धर्म

आईएएस नहीं हुआ, भगवान हो गया…

इस पुरी दुनिया में जितने भी बड़े-बड़े घोटाले हुए, वे घोटाले करनेवाले कोई अनपढ़ नहीं थे, सभी अव्वल दर्जें के पढ़ाकु थे। इनलोगों को पढ़ाकु, उन्हीं के परिवार के लोगों जैसे – उनके माता-पिता ने बनाया था, पर पढ़ने का मूल मकसद क्या होता है? वह नहीं बताया, क्योंकि उन्हें भी पता नहीं था कि पढ़ने का मतलब क्या होता है? चूंकि उनके माता-पिता ने पढ़ाया, पढ़ते-पढ़ते नौकरी मिल गयी, सुबह जाना और शाम को आना तथा इसी बीच भ्रष्ट लोगों के संगत में आकर भ्रष्टाचार का ऐसा ककहरा पढ़ा कि वह स्वयं भी एक नंबर का भ्रष्टाचारी बना और अपने पुत्रों में भी इस भ्रष्टाचार का बीजारोपण कर दिया, नतीजा देश का जो हाल है, वह सबके सामने है।

कल की ही बात है, एक सज्जन बहुत खुश थे, उनका बेटा आईएएस की परीक्षा में उतीर्ण हुआ था, स्वजाति के लोग उनके घर जाकर, उनका अभिनन्दन कर रहे थे, अभिनन्दन करनेवालों में, वे लोग भी शामिल थे, जो कभी उनसे बात नहीं करते थे, खुब सेल्फी लिया जा रहा था, कई लोग डायबिटीज के मरीज होने के बाद भी मिठाइयां खा रहे थे, खिला रहे थे। कुछ अपने बच्चों को कोस रहे थे कि देखिये हमने अपने बेटे को कई जगह पर कोचिंग कराई पर नालायक निकला, पढ़ा ही नहीं, एक इनका बेटा है, जो देखिये आईएएस की परीक्षा में उतीर्ण कर गया, अब क्या इनके दोनों हाथों में लड्डू है, क्या जरुरत है, अब इन्हें काम करने की, मस्ती में रहे, भगवान ने क्या नहीं दे दिया, इन्हें। मतलब ऐसी-ऐसी बातें कि पूछिये मत। जैसे जिनके बेटे आईएएस नहीं बने, उन्होंने बड़ा पाप किया हो।

महबूबा की चुनरी की हवा और आईएएस

यह हाल केवल एक जगह का नहीं है, आईएएस नहीं हुआ, भगवान हो गया और ये आईएएस बने महामानव क्या कर रहे है? जगजाहिर है, केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा बनाई जा रही विकास योजनाओं को नेताओं की मदद से कमीशन के रुप में गड़प जाते है।  इन विकास योजनाओं को गड़पने में ठेकेदारों, अभियंताओं, दलों के छोटे से बड़े तक के नेताओं की मिलीभगत होती है। ऐसे भी अपने देश में कितने आईएएस होंगे जिन्हें लोग नाम से जानते है या सम्मान करते हैं। अरे, ये तो भ्रष्ट नेताओं के इशारे पर बेड की चादर की तरह इधर से उधऱ होते रहते है। इनमें से कई तो शुरुआती क्षणों में खुब ईमानदारी दिखाता है, पर जैसे ही उसे उसकी महबूबा की चुनरी का हवा लगता है, वह अपनी महबूबा को स्विटजरलैंड, स्वीडेन, हालैंड आदि देशों के नजारे दिखाने के लिए बेकरार हो उठता है, उसे तब भारत में ही घुमने में घृणा आती है, और इसका शौक जल्दी ही पूरा हो जाता है, क्योंकि उसे इन जगहों पर जाने के लिए कुछ भी मेहनत करने की जरुरत नहीं पड़ती, क्योंकि वह आईएएस है।

