असुरक्षा, तनाव, अहंकारी प्रवृत्तियों व विभिन्न प्रकार के अवसादों से जकड़े इस विश्व को अगर कोई मुक्ति दिला सकता है तो वो है क्रिया योगः ब्रह्मचारी अतुलानन्द
आज संपूर्ण मानव असुरक्षा, तनाव, अहंकारी प्रवृत्तियों व विभिन्न प्रकार के अवसादों से जकड़ा हुआ है और उसे इन सभी से मुक्ति अगर कोई दिला सकता हैं तो वो हैं क्रिया योग। ये कहना था ब्रह्मचारी अतुलानन्द का, जो आज योगदा सत्संग आश्रम में योगदा भक्तों के बीच रविवारीय सत्संग के अवसर पर अपनी बातें रख रहे थे। आज का विषय भी बड़ा प्रासंगिक था। विषय था – वर्तमान समय में क्रियायोग की प्रासंगिकता।
ब्रह्मचारी अतुलानन्द ने कहा कि आज सारा विश्व आध्यात्मिक भूखमरी का शिकार है। वो ईश्वर के बताये मार्ग को भूलकर अन्य प्रवृत्तियों में स्वयं को ज्यादा लगा रहा है। उसे पता ही नहीं कि ईश्वर से प्रेम करने का मार्ग कितना आज जरुरी है और इस मार्ग को क्रियायोग के माध्यम से कितनी आसानी से सीखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जो प्रतिदिन ध्यान करता है, क्रियायोग के माध्यम से स्वयं को अनुप्राणित करता है, उसके अंदर नकारात्मकता व हिंसक प्रवृत्तियां नहीं पनपती, ऐसा करनेवालों के जीवन का प्रभाव दूसरों पर भी पड़ता है और वे भी स्वयं को इसी दिशा में चलने के लिए स्वयं को प्रेरित भी करते हैं।
अतुलानन्द ने कहा कि याद रखिये, आपके पास जो भी समस्याएं हैं, उससे दूर मत भागिये, मुस्कुराकर उसे स्वीकार करिये, आप देखेंगे ऐसा करने से ही आपकी आधी समस्या समाप्त हो जायेंगी, क्योंकि जो आपके द्वारा किये कर्मफल हैं, वो तो आपके चाहने या न चाहने पर भी बार-बार आपके सम्मुख आयेंगी, आप इससे कितना भागेंगे। आपने अगर पूर्व में या वर्तमान में अच्छे कर्म किये हैं, तो उसका भी फल आपको ही मिलना है किसी दूसरे को वो मिल ही नहीं सकता।
उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजन्म के जो बुरे कर्मफल है, वो हमारे मेरुदंड में विद्यमान रहते हैं, वो समय-समय पर हमारे सामने उपस्थित होंगे, लेकिन अगर हम ध्यान करते हैं, क्रियायोग को अपनाते हैं तो वे बुरे कर्मफल स्वतः नष्ट भी होते हैं और ईश्वर को पाने का मार्ग भी हमारा स्वतः छोटा होता जाता है। उन्होंने कहा कि आज कुछ देशों के बीच युद्ध का माहौल है। उस युद्ध के माहौल को भी आप क्रियायोग व ध्यान के माध्यम से शांत कर सकते हैं। आप ये कभी नहीं सोचे कि हम इतने बड़े युद्ध के कैसे समाप्त कर सकते हैं। आप खुद को सामान्य सोचने की भूल नहीं करें। अगर एक व्यक्ति क्रियायोग को अपनाकर आध्यात्मिकता के पथ पर चल पड़ा हैं, तो उसमें इतनी शक्ति अवश्य है कि वो कुछ भी कर सकता है, क्योंकि ईश्वर उसके साथ है।
उन्होंने कहा कि अपने जीवन को रुपांतरित करने की कोशिश करिये। स्वयं के जीवन को बेहतर बनाने पर ध्यान दीजिये। आप ईश्वर के लिए खास है। आप अपने आप में महत्वपूर्ण है, माहौल को बदलने के लिये। उन्होंने क्रियायोग के इतिहास और उसकी महत्ता के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि 1861 में पहली बार महावतार बाबाजी ने श्यामा चरण लाहिड़ी जी को क्रिया योग की दीक्षा दी थी। जब लाहिड़ी महाशय स्वयं को भूल चुके थे और जिनके पूर्व जन्म के बारे में महावतार बाबाजी ने उन्हें विस्तार से बताया।
