अगर बाबू लाल को समाज और मानवशास्त्र, तो हेमन्त सोरेन को भी एकलव्य का दृष्टांत देते वक्त गुहराज और शबरी को भी पढ़ लेना चाहिए
आदिवासियों को हिन्दू बतानेवाले बाबू लाल मरांडी को समाज और मानवशास्त्र पढ़ लेना चाहिए, तो राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को भी महाभारत के एकलव्य का दृष्टांत देने के साथ-साथ, उसके पूर्व की रामायण की रचना में उद्धृत शृंगवेरपुर के राजा गुहराज और भीलनी शबरी को भी पढ़ लेना चाहिए, अगर ये पढ़ लें तो उन्हें भी पता चल जायेगा कि आज जिन्हें वे आदिवासी बता रहे हैं, उनका रामायण अथवा महाभारत काल में धर्म क्या था?
जब जैसा, तब तैसा के आधार पर आपका भी तर्क नहीं चलेगा, कभी आप भी भाजपा की वैशाखियों पर मुख्यमंत्री का ताज ओढ़ चुके हैं। कभी आपके पिता भी भाजपा जैसी कथित घोर सांप्रदायिक दलों की वैशाखियों के सहारे राज्य सभा पहुंच चुके हैं। उस वक्त आपका धर्म क्या था?
आपको यह भी बताना चाहिए कि मुख्यमंत्री रहते हुए आप ही के पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने रावण दहन करने से इनकार क्यों किया था? आपको यह भी बताना चाहिए कि आपके ही इलाके में रावणेश्वर वैद्यनाथ क्यों हैं? आपको यह भी बताना चाहिए कि भगवान बिरसा मुंडा ने मिशनरियों द्वारा संचालित विदेशी धर्म को त्यागकर कौन सा धर्म अपनाया था?
गुमला में जो टांगीनाथ का मंदिर है, देवड़ी में जो महाशक्ति का मंदिर है या अभी हजारीबाग में जो खुदाई के दौरान जो अवशेष प्राप्त हो रहे हैं, वो क्या बता रहा है? आदिवासी जनता को यह जानने का हक है। एक बात और, केवल आप ही आदिवासी नहीं हैं, देश में और भी जगहों पर आदिवासी है, पर ये धर्म का कीड़ा कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, यह केवल वहीं फल-फूल रहा हैं जहां पर कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें हैं।
साथ ही हिन्दूओं के खिलाफ विषवमन उन्हीं जगह पर हो रहा है, जहां कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें हैं। असम और केरल की जनता देख रही है, कि किस पार्टी ने घोर इस्लामिक पार्टी के साथ गठबंधन कर भाजपा के खिलाफ लड़ रही हैं, यानी आप धर्म की राजनीति के सहारे अपनी राजनीति चमकाओं तो सही और भाजपा करें तो गलत, ये नहीं चलेगा।
जो भी धर्म की आड़ में अपनी राजनीति चमकायेगा, वो गलत है, चाहे वह कांग्रेस या झामुमो ही क्यों न हो? अगर आप धर्म की राजनीति शुरु करेंगे तो लिख लीजिये, जब भी कभी चुनाव होंगे, आप हाशियें पर होंगे, क्योंकि देश की जनता ने कभी इस प्रकार की राजनीति को भाव नहीं दिया और जिसने भी ऐसा किया, उस दल को कालांतराल में भारी कीमत चुकानी पड़ी।
उदाहरण आपके सामने कांग्रेस है, कभी वो खुब तुष्टीकरण की आड़ में धर्म का सहारा लेती थी, आज देखिये उसका नाम लेनेवाला तक कही नहीं है, आप खुद उस पार्टी की छाती पर बैठकर झारखण्ड में शासन कर रहे हैं, और उस पार्टी के लोग आपका झंडा ढो रहे हैं। अब दृष्टांत सामने हैं, निर्णय आपको करना है, कि झंडा ढोना है, या शासन के माध्यम से जनता की सेवा करनी है।
याद रखिये, आदिवासी समुदाय जो झारखण्ड में रहता है, वो देश के अन्य प्रान्तों में भी रहते हैं, कोई जरुरी नहीं कि वो सरना को ही मानें, उनका रीति-रिवाज, परम्परा भी अलग है, ऐसे में आपके केवल कह देने से, केन्द्र सरकार आपके प्रस्ताव को मान ही लेगी, हमें दूर-दूर तक नहीं दिखता और आप आदिवासी-हिन्दू कर-कर के, पुनः सत्ता प्राप्त कर ही लेंगे, वह भी हमें दूर-दूर तक नहीं दिख रहा, हां वर्तमान में जो मधुपुर सीट पर विधानसभा का उपचुनाव हो रहा हैं, उसमें जीत आपकी तय है, पर उसका मूल कारण आप नहीं, बल्कि भाजपा द्वारा दिया गया कैंडिडेट है।
जो लगता है कि भाजपा ने हारने के लिए ही दिया है। इससे ज्यादा क्या लिखें? वर्तमान में आपको सत्ता प्राप्त होने के बाद (जैसा कि आमतौर पर होता है)आपके पास भी बहुत बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी पहुंच गये हैं, जो आपको बहुत बड़ा-बड़ा ज्ञान दे रहे हैं, पर उस ज्ञान से आपको कितना नुकसान या फायदा हो रहा हैं, ये तो वक्त बतायेगा और वक्त हम देख भी चुके हैं, विधानसभा का अगला चुनाव परिणाम हमारे पॉकेट में मौजूद है। मत फिसलिये, मजबूत होइये, बेकार की बातों में मत उलझिये, झारखण्ड में बहुत सारी समस्याएं हैं, उन समस्याओं को सुलझाइये। नहीं तो जो हैं, सो हइये हैं।