आईएएस के एकाउंट में जनता के क्रन्दन और आंसू

एक दिन की बात है कि एक आईएएस जो हमारे परम मित्र है, उनसे मैंने पूछ डाला कि भाई जो तुम अभी आईएएस हो, आनेवाले जन्म में भी आईएएस ही बनोगे, इसका कोई प्रबंध कर रहे हो या नहीं, क्योंकि अभी जो तुम अपनी महबूबा के साथ रहकर, खूब ऐश कर रहे हो, आनेवाला जन्म भी ऐसा ही हो, या इसी जन्म में तुम्हारे बेटे-बेटियां भी इसी तरह सुख प्राप्त करें, इसका प्रबंध किये हो। उसने कहा – मुझे इन ढकोसलों में विश्वास नहीं हैं। मैंने कहा – ऐसे तो तुम पर भी बहुत सारे लोगों को विश्वास नहीं है। रिटायर्ड करोगे जब, लेकिन यहां तो तुम्हारे कार्यालय में हीं, ऐसे – ऐसे लोग है, जो तुम्हें गालियों से नवाजते है। ऐसे में हमें नहीं लगता कि तुम इस जन्म में भी परम आनन्द की प्राप्ति, प्राप्त कर सकोगे, दूसरा जन्म तो बाद की बात है, क्योंकि तुम्हारे आध्यात्मिक बचत खाते में सिर्फ क्रन्दन और आंसू ही जमा है। ये क्रन्दन और आंसू उनके है – जिनका धन तुमने लूटा है, जिनके सपनों को लूटा है, वह भी कमीशन के रुप में। ऐसे में जब इनके क्रन्दन और आंसू का चक्रवृदधि ब्याज पूर्ण रुप लेगा तो इस चक्रवृद्धि ब्याज का असर तो तुम पर पड़ना ही है, लाभ तुम्हें ही उठाना है। ऐसा थोड़े ही है कि तुम हमेशा इसी तरह रहोगे, अपनी चतुराई से बचते रहोगे।
ऐसा थोड़े ही है कि तुम श्रीमद्भगवद्गीता को नहीं मानो तो श्रीमद्भगवद्गीता की लिखी बात तुम पर असर नहीं डालेगी. ये तो वहीं बात हुई कि कोई मूर्ख कहें कि हम सूरज को नहीं मानते, जो पुरी दुनिया में प्रकाश फैलाता है, जिसके बल पर ही दुनिया को भोजन प्राप्त होता है। झारखण्ड में ही एक आईएएस है, बड़े पद पर है, लोग मानते है कि वे बहुत ही ईमानदार है, पर मैं नहीं मानता, क्योंकि उनकी ईमानदारी को हमने निकट से महसूस किया है, साल भर पहले एक उनके घर में घटना घटी, उनकी मां मर गयी। पति-पत्नी दोनों आईएएस, जैसे ही मां मरी, ये सनातनी से आर्यसमाजी बन गये और अपने मां को तीन दिन के अंदर ही स्वर्ग में फिट कर दिया यानी जब जैसा तब तैसा रुप धारण कर लिया, यहां तक की सर के बाल तक नहीं मुंडवाये, तीन दिन के अंदर ही सारे काम निबटा दिये, लोगों को खिला दिया, कितने लोग भय से श्राद्धभोज के नाम पर खा लिये और जो धर्म और भारत को मानते है, उन्होंने बहाना बनाया और चलते बने। ठीक इसी दौरान झारखण्ड में एक आईएएस अधिकारी के पिता का देहांत हुआ, उसने अपने पिता को सनातन पद्धति से वह सारे कार्य निबटाया, जिसे धर्म कहते है, यहीं नहीं अपने पिता को सद्गति दी, सर के बाल मुंडवाए, वह भूल गया कि वह आईएएस है, वह उस वक्त यहीं जान रहा था कि वह सिर्फ अपने पिता का पुत्र है, जिन्हें उसे सद्गति देनी है।

अंततः होना क्या हैं, इसे समझिये

आखिर एक माता-पिता अपने बेटे-बेटियों से क्या चाहता है, ये ज्यादा पढ़ाकु लोगों को मालूम होना चाहिए और इसके लिए उसे भारतीय संस्कृति की ओर लौटना होगा, अगर वह पढ़ाकु होने के बाद भी पशु होना चाहता है, तो कोई बात ही नहीं। उसके लिए ये आलेख भी नहीं है।

