मैंने किसी के गम में बादलों को भी आंसू बहाते सुना था, पर आज अपनी आंखों से पहली बार देखा
मैंने किसी के गम में बादलों को भी आंसू बहाते सुना था, पर आज अपनी आंखों से पहली बार देखा। अमित मिश्रा एक शांतचित्त, मनस्वी, यशस्वी पत्रकार थे। किसी से भी मिलना तो हंसकर मिलना व बातें करना तो इस प्रकार से बातें करना कि जैसे वो आपके परिवार के सदस्य हो। बातों ही बातों में ऐसे घुलमिल जाना, जैसे कि दुध में चीनी की मिठास, जो पीने पर तो पता चलता है, लेकिन देखने पर नहीं कि दुध में चीनी है भी या नहीं। ऐसे थे अमित मिश्र।
अमित मिश्र के देहांत की खबर पूरे रांची ही नहीं, बल्कि बिहार सहित झारखण्ड के सुदुर इलाकों में दावानल की तरह फैली, जो जहां सुना, अवाक् रह गया, क्योंकि यह उनके जाने का समय नहीं था। भयंकर बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद भी बहुत कम को ही पता था कि वे कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे थे। कल उनका देहावसान हो गया और देखते ही देखते पत्रकारों का समूह उनकी अंतिम यात्रा व उनके परिवार को ढाढ़ंस बंधाने के लिए व्याकुल हो उठा।
सचमुच रांची प्रेस क्लब से जुड़े सभी अधिकारियों व उसके सदस्यों की इसके लिए प्रशंसा करनी होगी, सभी ने मिलकर जो उचित कदम उठाने चाहिए थे, उठाए और अंत-अंत तक अपने कर्तव्यों का निर्वहण करने में लगे रहे। अमित मिश्र की अंतिम यात्रा रांची प्रेस क्लब से निकलकर हरमू मुक्ति धाम पर पहुंची, उनके इस अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में पत्रकारों का समूह शामिल हुआ।
इधर अमित मिश्र की अंतिम क्रिया प्रारंभ हुई। चित्ता जलनी शुरु हुई। पता नहीं थोड़ी ही देर में बादलों का समूह कहां से आ गया। काले-काले बादलों का समूह उमड़-घुमड़ कर बरसना शुरु किया, मेघ गर्जन कर रहे थे, शायद वे भी अमित की इस अंतिम यात्रा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहे हो, हमें लगा कि ये बारिश पूरे रांची में हो रही होगी।
पर ये क्या, जहां मैं रहता हूं वहां तो बारिश की एक बूंद तक नहीं दिखी, सड़कें सूखी थी, तो क्या ये बादल सिर्फ किशोरगंज के ही इलाके में सिर्फ बरसे थे, क्या वे सिर्फ अमित मिश्र के लिए ही आंसू बहाने के प्रतीक के रुप में बरसे थे, कोई इस पर कुछ भी कह सकता हैं, पर मुझे तो लगा कि काले बादलों ने भी श्रद्धाजंलि स्वरुप बारिश के रुप में अपने आंसू उस जगह बहाएं, जहां अमित की चित्ता जल रही थी। अलविदा अमित।