मन करता है कि झारखण्ड स्थित अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अधिकारियों का माथा चूम लूं
मन करता है कि झारखण्ड स्थित अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के उन अधिकारियों का माथा चूम लूं, जिन्होंने ये विज्ञापन बनवायें, लोगो बनवायें, इन विज्ञापनों को विभिन्न अखबारों में छपवाया, लोगो को झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के हाथों लोकार्पण करवाया और अपनी वाहवाही लूट ली। अब सवाल उठता है कि मैंने ये क्यों कहा कि उन अधिकारियों का माथा चूम लूं? वो इसलिए कि ये अधिकारी सचमुच बहुत ही बड़े विद्वान है और “एकोsहम् द्वितीयोनास्ति” के मूल मंत्र से प्रेरित है।
इन्हें ये भी समझ नहीं है कि जनजातीयों का लोगो व विज्ञापन निर्माण में किन-किन शब्दों व रंगों का प्रयोग करना चाहिए, बस उन्हें जो शब्द व रंग पसन्द हैं, इस्तेमाल कर दिया, वो भी जबर्दस्ती, फिर अपने हिसाब से जहां मन किया, उसका प्रयोग कर दिया। राज्य के मुख्यमंत्री और उनके आस-पास रहनेवाले लोगों ने भी, ये देखने की कोशिश नहीं की, कि जो बना हैं, जिसका लोकार्पण राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन कर रहे हैं, वो सही भी हैं या नहीं।
अब जरा इनकी गड़बड़ियों को देखिये…
- इन्होंने जो लोगो बनाये हैं, उसमें इन्होंने काले और गेरुए रंग का प्रयोग किया है और जनजातीय व महोत्सव जो ठीक नीचे उपर शब्द पड़े हैं, उसके बीच में दो काली बिंदी दे दी हैं, क्या बता सकते है कि लोगो बनाने वाले कि ये ‘ज’ औ ‘म’ के बीच में दो काली बिंदी दिये गये हैं, वो किस चीज को प्रतिबिम्बित कर रहे हैं? झारखण्ड के उपर और महोत्सव के बाद जो एक काली बिंदी के उपर में जो तीन गेरुआ बिंदी का प्रयोग हुआ हैं, वो तो बता रहे हैं कि जनजातीयों के सांकेतिक प्रतीकों के रुप में प्रतिबिम्बित हैं, पर ‘ज’ औ ‘म’ के बीच में दो काली बिंदी हैं, वो क्या है भाई?
- आपने इस विज्ञापन और लोगो को बनाने में केवल गेरुआ और काले रंग का प्रयोग किया, क्या बता सकते है कि काला रंग जनजातीयों के किस चीज को प्रतिबिम्बित करता हैं, गेरुआ तो थोड़ा बहुत हम भी समझ लेंगे, न समझाने के बावजूद? जल-जंगल-जमीन से जुड़ा, सरना धर्म से जुड़ा झारखण्ड का जनजातीय समाज जो ज्यादातर मौकों पर हरे व लाल रंग का ही चुनाव करता हैं, इसमें इन दो रंगों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? क्या ये रंग आपको पसन्द नहीं आया?
- आपने साइड में 9 और 10 को होनेवाले कार्यक्रमों में जो कार्यक्रम घोषित किये हैं, जिसमें आपने लिखा है परिधान फैशन शो, ये क्या होता हैं? अरे परिधान शो अपने आप में सम्पूर्णता को प्रदर्शित करता है, इसमें ‘फैशन’ को घुसेड़ने की क्या जरुरत थी?
- आपने लिखा सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम ये ‘रंगारंग’ क्या होता है? सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने आप में सम्पूर्ण है, इसमें ‘रंगारंग’ घुसेड़ने की क्या जरुरत है, ‘रंगारंग’ इतना जरुरी था क्या?
- अंत में एक जगह ‘संगोष्ठियां’ में केवल ‘बिन्दु’ और ‘झलकियॉं’ में ‘चन्द्र बिन्दु’, अरे भाई चाहे तो दोनों में ‘चन्द्र बिन्दु’ का प्रयोग कर देते या दोनों में केवल ‘बिन्दु’ रहने देते, ये क्या कही ‘बिन्दु’, कहीं ‘चन्द्र बिन्दु’ का प्रयोग, हद है। इसका मतलब है कि आपको पता ही नहीं कि ‘बिन्दु’ और ‘चन्द्र बिन्दु’ का प्रयोग कहां-कहां किया जाता हैं? अगर आपको ये मालूम होता तो कहीं ‘बिन्दु’ और कहीं ‘चन्द्र बिन्दु’ का प्रयोग ही नहीं करते। मने जो मन किया, जहां किया, प्रयोग कर दिया। भाई सचमुच महान है, आप लोग। ऐसे भी आप इन्हीं कारणों से झारखण्ड में फिट रहियेगा, दूसरे जगह तो आप अनफिट ही रहेंगे, क्योंकि इतनी विद्वता, दूसरे राज्यों या केन्द्र में नहीं चलती, समझे या नहीं समझे।