श्रीमदभगवद्गीता कहती है

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है।

और फिर ये कोई जरुरी भी नहीं कि नया शरीर धारण करने के बाद आपको वहीं चीज प्राप्त हो जाये, जो आप इसी जन्म में प्राप्त कर रहे है, फिर आपको आपके किये गये कर्मफल आपको उसके प्रतिफल दिलाने के लिए आपका पीछा करेंगे, जो प्रारब्ध बनकर आपको समय-समय पर आपके समक्ष उपस्थित होते रहेंगे।

मुझे भारत के कई शहरों में जाने का मौका मिला, एक से एक आईएएस दीखे, सभी पदों पर जाकर मदांध हो गये। कमीशन का ऐसा दौड़ा उनके जीवन पर पड़ा कि वे आदमी से शैतान हो गये। बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं बनाई और वह अट्टालिकाएं ही उनकी मौत का कारण बनी, ठीक उसी प्रकार जैसे रेशम का कीड़ा अपने लिए ही कलाकारी दिखाता है, रेशम को जन्म देता है, और उसी में अपना जीवन भी खो देता है, क्योंकि उसे पता ही नहीं कि जो वह कर रहा है, वहीं उसकी मौत का कारण बनेगा। कई के बेटे आस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि पश्चिमी देशों में पढ़ रहे है, नौकरी कर रहे है, पर बेटे-बेटियों और उनके बहूओं को अपने रिटायर्ड आईएएस माता-पिता की सेवा के लिए समय नहीं है, जो इन्हें अपने साथ रखे भी है, तो वे वहां नौकरों की भूमिका में है, क्योंकि कोई बेटा-बेटी नहीं चाहता कि पश्चिमी देशों के नौकरों के झमेले में वह पड़ें, क्योंकि वहां नौकरों के लिए और उसके संरक्षण हेतु कड़े कानून है, पर ये नौकरों का काम अपने माता-पिता से ही करा ले रहे है, ये है आज की स्थिति और इसके जन्मदाता वे स्वयं है। करोड़ों-अरबों की संपत्ति जो इन्होंने अवैध ढंग से कमाये है, आज दूसरे उस पर राज कर रहे है, मल-मूत्र का परित्याग कर रहे है, पर शान से कहेंगे कि ये हमारी संपत्ति है, ये हास्यास्पद स्थिति नहीं तो और क्या है? संसार में कोई ऐसा हुआ ही नहीं, जिसने अपने कर्म के फल को न भोगा हो, इसलिए आईएएस बने हुए लोगों, आप पहले आदमी बनिये, आदमी बनेंगे तभी आपका इहलोक और परलोक दोनों सुधरेगा, नहीं तो कोई गारंटी नहीं कि आप इसी जन्म में आनन्द को प्राप्त कर ही लेंगे। ईश्वर ने आपको इस जन्म में अच्छा मौका दिया है तो उसका फायदा उठाइये। ईमानदारी से कार्य करिये। देश के असंख्य नागरिकों की सेवा में स्वयं को झोकिये, नहीं तो तैयार रहिये, अपने कर्मफल के प्रतिफल को भुगतने के लिए, वह भी चक्रवृद्धि ब्याज समेत।

कबीर ने पढ़ाकुओं के बारे में पहले ही कह डाला था

कबीर मूरख नहीं थे, जो पढ़ाकुओं को संबोधित करते हुए आज से कई साल पहले एक दोहे कहे थे –

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।।

कबीर कोई पढ़े-लिखे नहीं थे, पर उन्होंने मनुष्य के जीवन के रहस्य को समझ लिया था, इसलिए उन्होंने प्रेम को आखर कहा और उससे अपनी बात जन-जन तक पहुंचाई, यह कहकर कि पढ़ना है तो प्रेम को पढ़ो, क्योंकि उसको जब पढ़ोंगे तो तुम किसी से दगा नहीं करोगे, कमीशन के चक्कर में नहीं पड़ोंगे, शत प्रतिशत इंसान बनोगे और जो शत प्रतिशत इंसान बनते हैं, वहीं दुनिया को दिशा देते हैं, उसी को लोग जानते हैं, वहीं मरने के बाद भी जिंदा रहता है और जो ऐसा नही करता, वह जिंदा रहकर भी मरे के समान है।