जब लाहिड़ी महाशय को महावतार बाबाजी ने उनके पूर्व जन्म के बारे में बताया और क्रिया योग की दीक्षा दी, तब लाहिड़ी महाशय हिमालय पर ही रहना चाहते थे। लेकिन महावतार बाबाजी ने उन्हें सांसारिक जीवन जीते हुए क्रियायोग को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प करवाया। महावतार बाबाजी ने उस वक्त लाहिड़ी महाशय को कहा था कि उनका जीवन हिमालय में बिताने के लिए नहीं, बल्कि संसार के लिए उदाहरण बनने के लिए है।
अतुलानन्द ने कहा कि पूर्व में क्रियायोग सिर्फ योगियों को ही दिया जाता था, जो आध्यात्मिकता की उच्चावस्था में पहुंच जाते थे। लेकिन महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय से कहा कि क्रियायोग सिर्फ योगियों के लिए नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन जीते हुए भी किया जा सकता है। ईश्वर ने क्रियायोग के लिए तुम्हें चुना है। इससे मृत्यु के भय से मुक्ति मिलेगी।
अतुलानन्द ने कहा कि परमहंस योगानन्द जी जब 1920 में रांची में थे। तभी उन्हें आभास हुआ कि अमरीका के लोग उन्हें बुला रहे हैं। उन्होंने इस आभास को अपने गुरु युक्तेश्वर जी से कहा। युक्तेश्वर जी ने भी कहा कि उन्हें अमरीका जाना है। इस पर परमहंस योगानन्द जी ने कहा कि वे अमरीका जाकर क्या करेंगे, उन्हें तो अंग्रेजी ही नहीं आती। तभी युक्तेश्वर जी ने उनसे कहा था कि तुम अंग्रेजी जानो या न जानो, योग के बारे में तुम जो भी, जैसे भी कहोंगे, लोग बड़े चाव से सुनेंगे।
बाद में अमरीका जाने के क्रम में महावतार बाबाजी से भी परमहंस योगानन्दजी का साक्षात्कार हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने ही परमहंस योगानन्द जी को क्रिया योग के विस्तार के लिए चुना है। उनके गुरु को इसके लिए तैयार करने को भी पूर्व में कहा था। तभी महावतार बाबाजी के प्रभाव से परमहंस योगानन्द जी ने अमरीका के कई हजार क्लबों, संस्थानों व चर्चों में क्रिया योग पर व्याख्यान दिया।
अतुलानन्द ने कहा कि हमारा प्राकृतिक तौर पर विकासात्मक कार्यक्रम हमेशा से चलता रहा हैं, चलता रहेगा। हम एक न एक दिन ईश्वर से जरुर मिलेंगे, लेकिन उसका समय कितना होगा, इसका निर्धारण हम कर सकते हैं। हम ईश्वर से मिलने की उन दूरियों को क्रियायोग के माध्यम से कम कर सकते हैं, क्योंकि क्रिया योग ही ऐसा माध्यम है, जो हमारे पूर्वजन्म के संचित बुरे कर्मफलों को तीव्रगति से नष्ट करने का सामर्थ्य रखता है।
उन्होंने कहा कि ये वहीं क्रिया योग हैं, जिस क्रिया योग को भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया। बाद में पतंजलि ने इस क्रिया योग का उल्लेख किया। बाद में कबीर और क्राइस्ट ने भी इसे अपनाया। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचाने में एसआरएफ 62 देशों के 600 केन्द्रों के माध्यम से अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, जबकि योगदा सत्संग सोसाइटी के माध्यम से देश में पांच प्रमुख केन्द्र है, तथा विभिन्न शहरों में 200 ध्यान केन्द्र बनाये गये हैं।