काश के के सोन की जगह, झारखण्ड के स्वास्थ्य सचिव आज भी नितिन मदन कुलकर्णी होते…
“पूर्व स्वास्थ्य सचिव डा. नितिन मदन कुलकर्णी मुखर और हरदिल अजीज थे। वे झारखण्ड की स्वास्थ्य सेवा को उच्च स्तर पर ले जाने को प्रयासरत रहे हैं। कोरोना काल में उनकी सुझ-बुझ का नतीजा ही रहा कि झारखण्ड की स्थिति बेहतर रही। वे धनबाद के मुद्दे पर भी त्वरित कार्रवाई करते थे, पर के के सोन वैसे नहीं हैं।” यह कहना है एक युवा समाजसेवी अंकित राजगढ़िया का।
अंकित आगे कहते हैं कि के के सोन ने अभी तक शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कार्निया खराब होने के मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की हैं। अंकित राजगढ़िया विद्रोही24 से बातचीत में यह कहने से भी नहीं चूकते कि जब भी उन्होंने किसी स्वास्थ्य संबंधी शिकायतों को लेकर नितिन मदन कुलकर्णी जी को फोन किया, उन्होंने समस्या का समाधान किया, पर के के सोन के साथ वैसा नहीं हैं।
अंकित कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, ये झारखण्ड के पहले ऐसे युवा हैं, जिन्होंने कोरोनाकाल में सबसे पहले वैक्सीन लेने का काम किया। वह भी तब, जब कोई वैक्सीन लेना नहीं चाह रहा था। अंकित के परिवार से कई लोग नेत्रदान भी कर चुके हैं, साथ ही अंकित ऐसे सामाजिक व्यक्ति हैं, जिन्होंने हर उस व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवा देने में मुख्य भूमिका निभाई, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया, अगर अंकित राजगढ़िया का के के सोन के बारे में ऐसा विचार हैं तो सचमुच चिन्तनीय है।
जब विद्रोही24 ने इस संबंध में पता लगाने की कोशिश की, तो उसे भी यही दिखाई दिया। लगातार तीन दिनों तक नेपाल हाउस जाने के बाद भी, के के सोन कार्यालय में रहने के बावजूद भी किसी जरुरतमंद से नहीं मिले, दूसरी ओर उनका आप्त सचिव शंभू शरण प्रसाद का व्यवहार भी आगंतुकों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण से उचित नहीं था।
गत् 22 मार्च को संध्या चार बजे के करीब, जब गोड्डा और जमशेदपुर से कुछ लोग स्वास्थ्य संबंधी पारिवारिक समस्याओं को लेकर स्वास्थ्य सचिव से मिलने पहुंचे, तब भी स्वास्थ्य सचिव के आप्त सचिव का व्यवहार उनलोगों के साथ सही नहीं था। आप्त सचिव के इस व्यवहार से दुखी, ये परिवार दुखी होकर गोड्डा व जमशेदपुर को बिना स्वास्थ्य सचिव से मिले ही लौट गये, जबकि स्वास्थ्य सचिव अपने कार्यालय में ही मौजूद थे। ये घटना विद्रोही24 के सामने घटी थी।
स्वास्थ्य विभाग में ही यह बात पता चला कि स्वास्थ्य सचिव किसी भी प्रतिष्ठित संस्थान या संगठन को अपनी ओर से शुभकामनाएं संदेश नहीं देते। कमाल है, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, स्वयं स्वास्थ्य मंत्री को शुभकामना देने से परहेज नहीं हैं, पर के के सोन को परहेज हैं, यह बात खुद आप्त सचिव ने लोगों को बताया। जबकि भारतीय संस्कृति कहती है कि जब कोई आपके पास आये तो भले ही कुछ आपके पास देने के लिए कुछ हो या न हो, शुभकामनाएं तो दे ही सकते हैं, पर यहां तो शुभकामना देने में भी लोगों को पता नहीं क्या दिक्कत आ जाती हैं। खैर ये नया झारखण्ड हैं, इसका भी मजे लीजिये। इसके सिवा, हम और आप कर भी क्या सकते हैं।