अब नेताओं की तरह IAS अधिकारी भी ले रहे हैं आदिवासी परंपरानुसार शाही स्वागत का मजा
बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा ले यहां तक ठीक है, पर ये भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारियों का नेताओं की तरह स्वागत करें, उनका अभिनन्दन करें और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बड़ी शान से अपने पांव बढ़ाते हुए नेताओं की तरह शिक्षण संस्थाओं की ओर कदम बढ़ाये, इसे किसी प्रकार से सही नहीं ठहराया जा सकता। शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत शिक्षक-शिक्षिकाएं, प्रधानाध्यापक व शिक्षा से जुड़े अन्य पदाधिकारी, इसलिए बच्चों से ऐसा कार्य कराते है, ताकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी इस प्रकार की शाही स्वागत से अभिभूत होकर, उन पर अपनी कृपा लूटा जाये।
इस कृपा पाने के चक्कर में, शाही स्वागत के चक्कर में बच्चों में एक नई प्रवृत्ति का जन्म होता है, कि उनका जन्म बस इन्हीं पदाधिकारियों की सेवा में लग जाने के लिए हुआ है और वे जब तक जिंदा रहते है, वे भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की जी-हुजूरी करते हुए, अपने परिवार, अपने समाज और देश का सत्यानाश कर डालते है, दूसरी ओर ये भारतीय प्रशासनिक अधिकारी जब तक जिंदा रहते है, वे शान से अपनी जिंदगी गुजारते हुए दुनिया से चल देते है, क्योंकि उनके मन में जन-सेवा का भाव कम और अपना शाही स्वागत कराने का भाव जब तक वे जीवित रहते हैं, मन में संजोये रखते हैं।
जरा ये दृश्य देखिये। यह हाल है रांची स्थित राजकीय मध्य विद्यालय हटिया का। ये हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी, सचिव, कार्मिक विभाग सह राज्य प्रवक्ता निधि खरे। जरा देखिये, बच्चे इनका किस प्रकार स्वागत कर रहे हैं, जबकि बच्चों को इनसे कोई लेना देना नहीं। वे यह भी नहीं जानते कि जिनका स्वागत कर रहे हैं, वह कौन है? या उनके जीवन में यह कितना सहायक होगी? पर जहां ये पढ़ते है, वहां के लोगों ने इन्हें प्रशिक्षण दिया, तैयार किया कि तुम्हें शाही स्वागत करना है, मैडम आ रही है। बेचारे बच्चे, कल नेताओं के लिए डांस करते थे, अब भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों के लिए करने लगे।
क्या ये झारखण्ड के आदिवासी बच्चे अथवा यह आदिवासी परम्परा यहां के नेताओं और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के आगे सिर्फ मांदर बजाने और नृत्य करने के लिए हैं? हमारे विचार से तो यहां के आदिवासियों को इस प्रकार के कार्यक्रमों का कड़ा प्रतिवाद करना चाहिए और इस प्रकार की परंपरा को केवल खास समय और खास लोगों के लिए ही प्रतिरक्षित करना चाहिए, नहीं तो आदिवासी परंपरा और संस्कृति को आजकल धूमिल करने की जो परिपाटी चली है, उससे झारखण्ड की संस्कृति का ही बंटाधार होगा, क्योंकि ये लोग क्या जानने गये? इस महान परंपरा और संस्कृति को? जरा इन्हीं से पूछिये कि इन्हीं के यहां लोग कोई जाते है, तो क्या इसी परंपरा से अपने लोगों का स्वागत करते हैं, अगर उत्तर नहीं में हैं तो फिर इस प्रकार के स्वागत कराने की लालसा मन में इन्हें क्यूं रहती है? ये खुद क्यों नहीं कहते कि उनका स्वागत इस प्रकार से शाही अंदाज में न किया जाये? बच्चों को केवल शिक्षा और सिर्फ शिक्षा से ही मतलब रखा जाये।