम तुम्हारे लिए सुखी-बासी रोटी और नमक का ही प्रबंध कर देते हैं। हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर इन भाजपा शासित राज्यों से लोग अपने परिवारों से मिले। कई तो रास्ते में ही दम तोड़ दिये। पूछिये, हिमंता बिस्वा सरमा से कि कितने भाजपाइयों ने उन रास्तों में मरे हुए परिवारों के लिए मदद के हाथ बढ़ाये।
अरे पत्रकारों, तुम्हें कम से कम पूछना चाहिए कि आज चुनाव हैं तो मृत युवाओं के लिए ये लाख-लाख निकाल रहे हैं, वो भी पार्टी की ओर से। कोरोना काल में तो तुम्हारे ही कई पत्रकार मित्र काल कलवित हो गये। बताओं कितने भाजपाइयों ने उनके घर जाकर उनकी पत्नियों व बच्चों के हाथों में एक लाख रुपये थमाये। दरअसल ये सारी की सारी राजनीति है। चुनाव हैं। ये आदमी दयालु बन बैठा है। वो राजनीतिक माइलेज लेना चाहता है।
वो हेमन्त को कटघरे में रखना चाहता है। वो कहना चाहता है कि हेमन्त ने कुछ नहीं किया। हमने लाखों रुपये दिये। जबकि इस देश की जनता ने देखा है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और देश के अन्य भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लोगों को कोरोना काल में अपने हाल पर छोड़ दिया था तो इसी राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सर्वप्रथम तेलंगाना से पहली ट्रेन खुलवाई। जिसमें भूख और मौत से मर रहे झारखण्डियों ने राहत की सांस ली।
राज्य के सारे थाने होटल बन गये और वहां सड़कों पर जीवन व्यतीत करनेवाला व्यक्ति हो या कोई अन्य व्यक्ति थाने में जाकर भरपेट भोजन करता और भूख से कोई नहीं मरा। जबकि रघुवर दास के शासनकाल में तो भूख से भी कई मौते हुई। नाम पता हैं कि यह भी बताऊँ। चलो बता देता हूं – उसका नाम था संतोषी। मतलब जिन भाजपाइयों के शासनकाल में लोग भूख से मर जाते थे। वे हेमन्त सोरेन सरकार को दूध और फ्रूटस देने को कह रहे हैं।
अरे तुम अपने भाजपा कार्यकर्ताओं को क्यों नहीं कहते। तुम अपने यहां रह रहे ढुलू महतो जैसे सजायाफ्ता दबंगों से क्यों नहीं कहते कि वे अपनी तिजोरी से कुछ निकाले, ताकि इन लोगों के लिए दूध और फ्रूट्स की व्यवस्था हो जाये। सच्चाई तो यही है कि तुम ही लोग तो लोगों को भूखों मरने की नौबत ला देते हो। ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी है, तो ढुलू के चिटाही धाम में जाकर वहां रह रहे लोगों से पूछ लो। सब पता लग जायेगा। आपका अपना चेहरा भी दिख जायेगा।