‘हिन्दुस्तान’ व ‘दैनिक भास्कर’ – ये नये युग के समाचार पत्र हैं, गलतियां भी करेंगे, भ्रम भी फैलायेंगे, झूठ छापेंगे, किसी की धार्मिक भावना से खेल जायेंगे, पर माफी नहीं मागेंगे
ये नये युग की पत्रकारिता है और ये नये युग के समाचार पत्र है। गलतियां भी करेंगे। भ्रम भी फैलायेंगे। झूठ छापेंगे। किसी की भी धार्मिक भावना से खेल जायेंगे। उनके व्रत व उपवास को असफल करने-कराने में दिमाग लगायेंगे। जब उन्हें लोग गलतियां बतायेंगे तो वे अपनी गलती भी नहीं मानेंगे और न क्षमा-याचना करेंगे।
ऐसे भी ये क्षमा-याचना क्यों करेंगे? ये तो धर्माधिकारी, नेता-अवतारी, अधिकारीचरण चूमनार्थी जो ठहरें। भला ये क्यों किसी से माफी मागेंगे। एक समय था। जब ये गलतियां करते थे तो उसके दूसरे दिन ‘भूल-सुधार’ का हेडिंग लगाकर उसमें दो शब्द लिखकर क्षमा-याचना कर लिया करते थे, परन्तु अब लगता है कि इन्होंने शपथ ले ली है कि वे चाहे जो करें, पर माफी नहीं मागेंगे। वे माफी तभी मांगेंगे, जब उन्हें कोई अदालती नोटिस थमायेगा।
ऐसे में किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचे या कुछ भी हो, उससे उनको क्या लेना-देना। सनातन समाज तो इसी के लिए जाना जाता है कि उसके खिलाफ जो भी मन में आये, लिख दो, वो कुछ बोलनेवाला नहीं, वो चुप्पी साध लेता है, ऐसे भी ज्यादा सनातनियों को तो ये भी नहीं पता कि वे जो व्रत कर रहे हैं, उसे कैसे करना चाहिए, क्यों करना चाहिए, उसके करने के क्या यथार्थ है, वे तो बस सब कर रहे हैं तो करते चले जा रहे हैं।
मतलब आंख मूंदकर चले जा रहे हैं और ये अखबार उन्हें बहकाते चले जा रहे हैं। जिसको जो मन में आता है, छठ के नाम पर लिख चलता है। कोई कह देता है कि खरना समाप्त 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारम्भ। लेकिन ये नहीं बताता कि ये 36 घंटे का निर्जला व्रत या उपवास किस थर्मामीटर से नापकर उसने बता दिया?
स्थिति तो ऐसी है कि ये अखबार सूर्यास्त के समय को अर्घ्य का समय बता देते हैं और कुछ लोग उसी समय अर्घ्य भी दे देते हैं और स्वयं को गौरवान्वित भी महसूस करते हैं, वो भी ये जानते हुए कि सूर्यास्त हो जाने के बाद तो अर्घ्य पड़ता ही नहीं, लेकिन क्या करें, अखबार ने लिख दिया तो सही ही होगा। विद्रोही24 ने यही मुद्दा 19 नवम्बर को उठाया था।
जो विद्रोही24 के नियमित पाठक हैं, वे जरुर पढ़े होंगे। शीर्षक था – अगर आप अखबारों को पढ़कर छठव्रत संपन्न करते हैं तो ऐसे में आपका व्रत कभी सफल नहीं होगा, इस बार ‘हिन्दुस्तान’ और ‘दैनिक भास्कर’ ने छठव्रतियों को भरमाया। हमने इन अखबारों को गलतियों को प्रमाण के साथ सिद्ध किया। आप आज भी विद्रोही24 पर इस समाचार को देख/पढ़ सकते हैं।
लेकिन इन अखबारों ने इसके लिए छठव्रतियों से क्षमा नहीं मांगी। इसका मतलब क्या हुआ? इसका मतलब तो यही हुआ कि ये अखबार महापर्व छठ और भगवान भास्कर से भी बड़े हो गये। छठव्रतियों और उनके परिवारों के आंखों में धूल झोंका और फिर भी ये सीना तानकर अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप भी नहीं कर रहे।
ऐसे में इन अखबारों को ये भी मान और जान लेना चाहिए कि इसी प्रकार का घमंड रांची और पटना से छपनेवाले कई अखबारों का था, लेकिन वे अभी कहां चले गये? उन अखबारों में काम करनेवाले तब के संपादकों व पत्रकारों को पता हैं। ऐसे में आप भी जान लीजिये, आपने गलतियां कर दी हैं और करते चले आ रहे हैं, जब इसका परिणाम ईश्वर देना प्रारंभ करेगा तो आप उस दुष्परिणाम को भी भुगतने को तैयार रहियेगा, क्योंकि ईश्वर कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार आपको तो दंडित अवश्य करेगा और आप कुछ कर भी नहीं पायेंगे।