मैं BJP का प्रशिक्षण प्रमुख गणेश मिश्र हूं, बिना हेलमेट के चलूंगा, कोई हमारा चालान नहीं काट सकता
“भाई, आपको नहीं पता क्या? मैं भाजपा का बहुत बड़ा नेता हूं। झारखण्ड भाजपा का राज्य स्तरीय प्रशिक्षण प्रमुख हूं। निरसा से भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ा हूं, पर हार गया हूं, लेकिन एक दिन जीतूंगा भी। रही बात बिना हेलमेट के बाइक पर बैठने की, तो क्या हो गया? कोई भी कानून नेता और पुलिस के लिए थोड़े ही बनता है, ये तो आम जनता के लिए बनता है।
कभी हमारे नितिन गडकरी जी भी इस कानून को लोकसभा में पास कराने के पहले बिना हेलमेट के स्कूटर चला चुके हैं, हमारे मुख्यमंत्री रघुवर दास जी भी बिना हेलमेट के स्कूटर चला चुके हैं, तो हमारा भी तो हक बनता है न, इसलिए हम जैसे नेताओं के लिए न चालान कटेगा और न ही कानून कोई काम करेगा।” शायद भाजपा के राज्यस्तरीय प्रशिक्षण प्रमुख गणेश मिश्र अपने मन में यहीं सोच रहे होंगे, तभी तो वे बिना हेलमेट के बाइक पर निकल गये, वह भी सैकड़ों समर्थकों के साथ, जिन्होंने हेलमेट पहनने की जरुरत ही नहीं समझी।
अब सवाल उठता है कि अगर जनता कहती है कि सरकार चालान के नाम पर जनता को लूट रही हैं, अगर विपक्ष कहता है कि राज्य व केन्द्र सरकार को जनता की फिक्र नहीं, बल्कि जनता को कैसे लूटा जाये, इसकी ज्यादा फिक्र हैं, तो क्या गलत है? नहीं तो धनबाद ट्रैफिक पुलिस बताये कि भाजपा नेता गणेश मिश्र और उनके सैकड़ों समर्थकों से कल निरसा में कितने रुपये के चालान काटे गये, साथ ही धनबाद ट्रैफिक पुलिस यह भी बताये कि गणेश मिश्र के साथ चल रहे एक पुलिसकर्मी के खिलाफ कितने का का चालान काटा गया?
सवाल तो प्रभात खबर से भी हैं कि वह भी बताये कि आम जनता अगर कानून तोड़ रही हैं, तो वह बड़े–बड़े फोटो छाप दे रही हैं, और भाजपा का एक प्रमुख नेता ताल ठोककर अपने समर्थकों के साथ बिना हेलमेट के चल देता हैं तो उसकी फोटो क्यों नहीं अखबारों में आती, आखिर ये माजरा क्या है? किस सिद्धांत के अनुसार उक्त भाजपा नेता की बिना हेलमेट वाली फोटो नहीं छापी जाती, आखिर भाजपा और प्रभात खबर में किस प्रकार का एमओयू चल रहा हैं, जिसके कारण जनता के पास उसके द्वारा सही चीजें नहीं प्राप्त हो रही।
ज्ञातव्य है कि कल भाजपा नेता गणेश मिश्र ने धनबाद के मैथन में आयोजित युवा संवाद कार्यक्रम में भाग लिया था, जिसमें वे अपने समर्थकों के साथ बिना हेलमेट के ही बाइक पर सवार होकर निकल पड़े, पर यह खबर सोशल साइट पर तो हैं, पर खुद को अखबार नहीं आंदोलन बोलनेवाला, राज्य का एक नंबर का अखबार कहनेवाला प्रभात खबर के पास यह खबर नहीं हैं। न रांची में और न ही धनबाद संस्करण में।
सैयां हमारे कोतवाल,हमें डर काहे का..
जनधन का है हम मालिक..जनता को लूटो..चिंता काहे का