ये 11 अपराधिक मामलों में लिप्त, 33 साल के देवेन्द्र नाथ महतो कब तक छात्र नेता बने रहेंगे? आखिर जेएसएससी या अन्य मामलों में देवेन्द्र नाथ महतो का ही हस्तक्षेप क्यों? बाकी छात्र संगठन जेएसएससी मामले में चुप क्यों हैं?
भाई ये 33 साल के देवेन्द्र नाथ महतो कब तक छात्र नेता बने रहेंगे? ये 11 अपराधिक मामलों में लिप्त महाशय कब तक पूरे प्रशासन को चुनौती देते रहेंगे? आज इस पर चर्चा होना ही चाहिए। आज जिस प्रकार से रांची पुलिस ने उनकी पिटाई की है। उनकी हालत बनाई हैं। उस पिटाई और हालात पर कई पत्रकार भी आंसू बहा रहे हैं और अपने फेसबुक प्रोफाइल पर एक छोटा सा वीडियो जो देवेन्द्र नाथ महतो की बुरी तरह पिटाई से संबंधित हैं, डालकर स्थानीय प्रशासन को भला-बुरा कहने से नहीं चूक रहे।
उन पत्रकारों के पोस्ट पर एक महाशय तो पता नहीं कहां से देवेन्द्र नाथ महतो को जनप्रतिनिधि भी करार दे दिया। जब विद्रोही24 ने उक्त महाशय से पूछा कि ये देवेन्द्र नाथ महतो किस विधानसभा या लोकसभा से चुनकर विधायक या सांसद बने हैं, तो वे जवाब नहीं दे सकें। मतलब स्थिति ऐसी है कि हर कोई अपने-अपने ढंग से क्रांतिकारी बनने की कोशिश कर रहा हैं। लेकिन जब क्रांति का अर्थ और मायने पूछिये तो सबकी हवा निकल जा रही हैं।
सवाल उठता है कि ऐसे लोगों के द्वारा जारी बिना सिर-पैर के आंदोलन और प्रशासन को दी जानेवाली चुनौती को क्या क्रांति की संज्ञा दे दी जाये और कह दिया जाय कि वे अपने बिना सिर-पैर के आंदोलन से पूरे प्रशासन को पंगु बना दें और प्रशासन अपना हाथ-पांव बांधकर बैठा रहे, कह दें कि देवेन्द्र नाथ महतो जी आप बहुत बड़े क्रांतिकारी छात्र हैं, आपको सीजीएल के बहाने पूरे प्रशासन को चुनौती देने, प्रशासन को पंगु करने का लोकतांत्रिक अधिकार है और ये महाशय जो मन करें, वो करें।
सवाल उठता है कि सहायक पुलिसकर्मियों का आंदोलन हो या कम्प्यूटर शिक्षकों का आंदोलन हो या जेपीएससी-जेएसएससी से संबंधित किसी भी परीक्षा से जुड़ा आंदोलन हो, सभी का नेतृत्व देवेन्द्र नाथ महतो ही क्यों करेंगे? क्या पूरे झारखण्ड में अब कोई छात्र नेता नहीं बचा या कोई छात्र संगठन ही नहीं हैं? और अगर छात्र संगठन हैं तो बाकी छात्र संगठन इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? सवाल उठता है कि छात्रों का सबसे बड़ा संगठन कहा जानेवाला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं?
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ा एनएसयूआई इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? वाम छात्र संगठन जैसे ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन, अखिल भारतीय क्रांतिकारी छात्र महासंघ, अखिल भारतीय छात्र संघ, अखिल भारतीय छात्र परिषद्, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं?
इसी प्रकार अम्बेडकर छात्र संघ, बहुजन समाज छात्र संघ, आदिवासी छात्र संघ इस मुद्दे पर खुलकर बोल क्यों नहीं रहा। ये बार-बार देवेन्द्र नाथ महतो ही हर आंदोलन में क्यों खुलकर आ रहे हैं? क्या यहां के सभी आंदोलनकारियों ने अपने आंदोलन करने का लाइसेंस इन्हीं के हाथों में दे दिया है, ताकि ये जो चाहे जो कर दें, प्रशासन द्वारा बनाई गई बैरिकेडिंग को तोड़ दें, कानून को अपने हाथ में ले लें।
सवाल यह है कि झारखण्ड में छात्रों के कई संगठन हैं। इन संगठनों ने अभी तक सीजीएल मामले में एक भी टिप्पणी जारी नहीं की है। झारखण्ड में अब तक जितनी भी सरकारें बनी। सभी के शासनकाल में जेपीएससी-जेएसएससी ने कई परीक्षाएं ली और उन सारी परीक्षाओं में भ्रष्टाचार के छीटें पड़ें। जिसको लेकर सरकार और छात्रों के बीच कई बार टकराव हुए। इन टकरावों के कारण आम आदमी भी प्रभावित हुआ। लेकिन, इसका परिणाम क्या हुआ? इन्हीं छात्र आंदोलन के नाम पर कई नये-नये नेता अवतरित हुए और ये बाद में जनप्रतिनिधि बन गये और फिर अपने आंदोलन से तौबा कर ली। कई इनमें से तो मंत्री तक बन गये।
लेकिन जरा उनसे पूछिए कि आपने जिन आंदोलनों से अपना इमेज बनाया और आज मंत्री तक हैं। उस आंदोलन में जो लोग मरें या बर्बाद हुए, उनके उपर आपने कितने आंसू बहाएं, तो उनके चेहरे पर सन्नाटा छा जायेगा। डोमिसाइल आंदोलन उन्हीं में से एक हैं। इस डोमिसाइल आंदोलन ने कई नेताओं को जन्म दिया। कई अखबारों के बड़े-बड़े संपादक अपने अखबारों में इन नेताओं को बुलवाते थे। इन्हें टिप्स दिया करते थे। लेकिन उन संपादकों के टिप्स से खुद को नेता घोषित करने-करानेवाले नेता तो खुद भी मंत्री बने और अपनी संतान तक को मंत्री बना दिया। लेकिन, डोमिसाइल के आंदोलन के दौरान जिनकी जिंदगी तबाह हुई। उन्हें पूछनेवाला आज कौन है?
विद्रोही24 देख रहा है कि सीजीएल के आंदोलन और तथाकथित छात्र आंदोलन के नाम पर एक बार फिर डोमिसाइल आंदोलन की ही तरह एक आंदोलनकारियों का नया जत्था पैदा हुआ हैं। जो विधायक-मंत्री बनने की तैयारी में लगा है। एक तो कामयाब हो गया और दूसरा इसी चक्कर में छात्र नेता बनकर दिमाग लगा रहा हैं। ऐसे में दो चार लाठियां अगर पड़ भी गई तो क्या हो गया? कौन सा पहाड़ टूट गया?
अरे आप जो नेता या जनप्रतिनिधि बनने की नौटंकी कर रहे हैं, तो उस नौटंकी का एक पार्ट तो यह भी हैं। इसे भी बड़े प्रेम से ग्रहण करना ही पड़ेगा। और भाई, जो तथाकथित पत्रकार/इंफ्लूएंसर्स लोग आप के इस प्रकरण पर रो रहे हैं। उन पर भी आपको विशेष ध्यान रखना होगा। उनके लिए समय आने पर आप कुछ जरुर करियेगा। इनका ध्यान जरुर रखियेगा, क्योंकि बाद में आपके लिए राग मल्हार यही लोग तो गायेंगे, आप पर कुछ न कुछ तो जरुर ही ये लोग लिखेंगे।